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________________ •अर्जयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण पुलस्त्यजी कहते हैं-राजन् ! इसी प्रकार एक भीष्मजीने पूछा-मुने! जगद्धात्री सतीकी दूसरा व्रत बतलाता हूँ, जो समस्त मनोवाञ्छित फलोको आराधना कैसे की जाती है? जगत्की शान्तिके लिये देनेवाला है। उसका नाम है-सौभाग्यशयन। इसे जो विधान हो, वह मुझे बतानेकी कृपा कीजिये। पुराणोंके विद्वान् ही जानते हैं। पूर्वकालमें जब भूलोक, पुलस्त्यजी बोले-चैत्र मासके शुक्ल पक्षकी भुवलोंक, स्वलोक तथा महलोंक आदि सम्पूर्ण लोक तृतीयाको दिनके पूर्व भागमें मनुष्य तिलमिश्रित जलसे दग्ध हो गये, तब समस्त प्राणियोंका सौभाग्य एकत्रित स्नान करे। उस दिन परम सुन्दरी भगवती सतीका होकर वैकुण्ठमें जा भगवान् श्रीविष्णुके वक्षःस्थलमें विश्वात्मा भगवान् शङ्करके साथ वैवाहिक मन्त्रोंद्वारा स्थित हो गया। तदनन्तर दीर्घकालके पश्चात् जब पुनः विवाह हुआ था; अतः तृतीयाको सती देवीके साथ ही सृष्टि-रचनाका समय आया, तब प्रकृति और पुरुषसे भगवान् शङ्करका भी पूजन करे । पञ्चगव्य तथा चन्दनयुक्त सम्पूर्ण लोकोंके अहङ्कारसे आवृत हो जानेपर मिश्रित जलके द्वारा गौरी और भगवान् चन्द्रशेखरकी श्रीब्रह्माजी तथा भगवान् श्रीविष्णुमें स्पर्धा जाग्रत् हुई। प्रतिमाको स्नान कराकर धूप, दीप, नैवेद्य तथा नाना उस समय एक पीले रंगकी भयङ्कर अग्निज्वाला प्रकट प्रकारके फलोंद्वारा उन दोनोंकी पूजा करनी चाहिये। हुई। उससे भगवान्का वक्षःस्थल तप उठा, जिससे वह 'पार्वतीदेव्यै नमः,' 'शिवाय नमः' इन मन्त्रोंसे क्रमशः सौभाग्यपुञ्ज वहाँसे गलित हो गया। श्रीविष्णुके पार्वती और शिवके चरणोंका; 'जयायै नमः', 'शिवाय वक्षःस्थलका वह सौभाग्य अभी रसरूप होकर धरतीपर :म:' से दोनोंकी घुट्ठियोंका; 'त्र्यम्बकाय नमः', गिरने नहीं पाया था कि ब्रह्माजीके बुद्धिमान् पुत्र दक्षने 'भवान्यै नमः' से पिंडलियोंका; 'भद्रेश्वराय नमः', उसे आकाशमें ही रोककर पी लिया । दक्षके पीते ही वह "विजयायै नमः'से घुटनोंका; 'हरिकेशाय नमः', अद्भुत रूप और लावण्य प्रदान करनेवाला सिद्ध 'वरदायै नमः' से जाँघोंका; 'ईशाय शङ्कराय नमः', हुआ। प्रजापति दक्षका बल और तेज बहुत बढ़ गया। 'रत्यै नमः' से दोनोंके कटिभागका; 'कोटिन्यै नमः', उनके पीनेसे बचा हुआ जो अंश पृथ्वीपर गिर पड़ा, वह 'शूलिने नमः'से कुक्षिभागका; 'शूलपाणये नमः', आठ भागोंमें बँट गया। उनमेंसे सात भागोंसे सात 'मङ्गलायै नमः'से उदरका; 'सर्वात्मने नमः', 'ईशान्यै सौभाग्यदायिनी ओषधियाँ उत्पन्न हुई, जिनके नाम इस नमः' से दोनों स्तनोंका; "चिदात्मने नमः', 'रुद्राण्यै प्रकार हैं-ईख, तरुराज, निष्पाव, राजधान्य (शालि या नमः' से कण्ठका; त्रिपुरनाय नमः, 'अनन्तायै नमः' से अगहनी), गोक्षीर (क्षीरजीरक), कुसुम्भ और कुसुम। दोनों हाथोंका; 'त्रिलोचनाय नमः', 'कालानलप्रियायै आठवाँ नमक है। इन आठोंकी सौभाग्याष्टक संज्ञा नमः' से बाँहोंका; 'सौभाग्यभवनाय नमः' से कहते हैं। आभूषणोंका; 'स्वधायै नमः', 'ईश्वराय नमः' से दोनोंके योग और ज्ञानके तत्त्वको जाननेवाले ब्रह्मपुत्र दक्षने मुखमण्डलका; 'अशोकवनवासिन्यै नमः'-इस पूर्वकालमें जिस सौभाग्य-रसका पान किया था, उसके मन्त्रसे ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले ओठोंका; 'स्थाणवे अंशसे उन्हें सती नामकी एक कन्या उत्पन्न हुई। नौल नमः', 'चन्द्रमुखप्रियायै नमः' से मुँहका; कमलके समान मनोहर शरीरवाली वह कन्या लोकमें 'अर्द्धनारीश्वराय नमः', 'असिताङ्ग्यै नमः' से ललिताके नामसे भी प्रसिद्ध है। पिनाकधारी भगवान् नासिकाका; 'उग्राय नमः', 'ललितायै नमः' से दोनों शङ्करने उस त्रिभुवनसुन्दरी देवीके साथ विवाह किया। भौहोका; 'शर्वाय नमः', 'वासुदेव्यै नमः' से केशोंका; सती तीनों लोकोंकी सौभाग्यरूपा हैं । वे भोग और मोक्ष 'श्रीकण्ठनाथाय नमः' से केवल शिवके बालोंका तथा प्रदान करनेवाली है। उनकी आराधना करके नर या नारी 'भीमोग्ररूपिण्यै नमः', 'सर्वात्मने नमः' से दोनोंके क्या नहीं प्राप्त कर सकती। मस्तकोंका पूजन करे। इस प्रकार शिव और पार्वतीकी
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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