________________ प्रकाशक मन्त्री, अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् आशीर्वाद 1. पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री, कटनी 2. डॉ. पं. दरबारी लाल 'कोठिया' बीना 3. प्रो. खुशालचन्द्र गोरावाला, वाराणसी 4. डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री, नीमच सच्चे देव यथाख्यात-चारित्र, कषाय-असद्भाव सच्चे साधु = गुरु प्राप्तिस्थान 1. मन्त्री, अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् डॉ. सुदर्शन लाल जैन 1, सेन्ट्रल स्कूल कॉलोनी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी-२२१००५ 2. प्रकाशन मंत्री, अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् डॉ. नेमिचन्द्र जैन, प्राचार्य श्री पार्श्वनाथ दि. जैन गुरुकुल, सी.से. स्कूल, खुरई, जिला सागर (म. प्र.) उपशम श्रेणी क्षपक श्रेणी जीव-स्थिति-सूचक गुणस्थान-चक्र (कर्मों की उदयादि अवस्थाओं से उत्पन्न जीव-परिणाम और जीव-स्थिति) गुणस्थानातीत सिद्धावस्था घातिया-अघातिया सभी कर्मों का पूर्णत: अभाव। 14 अयोग केवली चारों धातिया कर्मों का क्षय, पाँच ह्रस्वाक्षर (अर्हन्त-अवस्था) उच्चारण काल मात्र स्थिति। 13 सयोग केवली चारों धातिया कमों का क्षय तथा शरीर (अहंन्त अवस्था) नाम-कर्मोदय से योग का सद्भावातीर्थङ्कर की दिव्यध्वनि इसी अवस्था में खिरती है। यहीं से सच्चे शास्त्रों का उद्गम है। 12 क्षीणमोह = क्षीणकषाय चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय। यहाँ से (वीतराग छद्मस्थ) अर्हन्त अवस्था अवश्यम्भावी है। 11 उपशान्तमोह कषायोपशम। चारित्र मोहनीय का उपशम। (वीतराग छद्यस्थ) यहाँ से पतन अवश्यम्भावी है। परिणामों के अनुसार सातवें से प्रथम गुणस्थान तक पतन संभव। 10 सूक्ष्मसाम्पराय संयत प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदयाभाव। (ध्यानस्थ मुनि) 9 अनिवृत्तिकरण (ध्यानस्थ मुनि) 8. अपूर्वकरण संयत (ध्यानस्थ मुनि) अप्रमत्त संयत (मुनि की उन्नत-अवस्था प्रमत्तसंयत (मुनि-अवस्था प्रारम्भ) 5 देशविरत = संयतासंयत अप्रत्याख्यानावरण कवाय का उदयाभाव। (अणुवतीश्रावक से ऐलक तक) अविरतसम्यक्त्व दर्शन-चारित्र मोहनीय के अनन्तानुबन्धी n (अव्रती श्रावक) कषायचतुष्क का उपशम या क्षयोपशम या क्षय। 3 मिश्र दर्शनमोहनीयकर्म क्षयोपशम। इसमें मृत्यु, 4 (सम्यग्मिथ्यात्व) अणुव्रत, महाव्रत, मारणान्तिक समुद्घात नहीं होते। 2 सासादन मोहनीय कोंदय; सम्यक्त्व से पतन होते (सासादन-सम्यक्त्व) समय प्राप्ति समय-सीमा एक समय से छा आवली तक। 1 मिथ्यात्व मोहनीय कर्मोदय। चारों गतियों के सभी (मिथ्यादृष्टि) मिथ्यादृष्टि जीव; भावनत्रिक के देव आदि। प्रथम संस्करण आषाढ़, वी. नि. सं. 2520 (जुलाई, 1994) पुनर्मुद्रण भाद्रपद, वी. नि. सं. 2520 (सितम्बर, 1994) मूल्य बीस रूपया गृहस्थ = व्रती-अव्रती श्रावक कषाय-सद्भाव मुद्रक तारा प्रिटिग वर्स, वाराणसी