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उताखण्ड ] स
. नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन .
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दैत्यगर्भम्राविनामा स्फुटब्रह्माण्डगर्जितः। जा सकनेवाले, ४५३ मृत्युमृत्युः-मौतको भी स्मृतमात्राखिलत्राताद्भुतरूपो महाहरिः ।। १९१ ॥ मारनेवाले, ४५४ कालमृत्युनिवर्तकः-काल और
४३४ दैत्यगर्भस्राविनामा-जिनका नाम मृत्युका निवारण करनेवाले ।। १९४ ॥ सुनकर ही दैत्यपलियोंके गर्भ गिर जाते हैं-ऐसे असाध्यसर्वरोगन्नः सर्वदुर्घहसौम्यकृत् । भगवान् नृसिंह, ४३५ स्फुटब्रह्माण्डगर्जितः- गणेशकोटिदर्पघ्नो दुःसहाशेषगोत्रहा ।। १९५ ॥ जिनके गर्जनेपर सारा ब्रह्माण्ड फटने लगता है, ४३६ ४५५ असाध्यसर्वरोगघ्नः-सम्पूर्ण असाध्य स्मृतमात्राखिलत्राता-स्मरण करनेमात्रसे सम्पूर्ण रोगोंका नाश करनेवाले. ४५६ सर्वदुर्ग्रहसौम्यक्त्जगत्की रक्षा करनेवाले, ४३७ अद्भुतरूपः- समस्त दुष्ट ग्रहोंको शान्त करनेवाले, ४५७ आश्चर्यजनक रूप धारण करनेवाले, ४३८ महाहरिः- गणेशकोटिदर्पघ्नः-करोड़ों गणपतियोंका अभिमान महान् सिंहको आकृति धारण करनेवाले ॥ १९१॥ चूर्ण करनेवाले, ४५८ दुःसहाशेषगोत्रहा-समस्त ब्रह्मचर्यशिर:पिण्डी दिक्पालोऽर्धाङ्गभूषणः । दुस्सह शत्रुओंके कुलका नाश करनेवाले ॥ १९५॥ द्वादशार्कशिरोदामा रुद्रशीकनूपुरः ।। १९२ ।। देवदानवदुर्दशों जगदयदभीषकः ।
४३९ ब्रह्मचर्यशिरःपिण्डी-अपने शिरोभागमें समस्तदुर्गतिप्राता जगद्धक्षकभक्षकः ।। १९६ ॥ ब्रह्मचर्यको धारण करनेवाले, ४४० दिक्पाल:-समस्त ४५९ देवदानवदुर्दर्श:-देवता और दानवोंको दिशाओंका पालन करनेवाले, ४४१ अर्धाङ्गभूषणः- भी जिनकी ओर देखने में कठिनाई होती है— ऐसे
आधे अङ्गमें आभूषण धारण करनेवाले नृसिंह, ४४२ भगवान् नृसिंह, ४६० जगद्भयदभीषकः-संसारके द्वादशार्कशिरोदामा- मस्तकमें बारह सूर्योके समान भयदाता असुरोको भी भयभीत करनेवाले, ४६१ तेज धारण करनेवाले, ४४३ रुदशीकनूपुर:-जिनके समस्तदुर्गतित्राता-सम्पूर्ण दुर्गतियोंसे उद्धार चरणोंमें प्रणाम करते समय रुद्रका मस्तक एक नुपूरकी करनेवाले, ४६२ जगद्धक्षकभक्षकः-जगत्का भाँति शोभा धारण करता है, वे भगवान् ॥ १९२।। भक्षण करनेवाले कालके भी भक्षक ॥ १९६।। योगिनीग्रस्तगिरिजात्राता भैरवतर्जकः। उप्रेशोऽम्बरमार्जारः कालमूषकभक्षकः । वीरचक्रेश्वरोऽत्युप्रो यमारिः कालसंवरः ।। १९३ ।। अनन्तायुधदोर्दण्डी नृसिंहो वीरभद्रजित् ।। १९७ ।।
४४४ योगिनीग्रस्तगिरिजात्राता- योगिनियोंके ४६३ उप्रेशः-उन शक्तियोंपर शासन चंगुलमें फंसी हुई पार्वतीकी रक्षा करनेवाले, ४४५ करनेवाले, ४६४ अम्बरमार्जारः-आकाशरूपी भैरवतर्जकः-भैरवगणोंको डाँट बतानेवाले, ४४६ बिलाव, ४६५ कालमूषकभक्षकः-कालरूपी वीरचक्रेश्वरः-वौरमण्डलक ईश्वर, ४४७ चूहेको खा जानेवाले, ४६६ अनन्तायुधदोर्दण्डीअत्युप्रः-अत्यन्त भयङ्कर, ४४८ यमारि:- अपने बाहुदण्डोंको ही अक्षय आयुधोंके रूपमें धारण यमराजके शत्रु, ४४९ कालसंवरः- कालको करनेवाले, ४६७ नृसिंहः-नर तथा सिंह दोनोंकी आच्छादित करनेवाले ॥ १९३॥
.. आकृति धारण करनेवाले, ४६८ वीरभद्रजित्क्रोधेश्वरो रुद्रचण्डीपरिवारादिदुष्टभुक। वीरभद्रपर विजय पानेवाले ॥ १९७ ॥ सर्वाक्षोभ्यो मृत्युमृत्युः कालमृत्युनिवर्तकः ॥ १९४ ॥ योगिनीचक्रगुह्येशः शक्रारिपशुमांसभुक ।
४५० क्रोधेश्वरः-क्रोधपर शासन करनेवाले, रुद्रो नारायणो मेषरूपशङ्करवाहनः ॥ १९८॥ ४५१ रुद्रचण्डीपरिवारादिदुष्टभुक-रुद्र और ४६९ योगिनीचक्रगुह्येश:-योगिनीचण्डीके पार्षदोंमें रहनेवाले दुष्टोंके भक्षक, ४५२ मण्डलके रहस्योंके स्वामी, ४७० शक्रारिपशुसर्वाक्षोभ्यः-किसीके द्वारा भी विचलित नहीं किये मांसभुक्-इन्द्रके शत्रुभूत दैत्यरूपी पशुओंका भक्षण