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________________ उत्तरखण्ड ] • एकादशीके जया आदि भेद, उत्पत्ति-कथा और महिमाका वर्णन • ६४३ ..... ........ .. एकादशीके जया आदि भेद, नक्तव्रतका स्वरूप, एकादशीकी विधि, उत्पत्ति-कथा और महिमाका वर्णन ILAMIRIDUAnm LASTU JuTUN नारदजीने पूछा-महादेव ! महाद्वादशीका उत्तम तनिक भी संदेह नहीं है। पुष्य नक्षत्रसे युक्त एकमात्र व्रत कैसा होता है। सर्वेश्वर प्रभो ! उसके व्रतसे जो कुछ पापनाशिनी एकादशीका व्रत करके मनुष्य एक हजार भी फल प्राप्त होता है, उसे बतानेकी कृपा कीजिये। एकादशियोंके व्रतका फल प्राप्त कर लेता है। उस दिन महादेवजीने कहा-ब्रह्मन् ! यह एकादशी महान् स्नान, दान, जप, होम, स्वाध्याय और देवपूजा आदि जो पुण्यफलको देनेवाली है । श्रेष्ठ मुनियोंको भी इसका अनुष्ठान कुछ भी किया जाता है, उसका अक्षय फल माना गया करना चाहिये। विशेष-विशेष नक्षत्रोंका योग होनेपर यह है। इसलिये प्रयत्नपूर्वक इसका व्रत करना चाहिये। तिथि जया, विजया, जयन्ती तथा पापनाशिनी-इन चार जिस समय धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर पञ्चम अश्वमेध नामोंसे विख्यात होती है। ये सभी पापोंका नाश यज्ञका स्रान कर चुके, उस समय उन्होंने यदुवंशावतंस करनेवाली हैं। इनका व्रत अवश्य करना चाहिये। जब भगवान् श्रीकृष्णसे इस प्रकार प्रश्न किया। शुक्लपक्षकी एकादशीको 'पुनर्वसु नक्षत्र हो तो वह उत्तम तिथि 'जया' कहलाती है। उसका व्रत करके मनुष्य निश्चय ही पापसे मुक्त हो जाता है। जब शुरूपक्षकी द्वादशीको 'श्रवण नक्षत्र हो तो वह उत्तम तिथि 'विजया' के नामसे विख्यात होती है; इसमें किया हुआ दान और ब्राह्मण-भोजन सहस्रगुना फल देनेवाला है तथा होम और उपवास तो सहसगुनसे भी अधिक फल देता है। जब शुक्लपक्षको द्वादशीको 'रोहिणी' नक्षत्र हो तो वह तिथि 'जयन्ती' कहलाती है; वह सब पापोंको हरनेवाली है। उस तिथिको पूजित होनेपर भगवान् गोविन्द निश्चय ही मनुष्यके सब पापोंको धो डालते हैं। जब कभी शुक्लपक्षकी द्वादशीको 'पुष्य नक्षत्र हो तो वह महापुण्यमयो 'पापनाशिनी' तिथि कहलाती है। जो एक वर्षतक प्रतिदिन एक प्रस्थ तिल दान करता है तथा जो केवल 'पापनाशिनी' एकादशीको उपवास करता है, उन दोनोका पुण्य समान होता है। उस तिथिको पूजित होनेपर संसारके स्वामी सर्वेश्वर श्रीहरि संतुष्ट होते हैं तथा प्रत्यक्ष युधिष्ठिर बोले-प्रभो ! नक्तव्रत तथा एकभुक्त दर्शन भी देते हैं। उस दिन प्रत्येक पुण्यकर्मका अनन्त व्रतका पुण्य एवं फल क्या है ? जनार्दन ! यह सब मुझे फल माना गया है। सगरनन्दन ककुत्स्थ, नहुष तथा बताइये। राजा गाधिने उस तिथिको भगवान्की आराधना की थी, श्रीभगवान्ने कहा-कुन्तीनन्दन ! हेमन्त ऋतुमे जिससे भगवान्ने इस पृथ्वीपर उन्हें सब कुछ दिया था। जब परम कल्याणमय मार्गशीर्ष मास आये, तब उसके इस तिथिके सेवनसे मनुष्य सात जन्मोंके कायिक, कृष्णपक्षकी द्वादशी तिथिको उपवास (व्रत) करना वाचिक और मानसिक पापसे मुक्त हो जाता है। इसमें चाहिये। उसकी विधि इस प्रकार है-दृढ़तापूर्वक उत्तम GIONS WADIY
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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