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________________ पातालखण्ड ] . भगवान के परात्पर स्वरूप-श्रीकृष्णकी महिमा तथा मथुराके माहात्म्यका वर्णन . ५५९ ............ नहीं है तथा जिसका साक्षात्कार करके मुनिगण हो आया; मैंने श्रीकृष्णसे कहा-'मधुसूदन ! मैं भवसागरसे पार हो जाते है, उस अव्यक्त परमात्मामें मेरे आपहीके तत्त्वका यथार्थरूपसे साक्षात्कार करना चाहता मनकी नित्य स्थिति कैसे हो?' हूँ। नाथ ! जो इस जगत्का पालक और प्रकाशक है; उपनिषदोमे जिसे सत्यस्वरूप परब्रह्म बतलाया गया है; आपका वही अद्भुत रूप मेरे समक्ष प्रकट हो-यही मेरी प्रार्थना है।' श्रीभगवान्ने कहा-महर्षे ! [मेरे विषयमें लोगोंको भिन्न-भिन्न धारणाएँ हैं] कोई मुझे 'प्रकृति' कहते हैं, कोई पुरुष। कोई ईश्वर मानते हैं. कोई धर्म । किन्हीं-किन्हीक मतमें मैं सर्वथा भयरहित मोक्षस्वरूप हूँ। कोई भाव (सत्तास्वरूप) मानते है और कोई-कोई कल्याणमय सदाशिव बतलाते हैं। इसी प्रकार दूसरे लोग मुझे वेदान्तप्रतिपादित अद्वितीय सनातन ब्रह्म मानते हैं। किन्तु वास्तवमें जो सत्तास्वरूप और निर्विकार है, सत्-चित् और आनन्द ही जिसका विग्रह है तथा वेदोंमें जिसका रहस्य छिपा हुआ है, अपना वह पारमार्थिक स्वरूप आज तुम्हारे सामने प्रकट करता हूँ, देखो।। राजन् ! भगवान्के इतना कहते ही मुझे एक बालकका दर्शन हुआ, जिसके शरीरकी कान्ति नील वेदव्यासजी बोले-राजन् ! तुमने अत्यन्त गोपनीय प्रश्न किया है, जिस आत्मानन्दके विषयमें मैंने अपने पुत्र शुकदेवको भी कुछ नहीं बतलाया था, वही आज तुमको बता रहा हूँ; क्योंकि तुम भगवान्के प्रिय भक्त हो। पूर्वकालमें यह सारा विश्व-ब्रह्माण्ड जिसके रूपमें स्थित रहकर अव्यक्त और अविकारी स्वरूपसे प्रतिष्ठित था, उसी परमेश्वरके रहस्यका वर्णन किया जाता है, सुनो-प्राचीन समयमें मैंने फल, मूल, पत्र, जल, वायुका आहार करके कई हजार वर्षांतक भारी तपस्या की। इससे भगवान मुझपर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने ध्यानमें लगे रहनेवाले मुझ भक्तसे कहा'महामते ! तुम कौन-सा कार्य करना अथवा किस विषयको जानना चाहते हो? मैं प्रसन्न हूँ, तुम मुझसे कोई वर माँगो। संसारका बन्धन तभीतक रहता है, जबतक कि मेरा साक्षात्कार नहीं हो जाता; यह मैं तुमसे सच्ची बात बता रहा हूँ।' यह सुनकर मेरे शरीरमें रोमाञ्च A RIN
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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