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भद्रबाहु संहिता
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एकपादास्त्रिपादो वा त्रिशृङ्गो यदि वाऽधिकः।
प्रसूयते पशुर्यत्र तत्रापि सौप्तिको वधः ।। १३५।। (यत्र) जहाँ पर (एकपादास्त्रिपादो) एक पाँव वाला, तीन पाँव वाला, (वा) और (त्रिशृङ्गो) तीन सींग वाला (यदि वाऽधिकः) व अधिक सींग वाला (पशुः प्रसूयते) पशु उत्पन्न होता है (तत्रापि) तो भी (सौप्तिको वधः) स्वामी का वध हो जायगा।
भावार्थ-यदि पशु एक पाँव वाले, तीन पाँव वाले, व तीन सींग वाले व अधिक सीगं वाले उत्पन्न हो तो भी राजा का वध हो जायगा ।। १३५ ।।
अश्रुपूर्णमुखादीनां शेरते च यदा भृशम्।
पदान्विलिखमानास्तु हया यस्य स बध्यते ॥१३६ ।। (यस्य हया) जिसके घोड़े, (अश्रुपूर्णमुखादीनां शेरते) आँसओं से भरी आँखों पूर्वक मुख को दीन करते हुए सोते है (च) और (यदा पदन्विलिखमानास्तु भृशम्) जब पाँव की टॉप से पृथ्वी खोदने लगे तो समझो (स बध्यते) उसके राजा का वध होता है।
भावार्थ-जिसकी सेना के घोड़े आँसूओं से भरी आँखों में मुखदीन करते हुए शयन करे व अपने पॉवों के खुर से पृथ्वी को खोदे तो समझो राजा का वध हो जायगा ।। १३६।।
निष्कुटयन्ति पादैर्वा भूमौ वालान् किरन्ति च ।
प्रहृष्टाश्च प्रपश्यन्ति तत्र संग्राममादिशेत् ।। १३७ ।। यदि घोड़े (निष्कुटयन्तिपादैः) अपने पाँव पृथ्वी पर कूटते हो (वा) और (भूमौ वालान् किरन्ति च) भूमि पर बाल गिराते हो और (प्रहृष्टाश्च प्रपश्यन्ति) प्रसन्नचित्त दिखते हो तो (तत्र) वहाँ पर युद्ध (संग्राममादिशेत्) की शंका उत्पन्न
होगी।
भावार्थ-जिस सेना के घोड़े अपने पाँवो से पृथ्वी को कूटते हो अथवा अपने बाल पृथ्वी पर गिराते हो अथवा घोड़े प्रसन्नचित्त दिखते हो तो समझो वहाँ पर युद्ध होने वाला हैं यह संकेत है।। १३७॥