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. अर्जयस्व पीकेशं यदीच्छसि पर पदम् .
[संक्षिप्त परापुराण
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यज्ञोंके समान पापनाशक, २३६ यज्ञकोटि- नाश अथवा नरकासुरका वध करनेवाले, २५६ समार्चन:-करोड़ों यज्ञोंके तुल्य पूजन-सामग्रीसे दीनानाथैकारणम्-दीनों और अनाथोंको एकमात्र पूजित होनेवाले, २३७ सुधाकोटिस्वास्थ्यहेतुः- शरण देनेवाले, २५७ विश्वैकव्यसनापहः-संसारके कोटि-कोटि अमृतके तुल्य स्वास्थ्य-रक्षाके साधन, एकमात्र संकट हरनेवाले ॥ १६०॥ २३८ कामधुकोटिकामदः-करोड़ों कामधेनुओंके जगत्कृपाक्षमो नित्यं कृपालुः सज्जनाश्रयः । समान मनोरथ पूर्ण करनेवाले ॥ १५७ ॥
योगेश्वरः सदोदीणों वृद्धिक्षयविवर्जितः ॥ ११ ॥ ब्रह्मविद्याकोटिरूपः शिपिविष्टः शुविनवाः।
२५८ जगत्कृपाक्षमः-सम्पूर्ण विश्वपर कृपा विश्वम्भरस्तीर्थपादः पुण्यश्रवणकीर्तनः ॥१५८॥ करनेमें समर्थ, २५९ नित्यं कृपालुः-सदा स्वभावसे
-२३९ ब्रह्मविद्याकोटिरूपः-करोड़ों ब्रह्म- ही कृपा करनेवाले, २६० सजनाश्रयः-सत्पुरुषोंके विद्याओंके तुल्य ज्ञानस्वरूप, २४० शिपिविष्टः- शरणदाता, २६१ योगेश्वरः-सम्पूर्ण योगों तथा उनसे सूर्य-किरणोंमें स्थित रहनेवाले, २४१ शुचिश्रवाः- प्राप्त होनेवाली सिद्धियोंके स्वामी, २६२ पवित्र यशवाले, २४२ विश्वधरः-सम्पूर्ण विश्वका सदोदीर्ण:-सदा अभ्युदयशील, नित्य उदार, सदा भरण-पोषण करनेवाले, २४३ तीर्थपादः-तीर्थोकी सबसे श्रेष्ठ, २६३ वृद्धिक्षयविवर्जितः-वृद्धि और भाँति पवित्र चरणोंवाले, अथवा अपने चरणोंमें ही हासरूप विकारसे रहित ॥१६१ ॥ समस्त तीर्थोको धारण करनेवाले, २४४ पुण्यश्रवण- अधोक्षजो विश्वरेताः प्रजापतिशताधिपः । कीर्तन:-जिनके नाम, गुण, महिमा तथा स्वरूप शक्रब्रह्मार्चितपदः शम्भुब्रह्मोवंधामगः ।। १६२ ।। आदिका श्रवण और कीर्तन परम पवित्र एवं पावन २६४ अधोक्षजः-इन्द्रियोंके विषयोंसे ऊपर है-ऐसे भगवान् ॥ १५८॥
उठे हुए, अपने स्वरूपसे क्षीण न होनेवाले, २६५ आदिदेवो जगजेत्रो मुकुन्दः कालनेमिहा। विश्वरेता:-सम्पूर्ण विश्व जिनके वीर्यसे उत्पन्न हुआ है, वैकुण्ठोऽनन्तमाहात्म्यो महायोगेश्वरोत्सवः ॥१५९॥ वे परमेश्वर, २६६ प्रजापतिशताधिपः-सैकड़ों । २४५ आदिदेव:-आदि देवता, सबके आदि प्रजापतियोंके स्वामी, २६७ शक्रब्रह्मार्चितपदःकारण एवं प्रकाशमान, २४६ जगज्जैत्र:- इन्द्र और ब्रह्माजीके द्वारा पूजित चरणोंवाले, २६८ विश्वविजयी, २४७ मुकुन्दः-मोक्षदाता, २४८ शम्भुब्रह्मोवंधामग:-भगवान् शङ्कर और ब्रह्माजीके कालनेमिहा-कालनेमि नामक दैत्यका वध करनेवाले, धामसे भी ऊपर विराजमान वैकुण्ठधाममें निवास २४९ । वैकुण्ठः -परमधामस्वरूप, २५० करनेवाले ॥ १६२ ।। अनन्तमाहात्म्यः-जिनकी महिमाका अन्त नहीं है- सूर्यसोमेक्षणो विश्वभोक्ता सर्वस्य पारगः । ऐसे महामहिम परमेश्वर, २५१ महायोगेश्वरोत्सवः- जगत्सेतुर्धर्मसेतुधरो विश्नधुरन्धरः ॥ १६३ ॥ बड़े-बड़े योगेश्वरोंके लिये जिनका दर्शन उत्सवरूप २६९ सूर्यसोमेक्षण:-सूर्य और चन्द्रमारूपी है-ऐसे भगवान् ॥ १५९॥
नेत्रवाले, २७० विश्वभोक्ता-विश्वका पालन नित्यतृप्तो लसद्धावो निःशङ्को नरकान्तकः ।' करनेवाले, २७१ सर्वस्य पारगः-सबसे परे दीनानाथैकशरणं - विश्वैकव्यसनापहः ॥ १६०॥ विराजमान, २७२ जगत्सेतुः-संसार-सागरसे पार
२५२ नित्यतृप्तः-अपने-आपमें ही सदा तृप्त होनेके लिये सेतुरूप, २७३ धर्मसेतुधरः- धर्मरहनेवाले, २५३ लसद्भावः-सुन्दर स्वभाववाले, मर्यादाका पालन करनेवाले, २७४ विश्वधुरन्धरः२५४ निःशङ्क:-अद्वितीय होनेके कारण भय- शेषनागके रूपसे समस्त विश्वका भार वहन शङ्कासे रहित, २५५ नरकान्तकः-नरकके भयका करनेवाले ॥ १६३ ॥
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TOTA