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________________ सष्टिखण्ड] तीर्थमहिमाके प्रसङ्गमे वामन-अवतारकी कथा . विधिवत् पूजा करके उनके आगे सौभाग्याष्टक रखे। सामग्रियोंसे युक्त शय्या, शिव-पार्वतीकी सुवर्णमयी निष्पाव, कुसुम्भ, क्षीरजीरक, तरुराज, इक्षु, लवण, कुसुम प्रतिमा, बैल और गौका दान करे । कृपणता छोड़कर दृढ़ तथा राजधान्य-इन आठ वस्तुओंको देनेसे सौभाग्यकी निश्चयके साथ भगवानका पूजन करे । जो स्त्री इस प्रकार प्राप्ति होती है; इसलिये इनकी 'सौभाग्याष्टक' संज्ञा है। उत्तम सौभाग्यशयन नामक व्रतका अनुष्ठान करती है, इस प्रकार शिव-पार्वतीके आगे सब सामग्री निवेदन उसकी कामनाएँ पूर्ण होती हैं । अथवा [यदि वह निष्कामकरके चैतमें सिंघाड़ा खाकर रातको भूमिपर शयन करे। भावसे इस व्रतको करती है तो उसे नित्यपदकी प्राप्ति फिर सबेरे उठकर स्नान और जप करके पवित्र हो माला, होती है। इस व्रतका आचरण करनेवाले पुरुषको एक वस्त्र और आभूषणोंके द्वारा ब्राह्मण-दम्पतीका पूजन करे। फलका परित्याग कर देना चाहिये। प्रतिमास इसका इसके बाद सौभाग्याष्टकसहित शिव और पार्वतीकी आचरण करनेवाला पुरुष यश और कीर्ति प्राप्त करता है। सुवर्णमयी प्रतिमाओंको ललिता देवीकी प्रसन्नताके लिये राजन् ! सौभाग्यशयनका दान करनेवाला पुरुष कभी ब्राह्मणको निवेदन करे । दानके समय इस प्रकार कहे- सौभाग्य, आरोग्य, सुन्दर रूप, वस्त्र, अलङ्कार और 'ललिता, विजया, भद्रा, भवानी, कुमुदा, शिवा, आभूषणोंसे वञ्चित नहीं होता। जो बारह, आठ या सात वासुदेवा, गौरी, मङ्गला, कमला, सती और उमा-ये वर्षोंतक सौभाग्यशयन व्रतका अनुष्ठान करता है, वह प्रसन्न हों।' ब्रह्मलोकनिवासी पुरुषोंद्वारा पूजित होकर दस हजार बारह महीनोंकी प्रत्येक द्वादशीको भगवान् कल्पोंतक वहाँ निवास करता है। इसके बाद वह श्रीविष्णुकी तथा उनके साथ लक्ष्मीजीकी भी पूजा करे। विष्णुलोक तथा शिवलोकमें भी जाता है। जो नारी या इसी प्रकार परलोकमें उत्तम गति चाहनेवाले पुरुषको कुमारी इस व्रतका पालन करती है, वह भी ललितादेवीके प्रत्येक मासकी पूर्णिमाको सावित्रीसहित ब्रह्माजीकी अनुग्रहसे ललित होकर पूर्वोक्त फलको प्राप्त करती है। जो विधिवत् आराधना करनी चाहिये। तथा ऐश्वर्यकी इस व्रतकी कथाका श्रवण करता है अथवा दूसरोको इसे कामनावाले मनुष्यको सौभाग्याष्टकका दान भी करना करनेकी सलाह देता है, वह भी विद्याधर होकर चिरकालचाहिये। इस प्रकार एक वर्षतक इस व्रतका विधिपूर्वक तक स्वर्गलोकमें निवास करता है। पूर्वकालमें इस अद्भुत अनुष्ठान करके पुरुष, स्त्री या कुमारी भक्तिके साथ रात्रिमें व्रतका अनुष्ठान कामदेवने, राजा शतधन्वाने, वरुणदेवने, शिवजीकी पूजा करे। व्रतकी समाप्तिके समय सम्पूर्ण भगवान् सूर्यने तथा धनके स्वामी कुबेरने भी किया था। तीर्थमहिमाके प्रसङ्गमें वामन अवतारकी कथा, भगवानका बाष्कलि दैत्यसे त्रिलोकीके राज्यका अपहरण भीष्यजीने कहा-ब्रह्मन् ! अब मैं तीर्थोका तीर्थोका स्मरण करना—ये मनोवाञ्छित फलको अद्भुत माहात्म्य सुनना चाहता हूँ, जिसे सुनकर मनुष्य देनेवाले हैं। भीष्म ! पर्वत, नदियाँ, क्षेत्र, आश्रम और संसार-बन्धनसे मुक्त हो जाता है। आप विस्तारके साथ मानस आदि सरोवर-सभी तीर्थ कहे गये हैं, जिनमें उसका वर्णन करो। तीर्थयात्राके उद्देश्यसे जानेवाले पुरुषको पग-पगपर पुलस्त्यजी बोले-राजन् ! ऐसे अनेकों पावन अश्वमेध आदि यज्ञोंका फल होता है-इसमें तनिक भी तीर्थ हैं, जिनका नाम लेनेसे भी बड़े-बड़े पातकोंका नाश सन्देह नहीं है। हो जाता है। तीर्थोका दर्शन करना, उनमें स्नान करना, भीष्मजीने पूछा-द्विजश्रेष्ठ ! मैं आपसे भगवान् वहाँ जाकर बार-बार डुबकी लगाना तथा समस्त श्रीविष्णुका चरित्र सुनना चाहता हूँ। सर्वसमर्थ एवं
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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