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त्रयोदशोऽध्यायः
भावार्थ-यदि सेना के अन्दर चूहा, उल्लू, बिल्ली आदि अधिक मात्रा में वास करे तो समझो उस सेना का स्वामी अवश्य मर जायगा ।। १३१ ।।
ग्राम्या वा यदि वारण्या दिवा वसन्ति निर्भयम्।
सेनायां संप्रयातायां स्वामिनोऽत्र भयं भवेत्॥१३२॥ (ग्राम्या वा यदि वाऽरण्या) ग्राम के व जंगल के (दिवा) कौए (सेनायां) सेना के अन्दर (निर्भयम् वसन्ति) निर्भय होकर वास करे तो (संप्रयातायां) सेना के (स्वामिनोऽत्र भयं भवेत्) स्वामी को यहाँ पर भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-यदि प्रयाण करने वाली सेना के अन्दर गाँव अथवा जंगल के कौए निर्भय होकर वास करे तो समझो सेना के स्वामी को भय होगा ।। १३२ ।।
मैथुनेन विपर्यासं यदा कुर्युर्विजातयः।
रात्री दिवा च सेनायां स्वामिनो बथमादिशेत्॥१३३॥ यदि प्रयाण के समय (सेनायां) सेना के अन्दर (रात्री दिवा च) रात्रि हो या दिन में (यदा) जब (विजातयः) विजाती के साथ (विपर्यास) विपरीत रूप में (मैथुनेन) मैथुन (कुर्युः) करे तो (स्वामिनो वधमादिशेत्) सेना के स्वामी का अवश्य वध हो जायगा ऐसा कहा गया है।
भावार्थ-सेना के प्रयाण समय में सेना के अन्दर रात्रि हो या दिन अगर विजातीय पशु-पक्षी विपरीत रूप में मैथुन क्रिया करे तो समझो सेना के स्वामी का वध हो जायगा ।। १३३॥
चतुःपदानां मनुजा यदा कुर्वन्ति वाशितम्।
मृगा वा पुरुषाणां तु तत्रापि स्वामिनो वधः ।। १३४ ॥ (यदा) जब (चतुःपदानां) चतुष्पदों की (वाशितम्) आवाज (मनुजा कुर्वन्ति) मनुष्य करे और (मृगा वा पुरुषाणां) पुरुषों की आवाज मृग करे (तु) तो (तत्रापि) तो भी (स्वामिनोवधः) समझो स्वामी का वध हो जायगा।
भावार्थ-पशुओं की आवाज मनुष्य करे और मनुष्यों की आवाज मृग करे तो समझो स्वामी का वध होगा ॥१३४॥