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उत्तरखण्ड ]
. नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रका वर्णन .
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८५४ महाभारतनिर्माता-महाभारत ग्रन्थके सम्पूर्ण पदार्थोको शून्यरूप ही माननेवाले, ८७६ रचयिता, ८५५ कवीन्द्रः-कवियोंके राजा, ८५६ अखिलेष्टदः-सबको सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ बादरायण:-बदरी-वनमें उत्पन्न भगवान् वेदव्यास- देनेवाले ॥ २८१ ॥ रूप, ८५७ कृष्णद्वैपायन:-द्वीपमें उत्पन्न श्याम चतुष्कोटिपृथक्तत्त्वप्रज्ञापारमितेश्वरः । वर्णवाले व्यासजी, ८५८ सर्वपुरुषार्थंकबोधकः- पाखण्डवेदमार्गेशः पाखण्डश्रुतिगोपकः ।। २८२ ॥ समस्त पुरुषार्थोके एकमात्र बोध करानेवाले ।। २७८ ॥ ८७७ चतुष्कोटिपृथक्-स्थावर आदि चार वेदान्तकर्ता ब्रह्मैकव्याकः पुरुवंशकृत् । श्रेणियोंमें विभक्त हुई सृष्टिसे पृथक्, ८७८ तत्त्वबुद्धो ध्यानजिताशेषदेवदेवीजगत्प्रियः ॥ २७९ ॥ प्रज्ञापारमितेश्वरः-तत्त्वभूत प्रज्ञापारमिता' (बुद्धिको
८५९ वेदान्तकर्ता-वेदान्तसूत्रोंके रचयिता, पराकाष्ठा) के ईश्वर, ८७९ पाखण्डवेदमागेंश:८६० ब्रह्मैकव्यञ्जकः-एक अद्वितीय ब्रह्मकी पाखण्ड-वेदमार्गके स्वामी, ८८० पाखण्डअभिव्यक्ति करानेवाले, ८६१ पुरुवंशकृत्- श्रुतिगोपकः-पाखण्डके द्वारा प्रतिपादित वेदको पुरुवंशकी परम्परा सुरक्षित रखनेवाले, ८६२ श्रुतियोंके रक्षक ।। २८२ ॥ । बुद्धः-भगवानके अवतार बुद्धदेव, ८६३ कल्की विष्णुयशःपुत्रः कलिकालविलोपकः । ध्यानजिताशेषदेवदेवीजगत्प्रियः-ध्यानके द्वारा समस्तम्लेच्छदुष्टनः सर्वशिष्टद्विजातिकृत् ॥ २८३ ॥ समस्त देव-देवियोंको जीतकर जगत्के प्रियतम ८८१ कल्की -कलियुगके अन्तमें होनेवाला बननेवाले ।। २७९ ॥
भगवान्का एक अवतार, ८८२ विष्णुयशःपुत्रःनिरायुधो जगजैत्रः श्रीधनो दुष्टमोहनः । श्रीविष्णुयशाके पुत्र भगवान् कल्कि, ८८३ कलिकालदैत्यवेदबहिष्कर्ता । वेदार्थश्रुतिगोपकः ॥ २८०॥ विलोपकः-कलियुगका लोप करके सत्ययुगका प्रवेश
८६४ निरायुधः-अस्त्र-शस्त्रोंका त्याग करानेवाले, ८८४ समस्तम्लेच्छदुष्टनः-सम्पूर्ण करनेवाले, ८६५ जगजैत्रः-सम्पूर्ण जगत्को वशमें म्लेच्छों और दुष्टोंका वध करनेवाले, ८८५ करनेवाले, ८६६ श्रीधनः-शोभाके धनी, ८६७ सर्वशिष्टद्विजातिकृत्-सबको श्रेष्ठ द्विज बनानेवाले दुष्टमोहनः-दुष्टोको मोहित करनेवाले, ८६८ अथवा समस्त साधु द्विजातियोंके रक्षक ॥ २८३ ।। दैत्यवेदबहिष्कर्ता-दैत्योंको वेदसे बहिष्कृत सत्यप्रवर्तको देवद्विजदीर्घक्षुधापहः । करनेवाले, ८६९ वेदार्थश्रुतिगोपक:-वेदोके अर्थ अश्ववारादिरेकान्तपृथ्वीदुर्गतिनाशनः ॥२८४ ॥ और श्रुतियोंको गुप्त रखनेवाले ॥२८० ॥
८८६ सत्यप्रवर्तकः-सत्ययुगकी प्रवृत्ति शौद्धोदनिर्दष्टदिष्टः सुखदः सदसस्पतिः। करानेवाले, ८८७ देवद्विजदीर्घक्षुधापहः-[यज्ञ और यथायोग्याखिलकृपः सर्वशून्योऽखिलेष्टदः ॥ २८१॥ ब्राह्मण-भोजन आदिका प्रचार करके] देवताओं और
८७० शौद्धोदनिः-कपिलवस्तुके राजा ब्राह्मणोंकी बढ़ी हुई भूखको शान्त करनेवाले, ८८८ शुद्धोदनके पुत्र, ८७१ दृष्टदिष्टः-दैवके विधानको अश्ववारादिः-घुड़सवारों में श्रेष्ठ, ८८९ प्रत्यक्ष देखनेवाले, ८७२ सुखदः-सबको सुख एकान्तपृथ्वीदुर्गतिनाशन:-पृथ्वीकी दुर्गतिका देनेवाले, ८७३ सदसस्पतिः-सत्पुरुषोकी सभाके पूर्णतया नाश करनेवाले ॥ २८४ ॥ अध्यक्ष, ८७४ यथायोग्याखिलकृपः-यथायोग्य सद्यःक्ष्मानन्तलक्ष्मीकन्नष्टनिःशेषधर्मवित् । सम्पूर्ण जीवोंपर कृपा रखनेवाले, ८७५ सर्वशून्यः- अनन्तस्वर्णयागैकहेमपूर्णाखिलद्विजः ॥२८५ ॥
१-दस पारमिताओमेसे एकका नाम प्रज्ञापारमिता है।