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... अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त पयपुराण
५५१ द्रोणाचार्यगुरु:-आचार्य द्रोणके गुरु, धोका उपदेश करनेवाले, ५७३ प्रवर्तकः-उक्त ५५२ विश्वजैत्रधन्वा-विश्वविजयी धनुष धारण धर्मोका प्रचार करनेवाले ।। २१६॥ करनेवाले, ५५३ कृतान्तजित्-कालको भी परास्त सूर्यवंशध्वजो रामो राघवः सद्गुणार्णवः । करनेवाले, ५५४ अद्वितीयतपोमूर्ति:-अद्वितीय काकुत्स्थो वीरराजायों राजधर्मधुरन्धरः ॥ २१७ ।। तपस्याके मूर्तिमान स्वरूप, ५५५ ब्रह्मचर्यैकदक्षिण:- ५७४ सूर्यवंशध्वजः-सूर्यवंशकी कीर्ति ब्रह्मचर्यपालनमें एकमात्र दक्ष ।। २१३ ॥
पताका फहरानेवाले श्रीरघुनाथजी, ५७५ रामःमनुश्रेष्ठः सतां सेतुर्महीयान् वृषभो विराट्। योगीजनोंके रमण करनेके लिये नित्यानन्दस्वरूप आदिराजः क्षितिपिता सर्वरौकदोहकृत् ।। २१४ ॥ परमात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचन्द्रजी, ५७६
५५६ मनुश्रेष्ठः-मनुष्यों में श्रेष्ठ राजा पृथु, ५५७ राघव:-रघुकुलमें जन्म ग्रहण करनेवाले, ५७७ सतां सेतुः-सेतुके समान सत्पुरुषोंकी मर्यादाके रक्षक, सद्गुणार्णवः-उत्तम गुणोंके सागर, - ५७८ अथवा सत्पुरुषोंके लिये सेतुरूप, ५५८ महीयान्- काकुत्स्थ:-ककुत्स्थ-पदवी धारण करनेवाले राजा बड़ोंसे भी बड़े महापुरुष, ५५९ वृषभः- पुरञ्जयकी कुल-परम्परामें अवतीर्ण, ५७९ वीरकामनाओंकी वर्षा करनेवाले श्रेष्ठ राजा, ५६० विराट्- राजार्य:-वीर राजाओमे श्रेष्ठ, ५८० राजधर्मतेजस्वी राजा, ५६१ आदिराजः-मनुष्योंमें सबसे धुरन्धरः-राजधर्मका भार वहन करनेवाले ॥ २१७ ।। प्रथम राजाके पदसे विभूषित, ५६२ क्षितिपिता- नित्यस्वस्थाश्रयः सर्वभग्राही शुभैकदक। पृथ्वीको अपनी कन्याके रूपमें स्वीकार करनेवाले, नररत्रं रखगर्भो धर्माध्यक्षो महानिधिः ॥ २१८ ॥ ५६३ सर्वरकदोहक़त्-गोरूपधारिणी पृथ्वीसे ५८१ नित्यस्वस्थाश्रयः-सदा अपने स्वरूप में समस्त रत्नोंके एकमात्र दुहनेवाले ।। २१४ ॥ स्थित रहनेवाले महात्माओंके आश्रय, ५८२ सर्वभद्रपृथुर्जन्यायेकदक्षो गी:श्रीकीर्तिस्वयंवृतः । ग्राही-समस्त कल्याणोंकी प्राप्ति करानेवाले, ५८३ जगवृत्तिप्रदचक्रवर्तिश्रेष्ठोऽभूयास्त्रक ॥२१५ ॥ शुभैकदृक-एकमात्र शुभकी ओर ही दृष्टि रखनेवाले,
५६४ पृथः-अपने यशसे प्रख्यात पृथु नामक ५८४ नररत्नम्-मनुष्योंमें श्रेष्ठ, ५८५ राजा, ५६५ जन्माघेकदक्षः-उत्पत्ति, पालन और रत्नगर्भ:-अपनी माताके गर्भके रत्न अथवा अपने संहारमें एकमात्र कुशल, ५६६ गी:श्रीकीर्तिस्वयं- भीतर रत्नमय गुणोंको धारण करनेवाले, ५८६ वृतः-वाणी, लक्ष्मी और कीर्तिके द्वारा स्वयं वरण धर्माध्यक्षः-धर्मके साक्षी, ५८७ महानिधिःकिये हुए, ५६७ जगवृत्तिप्रदः-संसारको जीविका अखिल भूमण्डलके सम्राट् होनेके कारण बहुत बड़े प्रदान करनेवाले, ५६८ चक्रवर्तिश्रेष्ठः-चक्रवर्ती कोषवाले ॥२१८॥ राजाओंमें श्रेष्ठ, ५६९ अद्वयाखाधक-अद्वितीय सर्वश्रेष्ठाश्रयः सर्वशस्त्रास्त्रप्रामवीर्यवान् । शस्त्रधारी वीर ॥ २१५॥ ...
जगदीशो दाशरथिः सर्वरनाश्रयो नृपः ।। २१९ ।। सनकादिमुनिप्राप्यभगवद्भक्तिवर्धनः . । ... ५८८ सर्वश्रेष्ठाश्रयः-सबसे श्रेष्ठ आश्रय, वर्णाश्रमादिधर्माणां कर्ता वक्ता प्रवर्तकः ।। २१६ ॥ ५८९ सर्वशस्त्रास्त्रप्रामवीर्यवान् समस्त अस्त्र
५७०६ सनकादिमुनिप्राप्यभगवद्भक्ति- शस्त्रोंके समुदायको शक्ति रखनेवाले, ५९० वर्धनः-सनकादि मुनियोंसे प्राप्त होने योग्य जगदीशः-सम्पूर्ण जगत्के. स्वामी, ५९१ भगवद्भक्तिका विस्तार करनेवाले, ५७१ वर्णाश्रमादि- दाशरथि:-अयोध्याके चक्रवर्ती नरेश महाराज धर्माणां कर्ता-वर्ण और आश्रम आदिके धकि दशरथके प्राणाधिक प्रियतम पुत्र, ५९२ सर्वरनाश्रयो बनानेवाले, ५७२ वक्ता-वर्ण और आश्रम आदिके नृपः-सम्पूर्ण रत्नोंके आश्रयभूत राजा ।। २१९ ।।