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________________ पातालखण्ड] • भगवान् श्रीकृष्णका ध्यान . पीठके ऊपर लाल रंगके अष्टदल कमलका चिन्तन वन्यप्रवालकुसुमप्रचयावतप्तकरके उसके मध्यभागमें सुखपूर्वक बैठे हुए भगवान् प्रैवेयकोज्ज्वलमनोहरकम्बुकण्ठम् ॥ श्रीकृष्णका ध्यान करे, जो अपनी दिव्य प्रभासे सिन्दूरके समान परम सुन्दर लाल-लाल ओठ हैं; उदयकालीन सूर्यदेवकी भाँति देदीप्यमान हो रहे है। चन्द्रमा, कुन्द और मन्दार पुष्पकी-सी मन्द मुसकानकी सुनामहेतिदलिताञ्जनमेधपुञ्ज छटासे सामनेकी दिशा प्रकाशित हो रही है तथा वनके प्रत्यपनीलजलजन्मसमानभासम् । कोमल पल्लवों और फूलोंके समूहद्वारा बनाये हुए हारसे सुस्निग्धनीलघनकुञ्चितकेशजालना शङ्खसदृश मनोहर ग्रीवा बड़ी सुन्दर जान पड़ती है। राजन्पनोज्ञशितिकण्ठशिखण्डचूडम् ॥ मत्तभ्रमभ्रमरघुष्टविलम्बमानभगवानके श्रीविग्रहकी आभा इन्द्रके वज्रसे विदीर्ण संतानकप्रसवदामपरिष्कृतांसम् । हुए कज्जलगिरि, मेघोंकी घटा तथा नूतन नील-कमलके हारावलीभगणराजितपीवरोरोसमान श्याम रंगकी है; श्याम मेषके सदृश काले-काले व्योमस्थलीलसितकौस्तुभभानुमन्तम् ॥ धुंघराले केश-कलाप बड़े ही चिकने हैं तथा उनके मँडराते हुए मतवाले भौंरोंसे निनादित एवं मस्तकपर मनोहर मोर-पंखका मुकुट शोभा पा रहा है। घुटनोतक लटकी हुई पारिजात पुष्पोंकी मालासे दोनों रोलम्बलालितसुरछमसूनसम्प कंधे शोभा पा रहे हैं। पीन और विशाल वक्षःस्थलरूपी द्युक्तं समुत्कचनवोत्पलकर्णपूरम्। आकाश हाररूपी नक्षत्रोंसे सुशोभित है तथा उसमें लोलालिभिः स्फुरितभालतलप्रदीप्त- कौस्तुभमणिरूपी सूर्य भासमान हो रहा है। गोरोचनातिलकमुज्वलचिल्लिचापम् ॥ श्रीवत्सलक्षणसुलक्षितमुत्रतांसकल्पवृक्षके फलोंसे, जिनपर भौरे मैंडरा रहे है, माजानुपीनपरिवृत्तसुजातबाहुम् भगवान्का शृङ्गार हुआ है। उन्होंने कानोंमें खिले हुए आबन्धुरोदरमुदारगभीरनाभिं नवीन कमलके कुण्डल धारण कर रखे हैं। जिनपर भङ्गाङ्गनानिकरमञ्जलरोमराजिम् ॥ चञ्चल भ्रमर उड़ रहे हैं। उनके ललाटमें चमकीले भगवान्के वक्षःस्थल श्रीवत्सका चिह्न बड़ा गोरोचनका तिलक चमक रहा है तथा धनुषाकार भौंहे सुन्दर दिखायी देता है, उनके कंधे ऊँचे हैं, गोल-गोल बड़ी सुन्दर प्रतीत हो रही हैं। सुन्दर भुजाएँ घुटनोंतक लंबी एवं मोटी हैं, उदरका भाग आपूर्णशारदगताशशाङ्कविम्य बड़ा मनोहर है, नाभि विस्तृत और गहरी है तथा - कान्ताननं कमलपत्रविशालनेत्रम्। त्रिवलीको रोमपङ्क्ति भंवरोंकी पङ्क्तिके समान शोभा रत्रस्फुरन्मकरकुण्डलरश्मिदीप्त- पा रही है। गण्डस्थलीमुकुरमुन्नतचारुनासम् ॥ नानामणिप्रघटिताङ्गदकङ्कणोर्मिभगवानका मुख शरत्पूर्णिमाके कलङ्कहीन अवेयकारसननूपुरतुन्दवन्यम् । चन्द्रमण्डलकी भाँति कान्तिमान् है, बड़े-बड़े नेत्र दिव्याङ्गरागपरिपिञ्जरिताङ्गयष्टिकमलदलके समान सुन्दर जान पड़ते हैं, दर्पणके सदृश मापीतवस्वपरिवीतनितम्बबिम्बम् ॥ स्वच्छ कपोल रत्नोंके कारण चमकते हुए मकराकृत नाना प्रकारको मणियोंके बने हुए भुजबंद, कड़े, कुण्डलोंकी किरणोंसे देदीप्यमान हो रहे हैं तथा ऊँची अँगूठियाँ, हार, करधनी, नपुर और पेटी आदि आभूषण नासिका बड़ी मनोहर जान पड़ती है। भगवान्के श्रीविग्रहपर शोभा पा रहे हैं, उनके समस्त सिन्दूरसुन्दरतराधरमिन्दुकुन्द अङ्ग दिव्य अङ्गरागोंसे अनुरञ्जित हैं तथा कटिभाग कुछ मन्दारमन्दहसितद्युतिदीपिताशम् । हलके रंगके पीताम्बरसे ढका हुआ है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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