________________
७०४
. . अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
.
[संक्षिप्त पयपुराण
..३१७ सदाप्रियः-सर्वदा सबके प्रियतम, पुराणर्षिः-पुरातन ऋषि नारायण, ३४० निष्ठा३१८ सदातुष्टः-निरन्तर संतुष्ट रहनेवाले, ३१९ सबको स्थितिके आधार-अधिष्ठानस्वरूप, ३४१ सदापुष्ट:-क्षुधा-पिपासा तथा आधि-व्याधिसे रहित शान्तिः-परम शान्तिस्वरूप, ३४२ परायणम्होनेके कारण सदा पुष्ट शरीरवाले, ३२० सदार्चितः- परम प्राप्यस्थान, ३४३- शिवः-कल्याणस्वरूप, भक्तोंद्वारा निरन्तर पूजित, ३२१ सदापूतः-नित्य ३४४ त्रिशूलविध्वंसी-आध्यात्मिक आदि त्रिविध पवित्र, ३२२ पावनाम्यः- पवित्र करनेवालोमे शूलोका नाश करनेवाले अथवा प्रलयकालमें महारुद्रअग्रगण्य, ३२३ वेदगुह्यः- वेदोंके गूढ़ रहस्य, रूप होकर त्रिशूलसे समस्त विश्वका विध्वंस करनेवाले, ३२४ वृषाकपिः- वृष-धर्मको अकम्पित ३४५ श्रीकण्ठैकवरप्रदः-भगवान् शङ्करके एकमात्र (अविचल) रखनेवाले श्रीविष्णु ॥ १७१॥ .... वरदाता ॥ १७४ ॥ सहस्त्रनामा - त्रियुगचतुर्मूर्तिचतुर्भुजः। नरः कृष्णो हरिधर्मनन्दनो धर्मजीवनः । भूतभव्यभवनाथो...... महापुरुषपूर्वजः ॥ १७२ ॥ आदिकर्ता सर्वसत्यः सर्वस्वीरनादर्पहा ॥ १७५ ।।
३२५ सहस्रनामा-हजारों नामवाले, ३२६ ३४६ नरः-बदरिकाश्रममें तपस्या करनेवाले त्रियुगः-सत्ययुग, त्रेता और द्वापर नामक त्रियुग- ऋषिश्रेष्ठ नर, नरके अवतार अर्जुन, ३४७.कृष्णःस्वरूप, ३२७ चतुर्मूर्ति:-राम, लक्ष्मण, भरत और भक्तोंके मनको आकृष्ट करनेवाले देवकीनन्दन श्रीकृष्ण, शत्रुघ्ररूप चार मूर्तियोवाले, ३२८ चतुर्भुजः-चार सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा, ३४८ हरिः-गजेन्द्रकी भुजाओवाले, . ३२९ भूतभव्यभवन्नाथः - भूत, पुकार सुनकर तत्काल प्रकट हो ग्राहके प्राणों का भविष्य और वर्तमान-सभी प्राणियोंके स्वामी, ३३० अपहरण करनेवाले भगवान् श्रीहरि, ३४९ धर्ममहापुरुषपूर्वजः-महापुरुष ब्रह्मा आदिके भी नन्दनः-धर्मके यहाँ पुत्ररूपसे अवतीर्ण होनेवाले पूर्वज ॥ १७२ ॥
भगवान् नारायण अथवा धर्मराज युधिष्ठिरको आनन्दित नारायणो मझुकेशः सर्वयोगविनिःसृतः। करनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण, ३५० धर्मजीवन:वेदसारो यज्ञसारः सामसारस्तपोनिधिः ।। १७३ ॥ पापाचारी असुरोका मूलोच्छेद करके धर्मको जीवित _ ३३१ नारायणः-जलमें शयन करनेवाले, रखनेवाले, ३५१ आदिकर्ता-जगत्के आदि कारण ३३२ मझुकेश:-मनोहर धुंघराले केशोवाले, ३३३ ब्रह्माजीको उत्पन्न करनेवाले, ३५२ सर्वसत्यःसर्वयोगविनिःसृतः-नाना प्रकारके शास्त्रोक्त पूर्णतः सत्यस्वरूप, ३५३ सर्वस्त्रीरत्नदर्पहासाधनोंसे जाननेमें आनेवाले, समस्त योग-साधनोंसे जितेन्द्रिय होनेके कारण सम्पूर्ण सुन्दरी स्त्रियोंका प्रकट होनेवाले, ३३४ वेदसार:-वेदोंके सारभूत अभिमान चूर्ण करनेवाले ॥ १७५ ॥ तत्त्व, ब्रह्म, ३३५ यज्ञसार:-यज्ञोंके सारतत्त्व- त्रिकालजितकन्दर्प उर्वशीसामुनीश्वरः। ... यज्ञपुरुष विष्णु, ३३६ सामसार:- सामवेदको आधः कविहयग्रीवः सर्ववागीश्वरेश्वरः ॥ १७६ ॥ श्रुतियोंद्वारा गाये जानेवाले सारभूत परमात्मा, ३३७ ३५४ त्रिकालजितकन्दर्पः-भूत, भविष्य और तपोनिधिः-तपस्याके भंडार नर-नारायण- वर्तमान-तीनों कालोंमें कामदेवको परास्त करनेवाले,
३५५ उर्वशीसक-उर्वशी अप्सराकी सृष्टि करनेवाले साध्यश्रेष्ठः पुराणर्षिनिष्ठा शान्तिः परायणम्। ... भगवान् नारायण, ३५६ मुनीश्वरः-तपस्वी मुनियोंमें शिवस्त्रिशूलविध्वंसी श्रीकण्ठैकवरप्रदः ॥ १७४ ।। श्रेष्ठ नर-नारायणस्वरूप, ३५७ आद्यः-आदिपुरुष
३३८ साध्यश्रेष्ठः-साध्य देवताओंमें श्रेष्ठ, विष्णु, ३५८ कविः-त्रिकालदशी विद्वान्, ३५९ साधनसे प्राप्त होनेवालोंमें सबसे श्रेष्ठ, ३३९ हयग्रीवः-हयग्रीव नामक अवतार धारण करनेवाले