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________________ पातालखण्ड] • यम-ब्राह्मण-संवाद-नरक तथा स्वर्गमें ले जानेवाले कर्मोका वर्णन • भयभीत होकर आपकी शरणमें आया हूँ आप मेरी करनेसे किसीको भक्तियोगकी प्राप्ति नहीं होती; भक्तिरक्षा कीजिये। योगको तो वही प्राप्त करता है, जो पूर्वोक्त रीतिसे - तदनन्तर भगवान्को अर्पण की हुई प्रसाद-माला प्रतिदिन श्रीहरिकी पूजा करता है। आदिको आदरपूर्वक सिरपर चढ़ाये तथा यदि मूर्ति राजन् ! वही शरीर शुभ-कल्याणका साधक है, विसर्जन करने योग्य हो तो उसका विसर्जन भी करे। जो भगवान् श्रीकृष्णको साष्टाङ्ग प्रणाम करनेके कारण ईश्वरीय ज्योतिको आत्म-ज्योतिमें स्थापित कर ले । प्रतिमा धूलि-धूसरित हो रहा है; नेत्र भी वे ही अत्यन्त सुन्दर आदिमें जहाँ भगवान्का चरण हो, वहीं श्रद्धापूर्वक पूजन और तपःशक्तिसे सम्पन्न हैं, जिनके द्वारा श्रीहरिका दर्शन करना चाहिये तथा मनमें यह विश्वास रखना चाहिये कि होता है; वही बुद्धि निर्मल और चन्द्रमा तथा शसके 'जो सम्पूर्ण भूतोंमें तथा मेरे आत्मामें भी रम रहे हैं, वे ही समान उज्वल है, जो सदा श्रीलक्ष्मीपतिके चिन्तनमें सर्वात्मा परमेश्वर इस मूर्तिमें विराजमान हैं।' संलग्न रहती है तथा वही जिला मधुरभाषिणी है, जो इस प्रकार वैदिक तथा तान्त्रिक क्रियायोगके बारम्बार भगवान् नारायणका स्तवन किया करती है।* मार्गसे जो भगवान्की पूजा करता है, वह सब ओरसे स्त्री और शूद्रोंको भी मूलमन्त्रके द्वारा श्रीहरिका अभीष्ट सिद्धिको प्राप्त होता है। श्रीविष्णु-प्रतिमाकी पूजन करना चाहिये तथा अन्यान्य वैष्णवजनोंको भी स्थापना करके उसके लिये सुदृढ़ मन्दिर बनवाना चाहिये गुरुकी बतायी हुई पद्धतिसे श्रद्धापूर्वक भगवानकी पूजा तथा पूजाकर्मकी सुव्यवस्थाके लिये सुन्दर फुलवाड़ी भी करनी उचित है। राजन् ! यह सब प्रसङ्ग मैंने तुम्हे बता लगवानी चाहिये। बड़े-बड़े पर्वोपर तथा प्रतिदिन दिया। श्रीमाधवका पूजन परम पावन है। विशेषतः पूजाकार्यका भलीभाँति निर्वाह होता रहे, इसके लिये वैशाख मासमें तुम इस प्रकार पूजन अवश्य करना। भगवान्के नामसे खेत, बाजार, कसबा और गाँव आदि सूतजी कहते हैं-महर्षिगण ! इस प्रकार पलीभी लगा देने चाहिये। यों करनेसे मनुष्य भगवान्के सहित मन्त्रवेत्ता महाराज अम्बरीषको उपदेश दे, उनसे सायुज्यको प्राप्त होता है। भगवद्विग्रहकी स्थापना करनेसे पूजित हो, विदा लेकर देवर्षि नारदजी वैशाख मासमें सार्वभौम (सम्राट्) के पदको, मन्दिर बनवानेसे तीनों गङ्गा-स्रान करनेके लिये चले गये। लोकमें जिनका लोकोंके राज्यको, पूजा आदिकी व्यवस्था करनेसे पावन सुयश फैला हुआ था, उन राजा अम्बरीषने भी ब्रह्मलोकको तथा इन तीनों कार्योक अनुष्ठानसे मनुष्य मुनिकी बतायी हुई वैशाख मासकी विधिका पुण्यभगवत्सायुज्यको प्राप्त कर लेता है। केवल अश्वमेध यज्ञ बुद्धिसे पत्नीसहित पालन किया। यम-ब्राह्मण-संवाद-नरक तथा स्वर्गमें ले जानेवाले कोका वर्णन ऋषियोंने कहा-सूतजी ! इस विषयको पुनः महात्मा धर्मराजके संवादका वर्णन है। विस्तारके साथ कहिये । आपके उत्तम वचनामृतोका पान . ब्राह्मणने पूछा-धर्मराज ! धर्म और अधर्मके करते-करते हमें तृप्ति नहीं होती है। निर्णयमें आप सबके लिये प्रमाणस्वरूप है; अतः सूतजी बोले-महर्षियो ! इस विषयमे एक बताइये, मनुष्य किस कर्मसे नरकमें पड़ते है? तथा प्राचीन इतिहास कहा करते हैं, जिसमें एक ब्राह्मण और किस कर्मके अनुष्ठानसे वे स्वर्गमें जाते हैं? कृपा करके • यत्कृष्णप्रणिपातधूलिधबलं तदर्थ तदन्छुभं ने चेत्तपसोर्जिति सुरुचिरे याभ्यां हरिदश्यते। सा बुद्धिर्विमलेन्दुशङ्खधवला या माधवव्यापिनी सा जिला मृदुभाषिणी नृप मुहुर्या स्तौति नारायणम्॥ (९० । ४७)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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