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अर्चयस्व हृषीकेश यदीच्छसि पर पदम.
[संक्षिप्त पद्मपुराण
समस्तपितृभीतिघ्नः-सम्पूर्ण पितरोंके भयका निवारण ४१५ कोटिवज्राधिकनख:-करोड़ों वनोंसे करनेवाले, ३९९ समस्तपितृजीवनम्-समस्त भी अधिक तीक्ष्ण नखोवाले, ४१६ जगदुष्प्रेक्ष्यपितरोंके जीवनाधार ॥ १८३॥
मूर्तिधन-सम्पूर्ण जगत् जिसकी ओर कठिनतासे देख हव्यकव्यैकभुग्धव्यकव्यैकफलदायकः । सके, ऐसी भयानक मूर्ति धारण करनेवाले, ४१७ रोमान्तीनजलधिः क्षोभिताशेषसागरः ॥ १८४ ॥ मातृचक्रप्रमथनः-डाकिनी, शाकिनी, पूतना आदि + ४०० हव्यकव्यैकभुक्-हव्य और कव्य मातृ-मण्डलको मथ डालनेवाले, ४१८ महामातृ(यज्ञ और श्राद्ध) के एकमात्र भोक्ता, ४०१ हव्य- गणेश्वरः-अपनी शक्तिभूत दिव्य महामातृगणोंके कव्यैकफलदायक:-यज्ञ और श्राद्धके एकमात्र अधीश्वर ॥ १८७॥ फलदाता, ४०२ रोमान्तीनजलधिः- अपने रोम- अचिन्त्यामोघवीर्यााः समस्तासुरघस्मरः । कूपोंमें समुद्रको लीन कर लेनेवाले महावराह, ४०३ हिरण्यकशिपुच्छेदी काल: संकर्षणीपतिः ।। १८८॥ क्षोभिताशेषसागरः-वराहरूपसे पृथ्वीकी खोज करते ४१९ अचिन्त्यामोघवीर्यादयः-कभी व्यर्थ न समय समस्त समुद्रको क्षुब्ध कर डालनेवाले ॥ १८४॥ जानेवाले अचिन्त्य पराक्रमसे सम्पन्न, ४२० समस्तासुरमहावराहो यज्ञप्रध्वंसको याज्ञिकाश्रयः। घस्मरः-समस्त असुरोको ग्रास बनानेवाले, ४२१ श्रीनृसिंहो दिव्यसिंहः सर्वानिष्टार्थदुःखहा ।। १८५॥ हिरण्यकशिपुच्छेदी- हिरण्यकशिपु नामक दैत्यको
४०४ महावराहः-महान् वराहरूपधारी विदीर्ण करनेवाले, ४२२ काल:-असुरोके लिये भगवान्, ४०५ यज्ञन्नध्वंसक:-यज्ञमें विघ्न डालने- कालरूप, ४२३ संकर्षणीपतिः-संहारकारिणी वाले असुरोके विनाशक, ४०६ याज्ञिकाश्रयः- यज्ञ शक्तिके स्वामी ॥ १८८॥ करनेवाले ऋत्विजोंके परम आश्रय, ४०७ श्रीनृसिंहः- कतान्तवाहनः सद्यःसमस्तभयनाशनः । अपने भक्त प्रह्लादको बात सत्य करनेके लिये नृसिंहरूप सर्वविघ्नान्तकः सर्वसिद्धिदः सर्वपूरकः ।। १८९ ।। धारण करनेवाले भगवान, ४०८ दिव्यसिंहः- ४२४ कृतान्तवाहन:-कालको अपना वाहन अलौकिक सिंहकी आकृति धारण करनेवाले, ४०९ बनानेवाले, ४२५ सद्यःसमस्तभयनाशन:- शरणमें सर्वानिष्टार्थदुःखहा-सब प्रकारकी अनिष्ट वस्तुओं आये हुए भक्तोके समस्त भयोंका तत्काल नाश और दुःखोंका नाश करनेवाले ॥ १८५॥
करनेवाले, ४२६ सर्वविघ्नान्तकः-सम्पूर्ण विनोका एकवीरोद्भुतबलोपा यन्त्रमन्त्रैकभञ्जनः। अन्त करनेवाले, ४२७ सर्वसिद्धिदः-सब प्रकारको ब्रह्मादिदुःसहज्योतिर्युगान्ताग्न्यतिभीषणः ॥ १८६॥ सिद्धि प्रदान करनेवाले, ४२८ सर्वपूरकः-सम्पूर्ण
४१० एकवीर:-अद्वितीय वीर, ४११ मनोरथोंको पूर्ण करनेवाले ॥ १८९॥ अद्भुतबल:-अद्भुत शक्तिशाली, ४१२ यत्र- समस्तपातकध्वंसी सिद्धिमन्त्राधिकाह्वयः। मन्त्रैकभञ्जन:-शत्रुके यन्त्र-मन्त्रोंको एकमात्र भंग भैरवेशो हरातिनः कालकोटिदुरासदः ॥ १९ ॥ करनेवाले, ४१३ ब्रह्मादिदुःसहयोतिः-जिनके ४२९ समस्तपातकध्वंसी-सब पातकोंका श्रीविग्रहको ज्योति ब्रह्मा आदि देवताओंके लिये भी नाश करनेवाले, ४३० सिद्धिमन्त्राधिकालयःदुःसह है, ऐसे नृसिंह भगवान्, ४१४ युगान्ताग्न्यति- नाममें ही सिद्धि और मन्त्रोंसे अधिक शक्ति रखनेवाले, भीषणः-प्रलयकालीन अग्निके समान अत्यन्त ४३१ भैरवेश:-भैरवगणोंके स्वामी, ४३२ भयङ्कर ।। १८६॥
हरार्तिघ्नः-भगवान् शङ्करको पीडाका नाश करनेवाले, कोटिववाधिकनखो जगदुष्पेक्ष्यमूर्तिधृक् । ४३३ कालकोटिदुरासदः-करोड़ों कालोंके लिये भी मातृचक्रप्रमथनो । महामातृगणेश्वरः ।। १८७ ।। दुर्धर्ष ॥ १९०॥