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________________ ७२८ अर्थयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • **********..................................................................****** पुरुषोत्तमका भलीभाँति भजन करते हुए निरन्तर आपके चरणोंमें भक्ति रखेंगे, वे जीवनमें कभी असफल न होंगे। इममा स्तवं पुण्यमितिहासं पुरातनम् । ये नराः कीर्तयिष्यन्ति नास्ति तेषां पराभवः ॥ ३० ॥ * जो लोग परम ऋषि ब्रह्माजीके मुखसे निकले हुए इस पुरातन इतिहासरूप पुण्यमय स्तोत्रका पाठ करेंगे, उनका कभी पराभव नहीं होगा। यह महात्मा श्रीरघुनाथजीका स्तोत्र है, जो सब स्तोत्रोंमें श्रेष्ठ है। जो प्रतिदिन तीनों समय इस स्तोत्रका पाठ करता है, वह महापातकी होनेपर भी मुक्त हो जाता है। श्रेष्ठ द्विजोंको चाहिये कि वे संध्याके समय विशेषतः श्राद्धके अवसरपर भक्तिभावसे मन लगाकर प्रयत्नपूर्वक इस स्तोत्रका पाठ करें। यह परम गोपनीय स्तोत्र है। इसे कहीं और कभी भी अनधिकारी व्यक्तिसे नहीं कहना चाहिये। इसके पाठसे मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर ★ ऋषिपञ्चमी व्रतकी कथा, विधि और महिमा - महादेवजी कहते हैं—पार्वती ! एक समयकी बात है, मैंने जगत्के स्वामी भगवान् श्रीविष्णुसे पूछा था - भगवन् ! सब व्रतोंमें उत्तम व्रत कौन है, जो पुत्र पौत्रकी वृद्धि करनेवाला और सुख-सौभाग्यको देनेवाला हो ? उस समय उन्होंने जो कुछ उत्तर दिया, वह सब मैं तुम्हें कहता हूँ; सुनो। श्रीविष्णु बोले- महाबाहु शिव! पूर्वकालमें देवशर्मा नामके एक ब्राह्मण रहते थे, जो वेदोंके पारगामी विद्वान् थे और सदा स्वाध्यायमें ही लगे रहते थे। प्रतिदिन अग्रिहोत्र करते तथा सदा अध्ययन-अध्यापन, यजनयाजन एवं दान प्रतिग्रहरूप छः कर्मोंमें प्रवृत्त रहते थे। सभी वर्णोंकि लोगोंमें उनका बड़ा मान था। वे पुत्र, पशु और बन्धु बान्धव - सबसे सम्पन्न थे। ब्राह्मणोंमें श्रेष्ठ देवशर्माकी गृहिणीका नाम भगा था। वे भादोंके शुरूपक्षमें पञ्चमी तिथि आनेपर तपस्या पद्मपुराण उत्तरखण्डका ७७ अध्याय । [ संक्षिप्त पद्मपुराण 1 लेता है। निश्चय ही उसे सनातन गति प्राप्त होती है। नरश्रेष्ठ ब्राह्मणोंको श्राद्धमें पहले तथा पिण्ड- पूजाके बाद भी इस स्तोत्रका पाठ करना चाहिये; इससे श्राद्ध अक्षय हो जाता है। यह परम पवित्र स्तोत्र मनुष्योंको मुक्ति प्रदान करनेवाला है जो एकाग्र चित्तसे इस स्तोत्रको लिखकर अपने घरमें रखता है, उसकी आयु, सम्पत्ति तथा बलकी प्रतिदिन वृद्धि होती है। जो बुद्धिमान् पुरुष कभी इस स्तोत्रको लिखकर ब्राह्मणको देता है, उसके पूर्वज मुक्त होकर श्रीविष्णुके परमपदको प्राप्त होते हैं। चारों वेदोंका पाठ करनेसे जो फल होता है, वही फल मनुष्य इस स्तोत्रका पाठ और जप करके पा लेता है। अतः भक्तिमान् पुरुषको यत्नपूर्वक इस स्तोत्रका पाठ करना चाहिये। इसके पढ़नेसे मनुष्य सब कुछ पाता है और सुखपूर्वक रहकर उत्तरोत्तर उन्नतिको प्राप्त होता है। 1 - ************** IETF सज ( व्रत पालन) के द्वारा इन्द्रियोंको वशमें रखते हुए पिताका एकोद्दिष्ट श्राद्ध किया करते थे। पहले दिन रात्रिमें सुख और सौभाग्य प्रदान करनेवाले ब्राह्मणोंको निमन्त्रण देते और निर्मल प्रभातकाल आनेपर दूसरेदूसरे नये बर्तन मँगाते तथा उन सभी बर्तनोंमें अपनी स्त्रीके द्वारा पाक तैयार कराते थे। वह पाक अठारह रसोंसे युक्त एवं पितरोंको संतोष प्रदान करनेवाला होता था। पाक तैयार होनेपर वे पृथक् पृथक् ब्राह्मणोंको बुलावा भेजकर बुलवाते थे। एक बार उक्त समयपर निमन्त्रण पाकर समस्त वेदपाठी ब्राह्मण दोपहरीमें देवशर्माके घर उपस्थित हुए। विप्रवर देवशमनि अर्घ्य पाद्यादि निवेदन करके विधिपूर्वक उनका स्वागत-सत्कार किया। फिर घरके भीतर जानेपर सबको बैठनेके लिये आसन दिया और विशेषतः मिष्टात्रके साथ उत्तम अन्न उन्हें भोजन करनेके
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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