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उत्तरखण्ड ] .
. नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रका वर्णन .
निर्ममोऽखिललोकेशो निःसङ्गोऽद्भुतभोगवान्। ज्ञान और वैराग्यसे सम्पन्न, २९६ विष्टरश्नवाःवश्यमायो वश्यविश्वो विश्वक्सेनः सुरोत्तमः ।। १६४॥ कुशाकी मुष्टिके समान कानोंवाले ॥ १६७॥ 1:; ... २७५ निर्ममः-आसक्तिमूलक ममतासे रहित, विभुः सर्वहितोदकर्को हतारिः स्वर्गतिप्रदः ।। २७६ अखिललोकेशः-सम्पूर्ण लोकोंका शासन सर्वदैवतजीवेशो - ब्राह्मणादिनियोजकः ॥ १६८॥ करनेवाले, २७७ निःसङ्गः-आसक्तिरहित, २७८ २९७ विभुः-सर्वत्र व्यापक, २९८ अद्भुतभोगवान्-आश्चर्यजनक भोगसामग्रीसे सम्पन्न, सर्वहितोदर्क:-सबके लिये हितकर भविष्यका २७९ वश्यमायः-मायाको अपने वशमें रखनेवाले, निर्माण करनेवाले, २९९ हतारि:-जिनके शत्रु नष्ट हो २८० वश्यविश्वः-समस्त जगत्को अपने अधीन चुके है, शत्रुहीन, ३०० स्वर्गतिप्रदः-स्वर्गीयरखनेवाले, २८१ विपक्सेनः-युद्धके लिये की हुई उच्चगति प्रदान करनेवाले, ३०१ सर्वदैवतजीवेश:तैयारीमात्रसे ही दैत्यसेनाको तितर-बितर कर डालनेवाले, समस्त देवताओंके जीवनके स्वामी, ३०२ ब्राह्मणादि२८२ सुरोत्तमः-समस्त देवताओमें श्रेष्ठ ॥ १६४॥ नियोजक:- ब्राह्मण आदि वर्णोको अपने-अपने सर्वश्रेयःपतिदिव्योऽनर्घ्यभूषणभूषितः । धर्ममें नियुक्त करनेवाले ॥१८॥ सर्वलक्षणलक्षण्यः । सर्वदैत्येन्द्रदर्पहा ॥ १६५॥ ब्रह्मशम्भुपरार्धायुब्रह्मज्येष्ठः शिशुस्वराद ।
२८३ सर्वश्रेयःपतिः-समस्त कल्याणोंके विराइ भक्तपराधीन: स्तुत्यः स्तोत्रार्थसाधकः ।। १६९ ॥ स्वामी, २८४ दिव्यः-लोकोत्तर सौन्दर्य-माधुर्य आदि ३०३ ब्रह्मशम्भुपरार्धायु:-ब्रह्मा और शिवकी गुणोंसे सम्पन्न, २८५ अनर्थ्यभूषणभूषितः- अपेक्षा भी अनन्तगुनी आयुवाले, ३०४ ब्रह्मज्येष्ठःअमूल्य आभूषणोंसे विभूषित, २८६ सर्वलक्षण- ब्रह्माजीसे भी ज्येष्ठ, ३०५ शिशुस्वराट-बालमुकुन्दलक्षण्यः-समस्त शुभ लक्षणोंसे युक्त, २८७ रूपसे शोभा पानेवाले, ३०६ विराट्-विशेष शोभासर्वदैत्येन्द्रदर्पहा-समस्त दैत्यपतियोंका दर्प दलन सम्पन्न, अखिल ब्रह्माण्डमय विराट् रूपधारी भगवान, करनेवाले ॥ १६५॥
३०७ भक्तपराधीनः-प्रेमविवश होकर भक्तोंके समस्तदेवसर्वस्वं सर्वदैवतनायकः। अधीन रहनेवाले, ३०८ स्तुत्यः-स्तुति करने योग्य, समस्तदेवकवचं सर्वदेवशिरोमणिः ॥१६६ ॥ ३०९ स्तोत्रार्थसाधकः-स्तोत्रमें कहे हुए अर्थको
२८८ समस्तदेवसर्वस्वम्-सम्पूर्ण देवताओंके सिद्ध करनेवाले ॥ १६९।।। सर्वस्व, २८९ सर्वदैवतनायकः- समस्त देवताओके परार्थकर्ता कृत्यज्ञः स्वार्थकृत्यसदोज्झितः। नेता, २९० समस्तदेवकवचम्-सब देवताओंकी सदानन्दः सदाभद्रः सदाशान्तः सदाशिवः ॥ १७ ॥ कवचके समान रक्षा करनेवाले,२९१ सर्वदेव- ३१० परार्थकर्ता-परोपकार करनेवाले, ३११ शिरोमणिः- सम्पूर्ण देवताओंके शिरोमणि ।। १६६ ॥ कृत्यज्ञः-कर्तव्यका ज्ञान रखनेवाले, ३१२ स्वार्थसमस्तदेवतादुर्गः और प्रपन्नाशनिपञ्जरः। कृत्यसदोज्झितः-स्वार्थसाधनके कार्योंसे सदा दूर समस्तभयहनामा भगवान् विष्टरश्रवाः ॥ १६७ ॥ रहनेवाले, ३१३ सदानन्दः-सदा आनन्दमग्न,
२९२ समस्तदेवतादुर्ग:-मजबूत किलेके सत्पुरुषोको आनन्द प्रदान करनेवाले अथवा सत् एवं समान समस्त देवताओंकी रक्षा करनेवाले, २९३ आनन्दस्वरूप, ३१४ सदाभद्रः-सर्वदा कल्याणरूप, प्रपन्नाशनिपञ्जरः-शरणागतोंकी रक्षाके लिये वज्रमय ३१५ सदाशान्तः--नित्य शान्त, .. ३१६ पिंजड़ेके समान, २९४ समस्तभयन्नामा-जिनका सदाशिवः-निरन्तर कल्याण करनेवाले ॥ १७० ॥ नाम सब प्रकारके भयोंको दूर करनेवाला है-ऐसे सदाप्रियः सदातुष्टः सदापुष्टः सदार्चितः । विष्णु, २९५ भगवान्-पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, सदापूतः पावनाग्यो वेदगुह्यो वृषाकपिः ।। १७१ ।।