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________________ . . .अर्चयस्व पीकेशं यदीलसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पापुराण मेघके समान श्याम थी। वह गोपकन्याओं और ग्वाल- भी अनादिकालसे मेरा भक्त है, इसमें तनिक भी सन्देह बालोंसे घिरकर हंस रहा था । वे भगवान् श्यामसुन्दर थे, नहीं है। अहो ! कितने आश्चर्यकी बात है कि दूषित चित्तजो पीत वस्त्र धारण किये कदम्बकी जड़पर बैठे हुए थे। वाले मनुष्य मेरी इस उत्कृष्ट, सनातन एवं मनोरम पुरीको, उनकी झाँकी अद्भुत थी। उनके साथ ही नूतन पल्लवोंसे जिसको देवराज इन्द्र, नागराज अनन्त तथा बड़े-बड़े अलङ्कत 'वृन्दावन' नामवाला वन भी दृष्टिगोचर हुआ। मुनीश्वर भी स्तुति करते हैं, नहीं जानते। यद्यपि काशी इसके बाद मैंने नौल कमलकी आभा धारण करनेवाली आदि अनेकों मोक्षदायिनी पुरियाँ विद्यमान हैं, तथापि उन कलिन्दकन्या यमुनाके दर्शन किये। फिर गोवर्धन- सबमें मथुरापुरी ही धन्य है; क्योंकि यह अपने क्षेत्रमें जन्म, पर्वतपर दृष्टि पड़ी, जिसे श्रीकृष्ण तथा बलरामने इन्द्रका उपनयन, मृत्यु और दाह-संस्कार-इन चारों ही कारणोंसे घमंड चूर्ण करनेके लिये अपने हाथोंपर उठाया था। वह मनुष्योंको मोक्ष प्रदान करती है। जब तप आदि साधनोंके पर्वत गौओं तथा गोपोंको बहुत सुख देनेवाला है । गोपाल द्वारा मनुष्योंके अन्तःकरण शुद्ध एवं शुभसङ्कल्पसे युक्त हो श्रीकृष्ण अबलाओंके साथ बैठकर बड़ी प्रसन्नताके साथ जाते हैं और वे निरन्तर ध्यानरूपी धनका संग्रह करने वेणु बजा रहे थे, उनके शरीरपर सब प्रकारके आभूषण लगते हैं, तभी उन्हें मथुराकी प्राप्ति होती है। मथुरावासी शोभा पा रहे थे। उनका दर्शन करके मुझे बड़ा हर्ष हुआ। धन्य है, वे देवताओंके भी माननीय हैं, उनकी महिमाकी तब वृन्दावनमें विचरनेवाले भगवान्ने स्वयं मुझसे गणना नहीं हो सकती। मथुरावासियोंके जो दोष हैं; वे नष्ट कहा-'मुने ! तुमने जो इस दिव्य सनातनरूपका दर्शन हो जाते हैं; उनमें जन्म लेने और मरनेका दोष नहीं देखा किया है, यही मेरा निष्कल, निष्क्रिय, शान्त और जाता । जो निरन्तर मथुरापुरीका चिन्तन करते हैं, वे निर्धन सच्चिदानन्दमय पूर्ण विग्रह है। इस कमललोचनस्वरूपसे होनेपर भी धन्य है, क्योंकि मथुरामें भगवान् भूतेश्वरका बढ़कर दूसरा कोई उत्कृष्ट तत्त्व नहीं है। वेद इसी निवास है, जो पापियोंको भी मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं। स्वरूपका वर्णन करते हैं। यही कारणोंका भी कारण है। देवताओंमें श्रेष्ठ भगवान् भूतेश्वर मुझको सदा ही प्रिय हैं; यही सत्य, परमानन्दस्वरूप, चिदानन्दघन, सनातन और क्योंकि वे मेरी प्रसन्नताके लिये कभी भी मथुरापुरीका शिवतत्व है। तुम मेरी इस मथुरापुरीको नित्य समझो। यह परित्याग नहीं करते। जो भगवान् भूतेश्वरको नमस्कार, वृन्दावन, यह यमुना, ये गोपकन्याएँ तथा ग्वाल-बाल उनका पूजन अथवा स्मरण नहीं करता, वह मनुष्य सभी नित्य है। यहाँ जो मेरा अवतार हुआ है, यह भी दुराचारी है। जो मेरे परम भक्त शिवका पूजन नहीं करता, नित्य है। इसमें संशय न करना। राधा मेरी सदाकी उस पापीको किसी तरह मेरी भक्ति नहीं प्राप्त होती । धुवने प्रियतमा है। मैं सर्वज्ञ, परात्पर, सर्वकाम, सर्वेश्वर तथा बालक होनेपर भी जहाँ मेरी आराधना करके उस परम सर्वानन्दमय परमेश्वर हूँ। मुझमें ही यह सारा विश्व, जो विशुद्ध स्थानको प्राप्त किया, जो उसके बाप-दादोंको भी मायाका विलासमात्र है, प्रतीत हो रहा है। नहीं नसीब हुआ था; वह मेरी मथुरापुरी देवताओंके लिये " तब मैंने जगत्के कारणोंके भी कारण भगवानसे भी दुर्लभ है। वहाँ जाकर मनुष्य यदि लैंगड़ा या अंधा कहा-'नाथ ! ये गोपियाँ और स्वाल कौन है? तथा यह होकर भी प्राणोंका परित्याग करे तो उसकी भी मुक्ति हो वृक्ष कैसा है?' तब वे बड़े प्रेमसे बोले-'मुने! जाती है। महामना वेदव्यास ! तुम इस विषयमें कभी गोपियोंको श्रुतियाँ समझो तथा देवकन्याएँ भी इनके रूपमें सन्देह न करना । यह उपनिषदोंका रहस्य है, जिसे मैंने प्रकट हुई हैं। तपस्यामें लगे हुए मुमुक्षु मुनि ही इन ग्वाल- तुम्हारे सामने प्रकाशित किया है। बालोंके रूपमें दिखायी दे रहे हैं। ये सभी मेरे आनन्दमय . जो मनुष्य पवित्र होकर भगवान्के श्रीमुखसे कहे हुए विग्रह हैं। यह कदम्ब कल्पवृक्ष है, जो परमानन्दमय इस अध्यायका भक्तिपूर्वक पाठ या श्रवण करता है, उसे श्रीकृष्णका एकमात्र आश्रय बना हुआ है तथा यह पर्वत भी सनातन मोक्षकी प्राप्ति होती है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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