SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 642
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४२ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • [ संक्षिप्त पद्मपुराण ब्रह्महत्याके समान भी जो कोई पाप हों, वे सब आप इस व्रतसे प्रसन्न हों और प्रसन्न होकर मुझे ज्ञानदृष्टि श्रीकृष्णकी प्रीतिके लिये जागरण करनेपर नष्ट हो जाते प्रदान करें।' हैं। एक ओर उत्तम दक्षिणाके साथ समाप्त होनेवाले इसके बाद यथासम्भव पारण करना चाहिये । पारण सम्पूर्ण यज्ञ और दूसरी ओर देवाधिदेव श्रीकृष्णको प्रिय समाप्त होनेपर इच्छानुसार विहित कर्मोंका अनुष्ठान करे। लगनेवाला एकादशीका जागरण-दोनों समान हैं। नारद ! यदि दिनमें पारणके समय थोड़ी भी द्वादशी न - जहाँ भगवान्के लिये जागरण किया जाता है वहाँ हो तो मुक्तिकामी पुरुषको रातको ही [पिछले पहरमें] काशी, पुष्कर, प्रयाग, नैमिषारण्य, शालयाम नामक पारण कर लेना चाहिये। ऐसे समयमें रात्रिको भोजन महाक्षेत्र, अर्बुदारण्य (आबू), शूकरक्षेत्र (सोरों), मथुरा करनेका दोष नहीं लगता। रात्रिके पहले और पिछले तथा सम्पूर्ण तीर्थ निवास करते हैं। समस्त यज्ञ और चारों पहरमें दिनकी भाँति कर्म करने चाहिये। यदि पारणके वेद भी श्रीहरिके निमित्त किये जानेवाले जागरणके दिन बहुत थोड़ी द्वादशी हो तो उषःकालमे ही प्रातःकाल स्थानपर उपस्थित होते हैं। गङ्गा, सरस्वती, तापी, यमुना, तथा मध्याह्नकालकी भी संध्या कर लेनी चाहिये। इस शतद् (सतलज), चन्द्रभागा तथा वितस्ता आदि सम्पूर्ण पृथ्वीपर जिस मनुष्यने द्वादशी-व्रतको सिद्ध कर लिया नदियाँ भी वहाँ जाती हैं। द्विजश्रेष्ठ ! सरोवर, कुण्ड और है, उसका पुण्य-फल बतलाने में मैं भी समर्थ नहीं हूँ। समस्त समुद्र भी एकादशीको जागरणस्थानपर जाते हैं। एकादशी देवी सब पुण्योंसे अधिक है तथा यह सर्वदा जो मनुष्य श्रीकृष्णप्रीतिके लिये होनेवाले जागरणके समय मोक्ष देनेवाली है। यह द्वादशी नामक व्रत महान् वीणा आदि बाजोंसे हर्षमें भरकर नृत्य करते और पद गाते पुण्यदायक है। जो इसका साधन कर लेते हैं, वे हैं, वे देवताओंके लिये भी आदरणीय होते हैं। इस प्रकार महापुरुष समस्त कामनाओंको प्राप्त कर लेते हैं। जागरण करके श्रीमहाविष्णुकी पूजा करे और द्वादशीको अम्बरीष आदि सभी भक्त, जो इस भूमण्डलमें विख्यात अपनी शक्तिके अनुसार कुछ वैष्णव पुरुषोंको निमन्त्रित हैं, द्वादशी-व्रतका साधन करके ही विष्णुधामको प्राप्त करके उनके साथ बैठकर पारण करे। हुए हैं। यह माहात्म्य, जो मैंने तुम्हें बताया है, सत्य है ! द्वादशीको सदा पवित्र और मोक्षदायिनी समझना सत्य है !! सत्य है !!! श्रीविष्णुके समान कोई देवता चाहिये। उस दिन प्रातःस्रान करके श्रीहरिकी पूजा नहीं है और द्वादशीके समान कोई तिथि नहीं है। इस करे और उन्हें निम्नाङ्कित मन्त्र पढ़कर अपना व्रत तिथिको जो कुछ दान किया जाता, भोगा जाता तथा समर्पण करे पूजन आदि किया जाता है, वह सब भगवान् माधवके अज्ञानतिमिरान्धस्य व्रतेनानेन केशव। पूजित होनेपर पूर्णताको प्राप्त होता है। अधिक क्या कहा प्रसीद सुमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ॥ जाय, भक्तवल्लभ श्रीहरि द्वादशी व्रत करनेवाले __ (३९ । ८१-८२) पुरुषोंकी कामना कल्पान्ततक पूर्ण करते रहते हैं। 'केशव ! मैं अज्ञानरूपी रतौधौसे अंधा हो रहा हूँ, द्वादशीको किया हुआ सारा दान सफल होता है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy