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उत्तरखण्ड ]
. नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रका वर्णन .
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पावनेशानः-पावन वस्तुओंके ईश्वर, ९४३ वरुण:- ९६७ मेरु:-मेरु नामक दिव्य पर्वतरूप, ९६८ जलके अधिष्ठाता देवता वरुणरूप, ९४४ यादसां पति:- गिरिपति:-पर्वतोंके स्वामी, ९६९ मार्ग:-मार्गशीर्ष जल-जन्तुओंके स्वामी, ९४५ गङ्गा-भगवान् विष्णुके (अगहन) का महीना, ९७० मासाम्यः-मासोंमें चरणोंसे प्रकट हुई परम पवित्र नदी, जो भूतलमें भागीरथीके अग्रगण्य मार्गशीर्षस्वरूप, ९७१ कालसत्तमःनामसे विख्यात एवं भगवद्विभूति है, ९४६ तीर्थोत्तमः- समयोंमें सर्वश्रेष्ठ-ब्रह्मवेला, ९७२ दिनाद्यात्मा-दिन तीर्थोंमें उत्तम गङ्गारूप, ९४७ द्यूतम्-छल करनेवालोंमें और रात्रि दोनोंका सम्मिलित रूप-प्रभात या ब्रह्मवेला, द्यूतरूप भगवान्की विभूति, ९४८ छलकाम्यम्- ९७३ पूर्वसिद्धः-आदि सिद्ध महर्षि कपिलरूप, छलकी पराकाष्ठा जूआरूप. ९४९ वरौषधम्- जीवनकी ९७४ कपिल:-कपिल वर्णवाले एक मुनि, जो रक्षा करनेवाली श्रेष्ठ ओषधि- अत्ररूप ॥२९१॥ भगवान्के अवतार हैं. ९७५ साम-सहस्र शाखाओंसे अन्नं सुदर्शनोऽस्वायं वज्र प्रहरणोत्तमम्। विशिष्ट सामवेद. ९७६ वेदरा-वेदोंके राजा उचैःश्रवा वाजिराज ऐरावत इमेश्वरः ॥ २९२ ।। सामवेदरूप ।। २९४ ॥ --९५० अन्नम्-प्राणियोंकी क्षुधा दूर करनेवाला तायः खगेन्द्र ऋत्वयो वसन्तः कल्पपादपः। धरतीसे उत्पन्न स्वाद्य पदार्थ, ९५१ सुदर्शन:-देखने में दातृश्रेष्ठः कामधेनुरार्तिघ्रायः सुहृत्तमः ।। २९५ ॥ सुन्दर तेजस्वी अस्त्र-सुदर्शनचक्ररूप, ९५२ ९७७ तार्थ्यः-तार्क्ष (कश्यप) ऋषिके पुत्र अस्वायम्-समस्त अस्त्रोंमें श्रेष्ठ सुदर्शन, ९५३ गरुड़रूप, ९७८ खगेन्द्रः-पक्षियोंके राजा गरुड़, वज्रम्-इन्द्रके आयुधस्वरूप, ९५४ प्रहरणोत्तमम्- ९७९ ऋत्वयः-ऋतुओंमें श्रेष्ठ वसन्तरूप, ९८० प्रहार करनेयोग्य आयुधोंमें उत्तम वज्ररूप, ९५५ वसन्तः-चैत्र और वैशाख मास, ९८१ कल्पउचैःश्रवाः-ऊँचे कानोंवाला दिव्य अश्व, जो समुद्रसे पादप:-कल्पवृक्षस्वरूप, ९८२ दातृश्रेष्ठःउत्पन्न हुआ था, ९५६ वाजिराजः-घोड़ोंके राजा मनोवाञ्छित वस्तु देनेवालोंमें श्रेष्ठ कल्पवृक्ष, ९८३ उच्चैःश्रवारूप, ९५७ ऐरावतः-समुद्रसे उत्पन्न इन्द्रका कामधेनु:-अभीष्ट पूर्ण करनेवाली गोरूप, ९८४ वाहन ऐरावत नामक हाथी, ९५८ इभेश्वरः-हाथियोंके आर्तिघ्नायः-पीड़ा दूर करनेवालोंमें सर्वश्रेष्ठ, ९८५ राजा ऐरावतस्वरूप ॥ २९२ ।।
सुहत्तमः-परम हितैषी ॥ २९५॥ असन्धत्येकपनीशो ह्यश्वत्थोऽशेषवक्षराट्। चिन्तामणिमुरुश्रेष्ठो माता हिततमः पिता । अध्यात्मविद्या विद्याश्यः प्रणवश्छन्दसां वरः ।। २९३ ॥ सिंहो मृगेन्द्रो नागेन्द्रो वासुकिनवरो नृपः ।। २९६ ।।
९५९ अरुन्धती-पतिव्रताओंमें श्रेष्ठ अरुन्धती- ९८६ चिन्तामणिः-मनमें चिन्तन की हुई स्वरूप, ९६० एकपत्नीशः-पतिव्रता अरुन्धतीके इच्छाको पूर्ण करनेवाली भगवत्स्वरूप दिव्य मणि, स्वामी महर्षि वसिष्ठरूप, ९६१ अश्वत्थः-पीपलके ९८७ गुरुश्रेष्ठः-गुरुओमें श्रेष्ठ मातारूप, ९८८ वृक्षरूप, ९६२ अशेषवृक्षराट्-सम्पूर्ण वृक्षोंके राजा माता-जन्म देनेवाली जननी, ९८९ हिततमःअश्वत्थरूप, ९६३ अध्यात्पविद्या-आत्मतत्त्वका सबसे बड़े हितकारी, ९९० पिता-जन्मदाता, ९९१ बोध करानेवाली ब्रह्मविद्यास्वरूप, ९६४ विद्याम्यः- सिंहः-मृगोंके राजा सिंहस्वरूप, ९९२ विद्याओमें अग्रगण्य प्रणवरूप, ९६५ प्रणवः- मृगेन्द्रः-समस्त वनके जन्तुओंका स्वामी सिंहरूप, ओंकाररूप, ९६६ छन्दसां वरः-वेदोंका आदिभूत ९९३ नागेन्द्रः-नागोंके राजा, ९९४ ओकार, अथवा मन्त्रोंमें श्रेष्ठ प्रणव ।। २९३ ॥ वासुकिः-नागराज वासुकिरूप, ९९५ नवरःमेरुर्गिरिपतिर्मागों मासायः कालसत्तमः। मनुष्योंमें श्रेष्ठ, ९९६ नृपः-मनुष्योंका पालन दिनाद्यात्मा पूर्वसिद्धः कपिलः साम वेदराट् ॥ २९४ ॥ करनेवाले राजारूप ॥ २९६ ॥