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________________ ७२० अर्चयस्व पीकेशं यदीच्छसि परं पदम् ..... [संक्षिप्त पयपुराण ८९० सद्यःमानन्तलक्ष्मीकृत्-पृथ्वीको शीघ्र ९१५ महर्षिराट्-महर्षियोंमें अधिक तेजस्वी, ९१६ ही अनन्त लक्ष्मीसे परिपूर्ण करनेवाले, ८९१ भृगुः-ब्रह्माजीके पुत्र प्रजापति भृगुस्वरूप, ९१७ नष्टनिःशेषधर्मवित्-नष्ट हुए सम्पूर्ण धोंके ज्ञाता, विष्णुः-बारह आदित्योंमेंसे एक, ९१८ ८९२ अनन्तस्वर्णयागैकहेमपूर्णाखिलद्विजः- आदित्येश:-बारह आदित्योंके स्वामी, ९१९ अनन्त सुवर्णको दक्षिणाओंसे युक्त यज्ञोका अनुष्ठान बलिवराट-बलिको इन्द्र बनानेवाले ॥२८८॥ कराकर सम्पूर्ण ब्राह्मणोंको स्वर्णसे सम्पत्र वायुर्वह्निः शुषिश्रेष्ठः शङ्करो रुद्ररागुरुः । करनेवाले ॥ २८५॥.... ....... विद्वत्तमश्चितरथो गन्धर्वाग्योऽक्षरोत्तमः ॥ २८९ ॥ असाध्यैकजगच्छास्ता विश्वबन्धो जयध्वजः । . ९२० वायु:-वायुतत्त्वके अधिष्ठाता देवता, आत्मतत्त्वाधिपः कर्तृश्रेष्ठो विधिरुमापतिः ।। २८६ ॥ ९२१ वह्निः-अग्नितत्त्वके अधिष्ठाता देवता, ९२२ ८९३ असाध्यैकजगच्छास्ता-किसीके वशमें शुचिश्रेष्ठः-पवित्रोंमें श्रेष्ठ, ९२३ शङ्करः-सबका न होनेवाले सम्पूर्ण जगत्के एकमात्र शासक, ८९४ कल्याण करनेवाले शिवरूप, ९२४ रुवराट-ग्यारह विश्वबन्धः-समस्त विश्वको अपनी मायासे बाँध रुद्रोंके स्वामी, ९२५ गुरुः-गुरु नामसे प्रसिद्ध रखनेवाले, ८९५ -जयध्वजः-सर्वत्र अपनी अङ्गिरापुत्र बृहस्पतिरूप, ९२६ विद्वत्तमः-सर्वश्रेष्ठ विजयपताका फहरानेवाले, ८९६ आत्पतत्त्वाधिप:- विद्वान्, ९२७ चित्ररथः-विचित्र रथवाले गन्धक आत्मतत्त्वके स्वामी, ८९७ कर्तृश्रेष्ठः-कर्ताओंमें श्रेष्ठ, राजा, ९२८ गन्धर्वाग्यः-गन्धर्वोमें अग्रगण्य ८९८ विधिः-शास्त्रीय विधिरूप, - ८९९ चित्ररथरूप. ९२९ अक्षरोत्तमः-अक्षरोंमें उत्तम उमापतिः-उमाके स्वामी ।। २८६॥ 'ॐ'कारस्वरूप ।। २८९ ॥ भर्तृश्रेष्ठः प्रजेशाग्र्यो मरीचिर्जनकापणीः। - वर्णादिरम्यस्त्री गौरी शक्त्यग्या श्रीश्च नारदः । कश्यपो देवराडिन्द्रः प्रहादो दैत्यराट् शशी ॥ २८७ ॥ देवर्षिराट्याण्डवाश्योऽर्जुनो वादः प्रवादराट् ॥ २९० ॥ ९०० भर्तृश्रेष्ठः-भरण-पोषण करनेवालोंमें ९३० वर्णादिः-समस्त अक्षरोंके आदिभूत सर्वश्रेष्ठ, ९०१ प्रजेशायः-प्रजापतियोंमें अप्रगण्य, अकारस्वरूप, ९३१ अयस्त्री-स्त्रियोंमे अग्रगण्य ९०२ मरीचिः-मरीचि नामक प्रजापतिरूप, ९०३ सती पार्वतीरूप, ९३२ गौरी-गौरवर्णा उमारूप, जनकाग्रणी:-जन्म देनेवाले प्रजापतियोंमें श्रेष्ठ, ९०४ ९३३ शक्त्यग्र्या-भगवान्की अन्तरक्षा शक्तियोंमें कश्यपः-सर्वद्रष्टा कश्यप मुनिस्वरूप, ९०५ सर्वश्रेष्ठ भगवती लक्ष्मीरूप, ९३४ श्री:- भगवान् देवराट-देवताओंके राजा, ९०६ इन्द्रः-परम विष्णुका आश्रय लेनेवाली लक्ष्मी, ९३५ नारदःऐश्वर्यशाली इन्द्रस्वरूप, ९०७ प्रहादः-भगवद्भक्तिके सबको ज्ञान देनेवाले देवर्षि नारदरूप, ९३६ प्रभावसे अत्यन्त आहादपूर्ण रानी कयाधूके पुत्ररूप,९०८ देवर्षिराट्-देवर्षियोंके राजा, ९३७ पाण्डवाश्य:दैत्यराट्-दैत्योंके स्वामी प्रहादरूप, ९०९ शशी- पाण्डवोंमें अपने गुणोंके कारण श्रेष्ठ अर्जुनरूप, ९३८ खरगोशका चिह्न धारण करनेवाले चन्द्रमारूप ॥ २८७ ॥ अर्जुन:-अर्जुन नामसे प्रसिद्ध कुन्तीके तृतीय पुत्र, नक्षत्रेशो रविस्तेजःश्रेष्ठः शुक्रः कवीश्वरः। ॐ ९३९ वादः-तत्त्वनिर्णयके उद्देश्यसे शुद्ध नीयतके महर्षिराइभृगुर्विष्णुरादित्येशो बलिस्वराट् ।। २८८॥ साथ किये जानेवाले शास्त्रार्थरूप, ९४० प्रवादराट् ९१० नक्षत्रेशः-नक्षत्रोंके स्वामी चन्द्रमारूप, उत्तम वाद करनेवालोंमें श्रेष्ठ ॥ २९०॥ ९११ रविः-सूर्यस्वरूप, ९१२ तेजःश्रेष्ठः- पावनः पावनेशानो वरुणो यादसां पतिः । तेजस्वियोंमें सबसे श्रेष्ठ, ९१३ शुक्रः-भृगुके पुत्र गङ्गा तीर्थोत्तमो चूतं छलकाम्यं वरौषधम् ॥ २९१ ।। शुक्राचार्यस्वरूप, ९१४ कवीश्वरः-कवियोंके स्वामी, ९४१ पावनः-सबको पवित्र करनेवाले, ९४२
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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