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________________ उत्तरखण्ड ]" • साभ्रमती-तटके बालार्क, दुर्धर्षेवर तथा खड्गवार आदि तीर्थोकी महिमाका वर्णन . ८०५ प्रत्येक पर्वपर वनके फलों और फलोंसे कौवे तथा कुत्ते गङ्गा बड़े-बड़े पातकोंका नाश करनेवाली है। उसके आदिको बलि अर्पण करता है, वह यमराजके मार्गको दर्शनमात्रसे मनुष्य घोर पापसे छुटकारा पा जाते हैं। वहाँ सुखपूर्वक लाँघ जाता है। जो वैशाखकी पूर्णिमाको उस गो-दान और रथ-दानकी प्रशंसा की जाती है। उस तीर्थमें स्नान करके पीली सरसोंसे परम उत्तम प्राचीनेश्वर तीर्थमें श्राद्ध करके यत्नपूर्वक दान देना चाहिये। भयंकर नामक शिवको पूजा करता है, वह अपनेको तो तारता कलियुगमें वह तीर्थ महापातकोंका नाश करनेवाला है। ही है, अपने पितरों और पितामहोंका भी उद्धार कर देता वहाँसे भूतालय तीर्थमें जाना चाहिये, जो पापोंका है। यह वही स्थान है, जहाँ एक कबूतरने अपने अपहरण करनेवाला और उत्तम तीर्थ है। वहाँ भूतोंका अतिथिको प्रसत्रतापूर्वक अपना शरीर दे दिया था और निवासभूत वटका वृक्ष है और पूर्ववाहिनी चन्दना नदी विमानपर बैठकर सम्पूर्ण देवताओंके मुखसे अपनी है। भूतालयमें स्नान करके भूतोंके निवासभूत वटका प्रशंसा सुनता हुआ वह स्वर्गलोकमें गया था। तभीसे दर्शन करनेपर भगवान् भूतेश्वरके प्रसादसे मनुष्यको यह तीर्थ कापोत तीर्थके नामसे विख्यात हुआ। वहाँ कभी भय नहीं प्राप्त होता । वहाँसे आगे घटेश्वर नामका सान और जलपान करनेसे मनुष्यकी ब्रह्महत्या दूर हो उत्तम तीर्थ है, जहाँ सान और दर्शन करनेसे मानव जाती है। : wpनिश्चय ही मोक्षका भागी होता है। वहाँ जाकर जो अतः देवि ! उस तीर्थ में जानेपर सदा ही अतिथिका विशेषरूपसे पाकरकी पूजा करता है, वह इस पृथ्वीपर पूजन करना चाहिये। अतिथिका पूजन करनेपर वहाँ मनोवाञ्छित कामनाओंको प्राप्त करता है। निश्चय ही सब कुछ प्राप्त होता है। वहाँसे मनुष्य भक्तिपूर्वक वैद्यनाथ नामक तीर्थमे है वहाँसे आगे काश्यप हृदके समीप गोतीर्थ है, जो जाय और उसमें स्नान करके शिवजीकी पूजा करे । वहाँ सब तीर्थोंमें श्रेष्ठ और महापातकोंका नाश करनेवाला है। विधिपूर्वक पितरोंका तर्पण करनेसे सम्पूर्ण यज्ञोंका फल ब्रह्माहत्याके समान भी जो कोई पाप हैं, वे गोतीर्थमें स्रान प्राप्त होता है। वहाँ देवताओंसे प्रकट हुआ विजय तीर्थ है, करनेसे निस्सन्देह नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य वहाँ सान जिसका दर्शन करनेसे मनुष्य सदा भाँति-भाँतिके करके गौओंको एक दिनका भोजन देता है, वह गो- मनोवाञ्छित भोग प्राप्त करते हैं। वैद्यनाथ तीर्थसे आगे माताओंके प्रसादसे मातृ-ऋणसे मुक्त हो जाता है। जो तीर्थोंमें उत्तम देवतीर्थ है, जो सब प्रकारकी सिद्धियोंको गोतीर्थमें जानेपर स्नान करके श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको दूध देनेवाला है। वहाँ धर्मपुत्र युधिष्ठिरने राक्षसराज देनेवाली गौ दान करता है, वह ब्रह्मापदको प्राप्त होता है। विभीषणसे कर लेकर राजसूय नामक महान् यज्ञ आरम्भ - यहाँ एक दूसरा भी महान् तीर्थ है, जो काश्यप किया था। पाण्डुपुत्र नकुलने दक्षिण दिशापर विजय कुण्डके नामसे प्रसिद्ध है। वहाँ कुशेवर नामक पानेके बाद साभ्रमती नदीके तटपर बड़ी भक्तिके साथ महादेवजी विराजते है। उनके पास ही कश्यपजीका पाण्डुरा- नामसे विख्यात देवीकी स्थापना की थी, जो बनवाया हुआ सुन्दर कुण्ड है। उसमें स्रान करनेसे भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। साभ्रमतीके जलमें मनुष्य कभी नरकमें नहीं पड़ता। महादेवि ! काश्यपके स्नान करके पाण्डुरा-को नमस्कार करनेवाला मनुष्य तटपर नित्य अग्रिहोत्र करनेवाले तथा वेदोंके स्वाध्यायमें अणिमा आदि आठ सिद्धियों तथा प्रचुर मेधाशक्तिको तत्पर रहनेवाले अनेक शास्त्रोंके ज्ञाता ब्राह्मण निवास प्राप्त करता है। यदि मानव शुद्धभावसे पाण्डुरााको करते है। जैसा काशीका माहात्म्य है, वैसा ही इस नमस्कार कर ले तो उसके द्वारा एक वर्षतककी पूजा सम्पत्र ऋषिनिर्मित नगरीका भी है। महर्षि कश्यपने यहाँ रहकर हो गयी-ऐसा जानना चाहिये । देवतीर्थमें पाण्डुराकि बड़ी भारी तपस्या की है तथा वे भगवान् शंकरकी जटासे समीप जिसकी मृत्यु होती है, वह कैलास-शिखरपर प्रकट होनेवाली गङ्गाको यहाँ ले आये हैं। यह काश्यपी पहुँचकर भगवान् चन्द्रेश्वरका गण होता है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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