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उत्तरखण्ड ] . नाम-कीर्तनकी महिमा नथा श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन .
७११ .............................................................................................. समस्तथर्मसूः सर्वधर्मद्रष्टाखिलार्तिहा। चलाये हुए सौंकके बाणको ब्रह्मा आदि देवताओंने भी अतीन्द्रो ज्ञानविज्ञानपारद्रष्टा क्षमाम्बुधिः ॥ २२०॥ मस्तक झुकाया था, ऐसे प्रभावशाली भगवान् श्रीराम,
५९३ समस्तधर्मसूः-समस्त धर्मोको उत्पत्र ६१२ मारीचन्नः-मायामय मृगका रूप धारण करनेवाले, ५९४ सर्वधर्मद्रष्टा-सम्पूर्ण धर्मोपर दृष्टि करनेवाले मारीच नामक राक्षसके नाशक, ६१३ रखनेवाले, ५९५ अखिलार्तिहा-सबकी पीड़ा दूर विराधहा-विराधका वध करनेवाले ॥ २२३ ॥ करनेवाले अथवा समस्त पीड़ाओंके नाशक, ५९६ ब्रह्मशापहताशेषदण्डकारण्यपावनः । अतीन्द्रः-इन्द्रसे भी बढ़कर ऐश्वर्यशाली, ५९७ चतुर्दशसहस्रोग्ररक्षोकशरैकभक ॥ २२४ ॥ ज्ञानविज्ञानपारद्रष्टा-ज्ञान और विज्ञानके पारंगत, ६१४ ब्रह्मशापहताशेषदण्डकारण्यपावनः ५९८ क्षमाम्युधि:-क्षमाके सागर ॥ २२०॥ -ब्राह्मण (शुक्राचार्य) के शापसे नष्ट हुए सर्वप्रकृष्टः शिष्टेष्टो हर्षशोकाधनाकुलः । दण्डकारण्यको अपने निवाससे पुनः पावन बनानेवाले पित्राज्ञात्यक्तसाम्राज्यः सपनोदयनिर्भयः ॥ २२१ ॥ ६१५ चतुर्दशसहस्रोग्ररक्षोत्रैकशरैकधूक-चौदह
५९९ सर्वप्रकृष्टः-सबसे श्रेष्ठ, ६०० हजार भयङ्कर राक्षसोको मारनेकी शक्तिसे युक्त एकमात्र शिष्टेष्ट:-शिष्ट पुरुषोंके इष्टदेव, ६०१ हर्ष- वाण धारण करनेवाले ॥ २२४ ॥ शोकाधनाकुल:-हर्ष और शोक आदिसे विचलित खरारिस्थिशिरोहन्ता दूषणनो जनार्दनः। न होनेवाले, ६०२ पित्राज्ञात्यक्तसाम्राज्य:-पिताकी जटायुषोऽनिगतिदोऽगस्त्यसर्वस्वमन्त्रराट् ॥ २२५ ॥ आज्ञासे समस्त भूमण्डलका साम्राज्य त्याग देनेवाले, ६१६ खरारि:-खर नामक राक्षसके शत्रु, ६०३ सपनोदयनिर्भयः-शत्रुओके उदयसे भयभीत ६१७ त्रिशिरोहन्ता-त्रिशिराका वध करनेवाले, न होनेवाले ॥ २२१॥
६१८ दूषणनः-दूषण नामक राक्षसके प्राण गुहादेशार्पितैश्चर्यः शिवस्पर्धाजटाधरः। लेनेवाले, ६१९ जनार्दनः-भक्तलोग जिनसे अभ्युदय चित्रकूटाप्तरत्नादिर्जगदीशो वनेचरः ॥ २२२ ॥ एवं निःश्रेयसरूप परम पुरुषार्थको यांचना करते हैं,
- ६०४ गुहादेशार्पितैश्वर्यः-वनवासके समय ६२० जटायुषोऽग्निगतिदः-जटायुका दाह-संस्कार पर्वतकी कन्दराओको ऐश्वर्य समर्पित करनेवाले-अपने करके उन्हें उत्तम गति प्रदान करनेवाले, ६२१ निवाससे गुफाओको भी ऐश्वर्य-सम्पन्न बनानेवाले, अगस्त्यसर्वस्वमन्त्रराट्-जिनका नाम महर्षि अगस्त्यका ६०५ शिवस्पर्धाजटाधरः-शङ्करजीकी जटाओंसे सर्वस्व एवं मन्त्रोंका राजा है ॥ २२५ ॥ होड़ लगानेवाली जटाएँ धारण करनेवाले, ६०६ लीलाधनुष्कोट्यपास्तदुन्दुभ्यस्थिमहाबलः । चित्रकूटाप्तरत्नाट्रि:-चित्रकूटको निवास-स्थल सप्ततालव्यधाकृष्टध्वस्तपातालदानवः ।। २२६ ।। बनाकर उसे रत्नमय पर्वत (मेरुगिरि) की महत्ता प्राप्त ६२२ लीलाधनुष्कोट्यपास्तदुन्दुभ्यस्थिकरानेवाले, ६०७ जगदीशः-सम्पूर्ण जगत्के ईश्वर, महाचल:-खेल-खेलमें ही दुन्दुभि नामक दानवकी ६०८ वनेचरः-वनमें विचरनेवाले ॥ २२२ ॥ हड्डियोंके महान् पर्वतको धनुषकी नोकसे उठाकर दूर यथेष्टामोयसर्वास्त्री देवेन्द्रतनयाक्षिहा। फेंक देनेवाले, ६२३ सप्ततालव्यधाकृष्टध्वस्तब्रह्मेन्द्रादिनतैषीको मारीचनो विराधहा ॥ २२३ ॥ पातालदानवः-सात तालवृक्षोंके वेधसे आकृष्ट - ६०९ यथेष्टामोघसर्वास्त्र:-जिनके सभी अस्त्र होकर आये हुए पातालवासी दानवका विनाश इच्छानुसार चलनेवाले एवं अचूक हैं, ६१० देवेन्द्र- करनेवाले ॥ २२६ ॥ तनयाक्षिहा-देवराजके पुत्र जयन्तकी आँख सुग्रीवराज्यदोऽहीनमनसैवाभयप्रदः । फोड़नेवाले, ६११ ब्रह्मेन्द्रादिनतैषीकः-जिनके हनुमद्भगमुख्येशः समस्तकपिदेहभृत् ।। २२७ ।।