SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 804
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८०४ मा अर्चयख हवीकेशं यदीच्छसि पर पदम् . . [संक्षिप्त पापुराण शिवकी अर्चना करते हैं तथा विशेषतः रुद्रके मन्त्रोंका पारगामी होता है। क्षत्रिय हो तो राज्य, वैश्य हो तो धन जप करते हैं, उन्हें शिवका स्वरूप समझना चाहिये। और शूद्र हो तो भक्ति पाता है। इसलिये उपयुक्त नाममय देवि ! जो यहाँ सर्वदा स्रान करते हैं, उन मनुष्योंको उत्तम सूक्तका जप करना चाहिये। , निस्सन्देह विष्णुस्वरूप जानना चाहिये । जो तिलपिण्डसे, पार्वती ! निम्बार्क तीर्थसे बहुत दूर जानेपर परम यहाँ श्राद्ध करते हैं, वे भी उसके प्रभावसे विष्णुधामको उत्तम सिद्धक्षेत्र आता है। जाते हैं। यहाँ विधिपूर्वक स्नान और दान करना चाहिये। उपर्युक्त तीर्थ के बाद तीर्थराज नामसे विख्यात एक स्नान करनेपर ब्रह्महत्या आदि पापोंसे भी छुटकारा मिल उत्तम तीर्थ है, जहाँ सात नदियाँ बहती हैं। अन्य जाता है। इस तटपर जो विशेषरूपसे वटका वृक्ष लगाते तीर्थोकी अपेक्षा यहाँक स्रानमें सौगुनी विशेषता है । यहाँ है, वे मृत्युके पश्चात् शिवपदको प्राप्त होते हैं। देवताओंमें श्रेष्ठ साक्षात् भगवान् वामन विराजमान है। दुग्धेश्वरके समीप एक अत्यन्त पावन तथा रमणीय जो माघ मासकी द्वादशीको तिलकी धेनुका दान करता तीर्थ है, जो इस पृथ्वीपर पिप्पलादके नामसे प्रसिद्ध है। है, वह सब पापोंसे मुक्त हो अपनी सौ पीढ़ियोका उद्धार देवेश्वरि ! वहाँ सान और जलपान करनेसे ब्रह्महत्याका कर देता है। यदि मनुष्य शुद्धचित्त होकर यहाँ केवल पाप दूर हो जाता है। साश्रमतीके तटपर पिप्पलाद तीर्थ तिलमिश्रित जल भी पितरोंको अर्पण करे तो उसके द्वारा गुप्त है। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य मोक्षका भागी होता हजार वर्षांतकके लिये श्राद्ध-कर्म सम्पन्न हो जाता है। है। वहाँ विधिपूर्वक पीपलका वृक्ष लगाना चाहिये। इस रहस्यको साक्षात् पितर ही बतलाते हैं। जो इस ऐसा करनेपर मनुष्य कर्म-बन्धनसे मुक्त हो जाता है। तीर्थमें ब्राह्मणोंको गुड़ और खीर भोजन कराते हैं, उनको पिप्पलाद तीर्थसे आगे साधमतीके तटपर निम्बार्क एक-एक ब्राह्मणके भोजन करानेपर सहस्त्र-सहस्त्र नामक उत्तम तीर्थ है, जो व्याधि तथा दुर्गन्धका नाश ब्राह्मणोंको भोजन करानेका फल मिलता है। करनेवाला है। पूर्वकालमें कोलाहल दैल्यके साथ युद्धमे तदनन्तर, साधमतीके तटपर गुप्तरूपसे स्थित दानवोंके द्वारा परास्त होकर देवतालोग सूक्ष्म-शरीर सोमतीर्थकी यात्रा करे, जहाँ कालाग्निस्वरूप भगवान् धारण करके प्राणरक्षाके लिये यहाँ वृक्षोंमें समा गये थे। शिव पातालसे निकलकर प्रकट हुए थे। सोमतीर्थमें वहाँ जानेपर विशेषरूपसे भगवान् सूर्यका पूजन करना स्रान करके सोमेश्वर शिवका दर्शन करनेसे निःसन्देह चाहिये। पार्वती ! सूर्यके पूजनसे मनोवाञ्छित फलकी सोमपानका फल प्राप्त होता है। वहाँ स्नान करनेवाला प्राप्ति होती है। जो मनुष्य इस तीर्थमें जाकर सूर्यके बारह पुरुष परलोकमें कल्याण प्राप्त करता है। जो सोमवारके नामोंका पाठ करते हैं, वे जीवनभर पुण्यात्मा बने रहते दिन भगवान् सोमेश्वरके मन्दिरमें दर्शनके लिये जाता है, हैं। वे नाम इस प्रकार है-आदित्य, भास्कर, भानु, वह सोमलिङ्गकी कृपासे मनोवाञ्छित फल प्राप्त करता रवि, विश्वप्रकाशक, तीक्ष्णांशु, मार्तण्ड, सूर्य, प्रभाकर, है। जो श्वेत रंगके फूलोंसे, कनेरके पुष्पोंसे तथा विभावसु, सहस्राक्ष तथा पूषा ।* पार्वती ! जो विद्वान् पारिजातके प्रसूनोंसे पिनाकधारी श्रीमहादेवजीको पूजा एकाप्रचित्त होकर इन बारह नामोका पाठ करता है, वह करते है, वे परम उत्तम शिवधामको प्राप्त होते हैं। धन, पुत्र और पौत्र प्राप्त करता है। जो मनुष्य इनमेंसे वहाँसे कापोतिक तीर्थकी यात्रा करे, जहाँ एक-एक नामका उच्चारण करके सूर्यदेवका पूजन करता साधमतीका जल पश्चिमसे पूर्वकी ओर बहता है। जो है, वह ब्राह्मण हो तो सात जन्मोतक धनाढ्य एवं वेदोका मनुष्य पितृ-तर्पणपूर्वक वहाँ पिण्डदान करता है तथा * आदित्य भास्कर भानु रवि विश्वप्रकाशकम्। तीक्ष्णांशु चैव मार्तण्डं सूर्य चैव प्रभाकरम् ॥ विभावसु सहसाक्ष तथा पूषणमेव च। ......... .........॥ (१५१।९-१०)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy