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________________ उत्तरखण्ड ] • PAARON. गण्डकी नदीका माहात्य तथा अभ्युदय एवं और्ध्वदेहिक नामक स्तोत्रका वर्णन ७२७ अहं ते हृदयं राम जिह्वा देवी सरस्वती ।। १५ ।। यत्परं श्रूयते ज्योतिर्यत्परं श्रूयते परम् ॥ २२ ॥ देवा रोमाणि गात्रेषु निर्मितास्ते स्वमायया । यत्परं परतश्चैव परमात्मेति कथ्यते । निमेषस्ते स्मृता रात्रिरुन्मेषो दिवसस्तथा ।। १६ ।। परो मन्त्रः परं तेजस्त्वमेव हि निगद्यसे ॥ २३ ॥ जो परम ज्योतिःस्वरूप तत्त्व सुना जाता है, जो परम उत्कृष्ट परब्रह्मके नामसे श्रवणगोचर होता है, जिसे परात्पर परमात्मा कहा जाता है तथा जो परम मन्त्र और परम तेज है, उसके रूपमें आपके ही स्वरूपका प्रतिपादन किया जाता है। श्रीराम ! मैं (ब्रह्मा) आपका हृदय हूँ, सरस्वती देवी जिल्हा हैं तथा आपके द्वारा अपनी मायासे उत्पन्न किये हुए देवता आपके अङ्गोंमें रोम हैं। आपका आँख मूँदना रात्रि और आँख खोलना दिन है। संस्कारस्तेऽभवद्देहो नैतदस्ति विना त्वया । जगत्सर्वं शरीरं ते स्थैर्यं च वसुधातलम् ॥ १७ ॥ हव्यं कव्यं पवित्रं च प्राप्तिः स्वर्गापवर्गयोः । अप्रिः कोपः प्रसादस्ते शेषः श्रीमांश्च लक्ष्मणः । स्थित्युत्पत्तिविनाशांस्ते त्वामाहुः प्रकृतेः परम् ॥ २४ ॥ यज्ञश्च यजमानश्च होता चाध्वर्युरेव च । भोक्ता यज्ञफलानां च त्वं वै वेदैश्च गीयसे ।। २५ ।। शरीर और संस्कारकी उत्पत्ति आपसे ही हुई है। आपके बिना इस जगत् की स्थिति नहीं है। सम्पूर्ण विश्व आपका शरीर है, पृथ्वी आपकी स्थिरता है, अग्नि आपका कोप है और शेषावतार श्रीमान् लक्ष्मण आपके प्रसाद हैं। त्वया लोकास्त्रयः क्रान्ताः पुरा स्वैर्विक्रमैस्त्रिभिः ॥ १८ ॥ त्वयेन्द्रश्च कृतो राजा बलिर्बद्धो महासुरः । लोकान् संहत्य कालस्त्वं निवेश्यात्मनि केवलम् ॥ १९ ॥ होता, अध्वर्यु तथा यज्ञफलोंके भोक्ता कहे जाते हैं। सीता लक्ष्मीर्भवान् विष्णुर्देवः कृष्णः प्रजापतिः । वधार्थं रावणस्य त्वं प्रविष्टो मानुषीं तनुम् ॥ २६ ॥ हव्य (यज्ञ), कव्य (श्राद्ध), पवित्र, स्वर्ग और मोक्षकी प्राप्ति, संसारकी उत्पत्ति, स्थिति तथा संहारये सब आपके ही कार्य हैं। ज्ञानी पुरुष आपको प्रकृतिसे पर बतलाते हैं। वेदोंके द्वारा आप ही यज्ञ, यजमान, 1 करोष्येकार्णवं घोरं दृश्यादृश्ये च नान्यथा । पूर्वकालमें वामनरूप धारण कर आपने अपने तीन पगोंसे तीनों लोक नाप लिये थे तथा महान् असुर बलिको बाँधकर इन्द्रको स्वर्गका राजा बनाया था। आप ही कालरूपसे समस्त लोकोंका संहार करके अपने भीतर लीनकर सब ओर केवल भयङ्कर एकार्णवका दृश्य उपस्थित करते हैं। उस समय दृश्य और अदृश्यमें कुछ भेद नहीं रह जाता।' सीता साक्षात् लक्ष्मी हैं और आप स्वयंप्रकाश विष्णु, कृष्ण एवं प्रजापति हैं। आपने रावणका वध करनेके लिये ही मानव शरीरमें प्रवेश किया है। तदिदं च त्वया कार्य कृतं कर्मभृतां वर । निहतो रावणो राम प्रहृष्टा देवताः कृताः ॥ २७ ॥ कर्म करनेवालोंमें श्रेष्ठ श्रीरामचन्द्रजी ! आपने भयदः सर्वभूतानां हिरण्यकशिपुर्हतः । त्वया सिंहवपुः कृत्वा परमं दिव्यमद्भुतम् ॥ २० ॥ हमारा यह कार्य पूरा कर दिया। रावण मारा गया, इससे सम्पूर्ण देवताओंको आपने बहुत प्रसन्न कर दिया है। अमोघं देव वीर्य ते नमोऽमोघपराक्रम । अमोघं दर्शनं राम अमोघस्तव संस्तवः ॥ २८ ॥ आपने नृसिंहावतारके समय परम अद्भुत एवं दिव्य सिंहका शरीर धारण करके समस्त प्राणियोंको भय देनेवाले हिरण्यकशिपु नामक दैत्यका वध किया था । त्वमश्चवदनो भूत्वा पातालतलमाश्रितः ॥ २१ ॥ संहतं परमं दिव्यं रहस्यं वै पुनः पुनः । आपने ही हयग्रीव अवतार धारण करके पातालके भीतर प्रवेशकर दैत्योंद्वारा अपहरण किये हुए वेदोंके परम रहस्य और यज्ञ-यागादिके प्रकरणोंको पुनः प्राप्त किया। 1 देव ! आपका बल अमोघ है अचूक पराक्रम कर दिखानेवाले श्रीराम ! आपको नमस्कार है। राम ! आपके दर्शन और स्तवन भी अमोघ हैं। अमोघास्ते भविष्यन्ति भक्तिमन्तो नरा भुवि । च त्वां देव संभक्ताः पुराणं पुरुषोत्तमम् ॥ देव ! जो मनुष्य इस पृथ्वीपर आप पुराण ये २९ ॥
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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