SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 641
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरखण्ड] . पक्षवर्धिनी एकादशी तथा जागरणका माहात्म्य , ६४१ श्रीहरिका पूजन, जागरण और दान आदि सब व्यर्थ होता माना गया है। जिस जागरणमें शास्त्रकी चर्चा, है-ठीक उसी तरह, जैसे कृतघ्न मनुष्योंके साथ किया सात्त्विक नृत्य, संगीत, वाद्य, ताल, तैलयुक्त दीपक, हुआ नेकीका बर्ताव व्यर्थ हो जाता है। जो वेधरहित कीर्तन, भक्तिभावना, प्रसन्नता, संतोषजनकता, समुदायको एकादशीको जागरण करते हैं, उनके बीचमें साक्षात् उपस्थिति तथा लोगोंके मनोरञ्जनका सात्त्विक साधन हो, श्रीहरि संतुष्ट होकर नृत्य करते हैं। जो श्रीहरिके लिये वह उक्त बारह गुणोंसे युक्त जागरण भगवान्को बहुत नृत्य, गीत और जागरण करता है, उसके लिये प्रिय है। शुक्र और कृष्ण दोनों ही पक्षोंकी एकादशीको ब्रह्माजीका लोक, मेरा कैलास-धाम तथा भगवान् प्रयत्नपूर्वक जागरण करना चाहिये। नारद ! परदेशमें श्रीविष्णुका वैकुण्ठधाम-सब-के-सब निश्चय ही जानेपर मार्गका थका-माँदा होनेपर भी जो द्वादशीको सुलभ हैं। जो स्वयं श्रीहरिके लिये जागरण करते हुए भगवान् वासुदेवके निमित्त किये जानेवाले जागरणका और लोगोंको भी जगाये रखता है, वह विष्णुभक्त पुरुष नियम नहीं छोड़ता, वह मुझे विशेष प्रिय है। जो अपने पितरोंके साथ वैकुण्ठलोकमें निवास करता है। एकादशीके दिन भोजन कर लेता है, उसे पशुसे भी जो श्रीहरिके लिये जागरण करनेकी लोगोंको सलाह देता गया-बीता समझना चाहिये; वह न तो शिवका उपासक है, वह मनुष्य साठ हजार वर्षातक श्वेतद्वीपमें निवास है न सूर्यका, न देवीका भक्त है और न गणेशजीका । जो करता है। नारद ! मनुष्य करोड़ों जन्मोंमें जो पाप सञ्चित एकादशीको जागरण करते हैं, उनका बाहर-भीतर यदि करता है, वह सब श्रीहरिके लिये एक रात जागरण करोड़ों पापोंसे घिरा हो तो भी वे मुक्त हो जाते है। करनेपर नष्ट हो जाता है। जो शालग्राम-शिलाके समक्ष वेधरहित द्वादशीका व्रत और श्रीविष्णुके लिये किया जागरण करते हैं, उन्हें एक-एक पहरमें कोटि-कोटि जानेवाला जागरण यमदतोंका मानमर्दन करनेवाला है। तीर्थोके सेवनका फल प्राप्त होता है। जागरणके लिये मुनिश्रेष्ठ ! एकादशीको जागरण करनेवाले मनुष्य भगवान्के मन्दिरमें जाते समय मनुष्य जितने पग चलता अवश्य मुक्त हो जाते हैं। है, वे सभी अश्वमेध यज्ञके समान फल देनेवाले होते हैं। जो रातको भगवान् वासुदेवके समक्ष जागरणमें पृथ्वीपर चलते समय दोनों चरणोंपर जितने धूलिकण प्रवृत्त होनेपर प्रसन्नचित्त हो ताली बजाते हुए नृत्य करता, गिरते हैं, उतने हजार वर्षांतक जागरण करनेवाला पुरुष नाना प्रकारके कौतुक दिखाते हुए मुखसे गीत गाता, दिव्यलोकमें निवास करता है। .. . वैष्णवजनोंका मनोरञ्जन करते हुए श्रीकृष्ण-चरितका इसलिये प्रत्येक द्वादशीको जागरणके लिये अपने पाठ करता, रोमाञ्चित होकर मुखसे बाजा बजाता तथा घरसे भगवान् विष्णुके मन्दिर में जाना चाहिये। इससे स्वेच्छानुसार धार्मिक आलाप करते हुए भाँति-भांतिके कलिमलका विनाश होता है। दूसरोंकी निन्दामें संलग्न नृत्यका प्रदर्शन करता है, वह भगवान्का प्रिय है। इन होना, मनका प्रसन्न न रहना, शास्त्रचर्चाका न होना, भावोंके साथ जो श्रीहरिके लिये जागरण करता है, उसे संगीतका अभाव, दीपक न जलाना, शक्तिके अनुसार नैमिष तथा कोटितीर्थका फल प्राप्त होता है। जो पूजाके उपचारोंका न होना, उदासीनता, निन्दा तथा शान्तचित्तसे श्रीहरिको धूप-आरती दिखाते हुए रातमें कलह-इन दोषोंसे युक्त नौ प्रकारका जागरण अधम जागरण करता है, वह सात द्वीपोंका अधिपति होता है। * परापवादसंयुक्त मनःप्रसादवर्जितम् । शास्त्रहीनमगान्धर्व यथा दीपविवर्जितम् ॥ शवल्योपचाररहितमुदासीन सनिन्दनम्। कलियुक्त विशेषेण जागरं नवधाऽधमम्॥ (३९.५३-५४) + सशास्त्रं जागरं यच्च मृत्यगन्धर्वसंयुतम्। सवाद्य तालसंयुक्त सदीप मधुभिर्युतम् ।। उचारैस्तु समायुक्तं यथोक्तैर्भक्तिभावितैः । प्रसन्नं तुष्टिजनन समून लोकरञ्जनम् ।। गुणैदिशभियुक्त जागरं माधवप्रियम् । कर्तव्यं तत् प्रयत्नेन पक्षयोः शुक्रकृष्णयोः ॥ (३९।५५-५७)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy