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________________ पातालखण्ड] . यम-ब्राह्मण-संवाद-नरक तथा स्वर्गमें ले जानेवाले कर्मोका वर्णन . प्रकार सम्पूर्ण लोकोंकी रक्षाके निमित्त एकादशी तिथिका विधाताने तराजूपर रखकर तोला था, उस समय इनमेंसे निर्माण हुआ है। एकादशीके व्रतके समान पापसे रक्षा पहलेका ही पलड़ा भारी रहा । ब्रह्मन् ! जो एकादशीका करनेवाला दूसरा कोई साधन नहीं है। अतः एकादशीको सेवन करते हैं तथा जो 'अच्युत-अच्युत' कहकर विधिपूर्वक उपवास करनेसे मनुष्य स्वर्गलोकमें जाते हैं। भगवन्नामका कीर्तन करते है, उनपर मेरा शासन नहीं अखिल विश्वके नायक भगवान् श्रीनारायणमें चलता। मैं तो स्वयं ही उनसे बहुत डरता हूँ। जिनकी भक्ति है, वे सत्यसे हीन और रजोगुणसे युक्त जो मनुष्य प्रत्येक मासमें एक दिन-अमावास्याको होनेपर भी अनन्त पुण्यशाली हैं तथा अन्तमें वे श्राद्धके नियमका पालन करते हैं और ऐसा करनेके वैकुण्ठधाममें पधारते हैं।* जो वेतसी, यमुना, सीता कारण जिनके पितर सदा तृप्त रहते हैं, वे धन्य हैं। वे (गङ्गा) तथा पुण्यसलिला गोदावरीका सेवन और स्वर्गगामी होते हैं। भोजन तैयार होनेपर जो आदरपूर्वक सदाचारका पालन करते हैं; जिनकी सान और दानमें उसे दूसरोंको परोसते हैं और भोजन देते समय जिनके सदा प्रवृत्ति है, वे मनुष्य कभी नरकके मार्गका दर्शन चेहरेके रंगमें परिवर्तन नहीं होता, वे शिष्ट पुरुष नहीं करते। जो कल्याणदायिनी नर्मदा नदीमें गोते स्वर्गलोकमें जाते हैं। जो मर्त्यलोकके भीतर भगवान् लगाते तथा उसके दर्शनसे प्रसन्न होते हैं, वे पापरहित श्रीनर-नारायणके आवासस्थान बदरिकाश्रममें और नन्दा हो महादेवजीके लोकमें जाते और चिरकालतक वहाँ (सरस्वती) के तटपर तीन रात निवास करते हैं, वे आनन्द भोगते हैं। जो मनुष्य चर्मण्वती (चम्बल) धन्यवादके पात्र और भगवान् श्रीविष्णुके प्रिय हैं। नदीमें स्नान करके शौचसंतोषादि नियमोंका पालन करते ब्रह्मन् ! जो भगवान् पुरुषोतमके समीप (जगत्राथहुए उसके तटपर-विशेषतः व्यासाश्रममें तीन रात पुरीमे) छ: मासतक निवास कर चुके हैं, वे अच्युतनिवास करते हैं, वे स्वर्गलोकके अधिकारी माने गये हैं। स्वरूप हैं और दर्शनमात्रसे समस्त पापोंको हर जो गङ्गाजीके जलमें अथवा प्रयाग, केदारखण्ड, पुष्कर, लेनेवाले हैं। व्यासाश्रम या प्रभासक्षेत्रमें मृत्युको प्राप्त होते हैं, वे जो अनेक जन्मोंमें उपार्जित पुण्यके प्रभावसे विष्णुलोक में जाते हैं। जिनको द्वारका या कुरुक्षेत्रमें मृत्यु काशीपुरीमें जाकर मणिकर्णिकाके जलमें गोते लगाते हुई है अथवा जो योगाभ्याससे मृत्युको प्राप्त हुए हैं और श्रीविश्वनाथजीके चरणोंमें मस्तक झुकाते हैं, वे भी अथवा मृत्युकालमें जिनके मुखसे 'हरि' इन दो अक्षरोंका इस लोकमें आनेपर मेरे वन्दनीय होते हैं। जो श्रीहरिकी उच्चारण हुआ है, वे सभी भगवान् श्रीहरिके प्रिय है। पूजा करके पृथ्वीपर कुश और तिल बिछाकर चारों ओर विप्र ! जो द्वारकापुरीमें तीन रात भी ठहर जाता है, तिल बिखेरते और लोहा तथा दूध देनेवाली गौ दान वह अपनी ग्यारह इन्द्रियोंद्वारा किये हुए सारे पापोंको नष्ट करके विधिपूर्वक मृत्युको प्राप्त होते हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें करके स्वर्गमें जाता है-ऐसी वहाँको मर्यादा है। जाते हैं। जो पुत्रोंको उत्पन्न करके उन्हें पिता-पितामहोंके वैष्णवव्रत (एकादशी) के पालनसे होनेवाला धर्म तथा पदपर बिठाकर ममता और अहंकारसे रहित होकर मरते यज्ञादिके अनुष्ठानसे उत्पन्न होनेवाला धर्म-इन दोनोंको है, वे भी स्वर्गलोकके अधिकारी होते हैं। जो चोरी * ये भक्तिमन्तो मधुसूदनस्य नारायणस्याखिलनायकस्य । सत्येन हीना रजस्यापि युक्ता गच्छन्ति ते नाकमनन्तपुण्याः ।। (९२ । २७) * वेतसों यमुनां सीता पुण्यां गोदावरीनदीम् । सेवन्ते ये शुभाचाराः सानदानपरायणाः ॥ ....... ।न ते पश्यन्ति पन्थानं नरकस्य कदाचन ।। (९२२८-२९) संप पु० २०
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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