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________________ ५९४ 15213 • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् ********** इन सब बातोंका वर्णन कीजिये । यमराज बोले- ब्रह्मन् ! जो मनुष्य मन, वाणी तथा क्रियाद्वारा धर्मसे विमुख और श्रीविष्णुभक्तिसे रहित हैं; जो ब्रह्मा, शिव तथा विष्णुको भेदबुद्धिसे देखते हैं; जिनके हृदयमें विष्णु-विद्यासे विरक्ति है; जो दूसरोंके खेत, जीविका, घर, प्रीति तथा आशाका उच्छेद करते हैं, वे नरकोंमें जाते हैं। जो मूर्ख जीविकाका कष्ट भोगनेवाले ब्राह्मणोंको भोजनकी इच्छासे दरवाजेपर आते देख उनकी परीक्षा करने लगता है—उन्हें तुरंत भोजन नहीं देता, उसे नरकका अतिथि समझना चाहिये। जो मूढ़ अनाथ, वैष्णव, दीन, रोगातुर तथा वृद्ध मनुष्यपर दया नहीं करता तथा जो पहले कोई नियम लेकर पीछे अजितेन्द्रियता के कारण उसे छोड़ देता है, वह निश्चय ही नरकका पात्र है। जो सब पापोंको हरनेवाले, दिव्यस्वरूप, व्यापक, विजयी, सनातन, अजन्मा, चतुर्भुज, अच्युत, विष्णुरूप, दिव्य पुरुष श्रीनारायणदेवका पूजन, ध्यान और स्मरण करते हैं, वे श्रीहरिके परम धामको प्राप्त होते हैं- - यह सनातन श्रुति है। भगवान् दामोदरके गुणोंका कीर्तन ही मङ्गलमय है, वही धनका उपार्जन है तथा वही इस जीवनका फल है। अमिततेजस्वी देवाधिदेव श्रीविष्णुके कीर्तनले सब पाप उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे दिन निकलनेपर अन्धकार जो प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक भगवान् श्रीविष्णुकी यशोगाथाका गान करते और सदा स्वाध्यायमें लगे रहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। विप्रवर! ********* [ संक्षिप्त पद्मपुराण 1 * येऽर्चयन्ति हरिं देवं विष्णुं जिष्णुं सनातनम् । नारायणमजं देवं विष्णुरूपं चतुर्भुजम् ॥ ध्यायन्ति पुरुषं दिव्यमच्युतं ये स्मरन्ति च लभन्ते ते हरिस्थानं श्रुतिरेषा सनातनी ॥ इदमेव हि माङ्गल्यमिदमेव धनार्जनम् । जीवितस्य फलं चैतद् यद्दामोदरकीर्तनम् ॥ कीर्तनाद्देवदेवस्य विष्णोरमिततेजसः । दुरितानि विलीयन्ते तमांसीव दिनोदये ॥ गाथा गायन्ति ये नित्यं वैष्णवीं श्रद्धयान्विताः । स्वाध्यायनिरता नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः ॥ वासुदेवजपासक्तानपि पापकृतो जनान् । नोपसर्पन्ति तान् विप्र यमदूताः सुदारुणाः ॥ नान्यत्पश्यामि जन्तूनां विहाय हरिकीर्तनम् । सर्वपापप्रशमनं प्रायश्चितं द्विजोत्तम । ---------desc भगवान् वासुदेवके नाम-जपमें लगे हुए मनुष्य पहलेके पापी रहे हों, तो भी भयानक यमदूत उनके पास नहीं फटकने पाते। द्विजश्रेष्ठ ! हरिकीर्तनको छोड़कर दूसरा कोई ऐसा साधन मैं नहीं देखता, जो जीवोंक सम्पूर्ण पापों का नाश करनेवाला प्रायश्चित्त हो।' जो माँगनेपर प्रसन्न होते हैं, देकर प्रिय वचन बोलते हैं तथा जिन्होंने दानके फलका परित्याग कर दिया है, वे मनुष्य स्वर्गमें जातें हैं। जो दिनमें सोना छोड़ देते हैं, सब कुछ सहन करते हैं, पर्वके अवसरपर लोगोंको आश्रय देते हैं, अपनेसे द्वेष रखनेवालोंके प्रति भी कभी द्वेषवश अहितकारक वचन मुँहसे नहीं निकालते अपितु सबके गुणोंका ही बखान करते हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं। जो परायी स्त्रियोंकी ओरसे उदासीन होते हैं और सत्त्वगुणमें स्थित होकर मन, वाणी अथवा क्रियाद्वारा कभी उनमें रमण नहीं करते, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जिस किसी कुलमें उत्पन्न होकर भी जो दयालु. यशस्वी उपकारी और सदाचारी होते हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं। जो व्रतको क्रोधसे, लक्ष्मीको डाइसे, विद्याको मान और अपमानसे, आत्माको प्रमादसे, बुद्धिको लोभसे, मनको कामसे तथा धर्मको कुसङ्गसे बचाये रखते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। विप्र ! जो शुरू और कृष्णपक्षमें भी एकादशीको विधिपूर्वक उपवास करते हैं, वे मानव स्वर्गमें जाते हैं। समस्त बालकोंका पालन करनेके लिये जैसे माता बनायी गयी है तथा रोगियोंकी रक्षाके लिये जैसे औषधकी रचना हुई है, उसी लग ९२ । १० - १६ ). यस्मिन् कस्मिन् कुले जाता दयावन्तो यशस्विनः । सानुक्रोशः सदाचारास्ते नराः स्वर्गगामिनः ॥ वतं रक्षन्ति ये कोपाच्छ्रियं रक्षन्ति मत्सरात्। विद्यां मानापमानाभ्यां ह्यात्मानं तु प्रमादतः ॥ मति रक्षन्ति ये लोभान्मनो रक्षन्ति कामतः । धर्म रक्षन्ति दुःसङ्गाते नराः स्वर्गगामिनः ॥ ( ९२ । २१ - २३ )
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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