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उत्तरखण्ड ] -
• नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन .
विश्ववृक्षः-संसार-वृक्षरूप, ५१२ महाबल:- रखनेवाले सम्पूर्ण दैत्योका तेज हर लेनेवाले, ५३२ महान् बलसे युक्त. ५१३ राहुमूर्धापराङ्गच्छित्- परमामृतपद्यपः-परम अमृतमय कमलका रस पान राहुके मस्तक और धड़को काटकर अलग करनेवाले, करनेवाले, ५३३ अनसूयागर्भरत्नम्-अत्रिपत्नी ५१४, भृगुपत्रीशिरोहर:-भृगुपत्नीके मस्तकका अनसूयाजीके गर्भके रत्न, ५३४ भोगमोक्षसुखप्रदःअपहरण करनेवाले ॥ २०५॥ १०
. भोग और मोक्षका सुख प्रदान करनेवाले । २०९॥ पापात्रस्तः सदापुण्यो दैत्याशानित्यखण्डकः ।... जमदग्निकुलादित्यो रेणुकाद्भुतशक्तिधक् । पूरिताखिलदेवाशो ! विश्वार्थंकावतारकृत् ।। २०६॥ मातृहत्यादिनिलेपः स्कन्दजिद्विप्रराज्यदः ।। २१० ।।
+ ५१५ पापात्रस्त:-पापसे डरनेवाले, ५१६ ५३५ जमदग्निकुलादित्यः-मुनिवर जमदग्निक सदापुण्य:-निरन्तर पुण्यमें प्रवृत्त, ५१७ दैत्या- वंशको सूर्यके समान प्रकाशित करनेवाले परशुरामजी, शानित्यखण्डकः-धर्मविरोधी दैत्योंकी आशाका ५३६ रेणुकाद्भुतशक्तिक-माता रेणुकाको अद्भुत सदा खण्डन करनेवाले, ५१८ पूरिताखिलदेवाशः- शक्ति धारण करनेवाले, ५३७ मातृहत्यादिनिर्लेपःसम्पूर्ण देवताओंकी आशा पूर्ण करनेवाले, ५१९ मातहल्या आदि दोषोंसे निर्लिप्त रहनेवाले परशुरामजी, विश्वार्थकावतारकृत्-एकमात्र विश्वका कल्याण ५३८ स्कन्दजित्- कार्तिकेयजीको जीतनेवाले, ५३९ करनेके लिये अवतार लेनेवाले । २०६॥ .. विप्रराज्यदः-ब्राह्मणोंको राज्य देनेवाले ॥ २१० ॥ स्वमायानित्यगुप्तात्मा भक्तचिन्तामणिः सदा। - सर्वक्षत्रान्तकदीरदर्पहा कार्तवीर्यजित्। वरदः कार्तवीर्यादिराजराज्यप्रदोऽनघः ॥ २०७॥ सप्तद्वीपवतीदाता शिवार्चकयशःप्रदः ।। २११ ।।
५२० स्वमायानित्यगुप्तात्मा-अपनी मायासे ५४० सर्वक्षत्रान्तकृत्-समस्त क्षत्रियोंका निरन्तर अपने स्वरूपको छिपाये रखनेवाले, ५२१ सदा अन्त करनेवाले, ५४१ वीरदर्पहा-बड़े-बड़े वीरोका भक्तचिन्तामणिः-सदा भक्तोंका मनोरथ पूर्ण करनेके दर्प दलन करनेवाले, ५४२ कार्तवीर्यजित्-कृतवीर्यलिये चिन्तामणिके समान, ५२२ वरदः-भक्तोंको वर पुत्र अर्जुनको परास्त करनेवाले, ५४३ सप्तद्वीपवतीप्रदान करनेवाले, ५२३ कार्तवीर्यादिराजराज्यप्रदः- दाता-ब्राह्मणोंको सातों द्वीपोंसे युक्त पृथ्वीका दान कृतवीर्य-पुत्र अर्जुन आदि राजाओको राज्य देनेवाले, करनेवाले, ५४४ शिवार्चकयशःप्रदः-शिवकी पूजा ५२४ अनघः-स्वभावतः पापसे रहित ।। २०७॥ करनेवालेको यश देनेवाले ।। २११ ॥ विश्वश्लाघ्योऽमिताचारो दत्तात्रेयो मुनीश्वरः। भीमः परशुरामश्च शिवाचार्यकविश्वभूः। पराशक्तिसदाश्लिष्टो. योगानन्दसदोन्प्रदः ॥ २०८॥ शिवाखिलज्ञानकोशो भीष्माचार्योऽग्निदेवतः ।। २१२ ।।
५२५ विश्वश्लाघ्यः-समस्त संसारके लिये . ५४५ भीमः-भयङ्कर पराक्रम करनेवाले, प्रशंसनीय, ५२६ अमिताचार:-अपरिमित ५४६ परशुरामः-परशुरामरूपधारी भगवान्, ५४७ आचारवाले, ५२७ दत्तात्रेयः-अत्रिकुमार दत्त, जो शिवाचार्यकविश्वभूः-भगवान् शङ्करको गुरु बनाकर भगवान्के अवतार हैं, ५२८ मुनीश्वरः-मुनियोंके विद्या सीखनेवाले संसारमें एकमात्र पुरुष, ५४८ स्वामी, ५२९ पराशक्तिसदाश्लिष्टः-सदा शिवाखिलज्ञानकोश:-भगवान् शङ्करसे सम्पूर्ण पराशक्तिसे युक्त, ५३० योगानन्दसदोन्पदः- निरन्तर ज्ञानका कोष प्राप्त करनेवाले, ५४९ भीष्याचार्यःयोगजनित आनन्दमे विभोर रहनेवाले ॥ २०८॥ पाण्डवोंके पितामह भीष्मजीके आचार्य, ५५० समस्तेन्द्रारितेजोहत्परमामृतपापः । अनिदैवतः-अग्निदेवताके उपासक ॥ २१२ ॥ अनसूयागर्भरत्रं ..भोगमोक्षसुखप्रदः ।। २०९ ॥ द्रोणाचार्यगुरुर्विश्वजैत्रधन्वा कृतान्तजित् ।......,
५३१ समस्तेन्द्रारितेजोहत्-इन्द्रसे शत्रुता अद्वितीयतपोमूर्तिर्ब्रह्मचर्यैकदक्षिणः .. ॥ २१३ ॥