________________ अ. भा. दि. जैन विद्वत्परिषद् के संरक्षक, पदाधिकारी और कार्यकारिणी के सदस्य संरक्षक सदस्य पदाधिकारी एवं कार्यकारिणी- सदस्य 1. स्वस्ति श्री कर्मयोगी भट्टारकचारुकीर्ति जी, 1. अध्यक्ष, डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री, नीमच श्रवणवेलगुल 2. उपाध्यक्ष, डॉ. शीतलचन्द्र जैन, जयपुर 2. स्वस्तिश्री ज्ञानयोगी भट्टारकचारुर्कीति जी, 3. मन्त्री, डॉ. सुदर्शनलाल जैन, वाराणसी 4. संयुक्तमंत्री, डॉ. सत्यप्रकाश जैन, दिल्ली 3. सिद्धान्ताचार्य पं. जगन्मोहनलालजीशास्त्री, 5. कोषाध्यक्ष, श्री अमरचन्द्र जैन, सतना कटना 6. प्रकशनमंत्री, डॉ. नेमिचन्द्र जैन, खुरई। 4. पं. बंशीधर जी व्याकरणाचार्य, बीना 7. पं. धन्यकुमार भोरे, करंजा 5. डॉ. दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य, 8. पं. प्रकाश हितैषी शास्त्री, दिल्ली बीना 9. डॉ. गोकुल प्रसाद जैन, दिल्ली 6. संहितासूरी पं. नाथूलाल जी शास्त्री, 10. डॉ. शिखरचन्द्र जैन, हटा इन्दौर 11. पं. अनूपचन्द्र न्यायतीर्थ जयपुर 7. डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य, सागर 12. डॉ. रवीन्द्र कुमार जैन, मद्रास 8. समाजरत्न पं. भंवरलाल जी न्यायतीर्थ, 13. डॉ. लालचन्द्र जैन, वैशाली जयपुर 14. डॉ. विद्यावती जैन, आरा 9. बालब्रह्मचारी पं. माणिकचन्द्र जी चवरे, मणिकचन्द्र जा चवर, 15. डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल, अमलाई कारजा 16. डॉ. प्रेमचन्द्र रावका, जयपुर १०.पं. हीरालाल जी जैन 'कौशल' न्यायतीर्थ, 17. डॉ. उत्तमचन्द्र जैन, सिवनी दिल्ली 18. डॉ. रमेशचन्द्र जैन, बिजनौर 11. डॉ. कस्तूरचन्द जी कासलीवाल, जयपुर 19. डॉ. फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी' वाराणसी 12. पं. नरेन्द्र कुमार जी भिसीकर, सोलापुर 20. डॉ. कमलेश कुमार जैन, वाराणसी १३.प्रो. खुशालचन्द जी गोरावाला, वाराणसी 21. डॉ. कपूरचन्द्र जैन, खतौली 14. पं. भुवनेन्द्र कुमार जी शास्त्री, बादरी विशेष आमन्त्रित सदस्य 15. पं. सत्यन्धर कुमार जी सेठी, उज्जैन 1. प्रो. विद्याधर उमाठे, कारंजा 16. डॉ. राजाराम जी जैन, आरा 2. डॉ. सुरेशचन्द्र जैन, वाराणसी 17. प्रो. उदयचन्द्र जी जैन, वाराणसी 3. श्रीमन्त सेठ धर्मेन्द्र कुमार जैन, खुरई (1) आशीर्वाद एवं सम्मति अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् के प्रस्ताव को दृष्टि में रखकर जैन धर्मानुसार सच्चे देव, शास्त्र और गुरु के सम्बन्ध में प्रस्तुत पुस्तक (शोध निबन्ध) डॉ. सुदर्शन लाल जैन ने लिखकर एक कमी को पूरा किया है। सच्चे देव, शास्त्र और गुरु की जानकारी तथा उनकी श्रद्धा सम्यग्दर्शन की प्रथम सीढ़ी मानी गई है। इनके सच्चे स्वरूप को जाने विना आगे की यात्रा संभव नहीं है। अतः इनके स्वरूप में किसी प्रकार की विसंगति न हो इसके लिए प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर इनका स्वरूप जानना अत्यन्त आवश्यक है। वर्तमान काल में शास्त्रों की रचना तथा साधुओं की चर्या में विसंगतियाँ आने लगी हैं। इसी प्रकार अनेक दिगम्बर जैन देव-मन्दिरों में जिनेन्द्र देव के अलावा पद्मावती, क्षेत्रपाल आदि शासन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित होने लगी हैं जो कि वीतराग देव की परिभाषा से बाहर हैं। इसीलिए देव, शास्त्र और गुरु के सत्यार्थ की जानकारी समाज के बच्चे बच्चे के लिए आवश्यक है। इसके अतिरिक्त जैनाचार्यों और उनकी प्रामाणिक रचनाओं की भी जानकारी आवश्यक है जिससे सच्चे जैन शास्त्र-परम्परा के इतिहास की जानकारी मिल सके और दिगम्बर जैनों के साहित्यिक योगदान को भी जाना जा सके। इस कार्य को डॉ. सुदर्शन लाल जैन, जो वर्तमान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष हैं, अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् के मन्त्री तथा श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन शोध संस्थान वाराणसी के कार्यकारी मंत्री भी हैं, ने जैन शास्त्रों का सम्यक् आलोड़न करके सच्चे देव, शास्त्र और गुरु की यथार्थ परिभाषा को तथा उनके नग्न स्वरूप को उजागर किया है। आशा है, इस पुस्तक को पढ़कर न केवल जैन समाज अपितु सत्यान्वेषी समस्त जैनेतर समाज को भी लाभ मिलेगा। इस कार्य-सम्पादन हेतु डॉ. जैन को मेरा आशीर्वाद है। कटनी (म. प्र.) पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री दिनाङ्क 25/2/1994 . संरक्षक, अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् पूर्व प्राचार्य, शान्तिनिकेतन जैन संस्था, कटनी