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त्रयोदशोऽध्यायः
न चरन्ति यदा ग्रासं न च पानं पिबन्ति वै।
श्वसन्ति वाऽपि धावन्ति विन्द्यादग्निभयं तदा॥१३८ ॥ सेना के घोड़े, (न चरन्ति यदा ग्रास) जब घास भी न खाये (च) और न पानं पिबन्ति वै) पानी भी नहीं पीवे (वा) और (श्वसन्तिवाऽपिधावन्ति) श्वांस लेकर दौड़े भी तो (तदा) तब (अग्निभयं विन्द्याद) अग्नि भय होगा ऐसा समझो।
__ भावार्थ-यदि सेना के घोड़े न तो खाना खावे न पानी पीवे और श्वांस लेते हुए इधर-उधर दौड़े तो समझो वहाँ पर अग्नि भय होगा ।। १३८॥
क्रौञ्चस्वरेण स्निग्धेन मधुरेण पुनःपुनः ।
हेषले गतिरष्टास्ता राज्ञो जयावहाः॥१३९ ।। (क्रौञ्च) क्रौंच पक्षी (स्निग्धेन) स्निग्ध रूप (मधुरेण) मुधर (स्वरेण) स्वर से (पुन:पुनः) बार-बार (गर्वितास्तुष्टा:) तुष्ट होते हुए गविर्त होकर (हेषन्ते) शब्द करे तो (तदा) तब (राज्ञो जयावहा:) राजा की जय होगी ऐसा कहते हैं।
भावार्थ-क्रोंच पक्षी स्निग्ध रूप मधुरता से पुन:-पुन: शब्द करे और सन्तुष्ट होता हुआ गर्वित दिखे तो समझो राजा की विजय होगी ॥ १३९॥
प्रहेषन्ते प्रयातेषु यदा वादित्रनि:स्वनैः ।
लक्ष्यन्ते बहवो हृष्टास्तम्य राज्ञो ध्रुवं जयः॥१४०॥ (यदा) जब (वादित्र) बाजे (प्रयातेषु) प्रयाण के समय (निःस्वनैप्रहेषन्ते) शब्द करते हुए दिखाई दे और (बहवोहृष्टाः लक्ष्यन्ते) बहुत व्यक्ति प्रशन्न दिखाई दे तो समझो राजा की अवश्य विजय होगी।
। भावार्थ राजा के प्रयाण समय में बाजे शब्द करते हुए दिखाई दे और बहुत लोग प्रशन्नचित्त दिखे तो अवश्य ही राजा की विजय होगी।। १४० ।।
यदा मधुरशब्देन हेषन्ति खलु वाजिनः।
कुर्यादभ्युत्थितं सैन्यं तदा तस्य पराजयम्॥१४१ ।। (यदा) जब (वाजिनः) घोड़े (मधुरशब्देन हेषन्ति) मधुर शब्द करके हँसते