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________________ • अर्धग्रस्व हबीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्यपुराण आश्चर्यसे मोहित हो गये, तब उन व्रजबालाओंने कृपा- अवस्था और रूपसे सबको मोहित करनेवाली यह पूर्वक अपनी सखीका चरणोदक लेकर मुनिके ऊपर छींटा श्रीकृष्णकी प्रियतमा हमारी सखी आज तुम्हारे समक्ष दिया। इस प्रकार जब वे होशमें आये तो बालिकाओंने प्रकट हुई है। निश्चय ही यह तुम्हारे किसी अचिन्त्य सौभाग्यका प्रभाव है। ब्रह्मर्षे ! धैर्य धारण करके शीघ्र ही उठो, खड़े हो जाओ और इस देवीको प्रदक्षिणा करो; इसके चरणों में बारम्बार मस्तक झुका लो। फिर समय नहीं मिलेगा, यह अभी इसी क्षण अन्तर्धान हो जायगी। अब इसके साथ तुम्हारी बातचीत किसी तरह नहीं हो सकेगी।' ___व्रज-बालाओंका चित्त स्नेहसे विह्वल हो रहा था। उनकी बातें सुनकर नारदजी नाना प्रकारके वेषविन्याससे शोभा पानेवाली उस दिव्य बालाके चरणोंमें दो मुहूर्ततक पड़े रहे। तदनन्तर उन्होंने भानुको बुलाकर उस सर्वशोभा-सम्पन्न कन्याके सम्बन्धमें इस प्रकार कहा-'गोपश्रेष्ठ ! तुम्हारी इस कन्याका स्वरूप और स्वभाव दिव्य है। देवता भी इसे अपने वशमें नहीं कर सकते। जो घर इसके चरण-चिह्नोंसे विभूषित होगा, वहाँ भगवान् नारायण सम्पूर्ण देवताओके साथ निवास - करेंगे और भगवती लक्ष्मी भी सब प्रकारकी सिद्धियोंके कहा-मुनिश्रेष्ठ ! तुम बड़े भाग्यशाली हो, महान् साथ वहाँ मौजूद रहेगी। अब तुम सम्पूर्ण आभूषणोंसे योगेश्वरोंके भी ईश्वर हो । तुम्हीने पराभक्तिके साथ सर्वेश्वर विभूषित इस सुन्दरी कन्याको परा देवीकी भांति भगवान् श्रीहरिकी आराधना की है। भक्तोंकी इच्छा पूर्ण समझकर इसको अपने घरमें यत्नपूर्वक रक्षा करो। करनेवाले भगवान्की उपासना वास्तवमें तुम्हारे ही द्वारा ऐसा कहकर भगवद्भक्तोमे श्रेष्ठ नारदजौने हुई है। यही कारण है कि ब्रह्मा और रुद्र आदि देवता, मन-ही-मन उस देवीको प्रणाम किया और उसीके सिद्ध, मुनीश्वर तथा अन्य भगवद्भक्तोंके लिये भी जिसे स्वरूपका चिन्तन करते हुए वे गहन वनके भीतर देखना और जानना कठिन है, वही अपनी अद्भुत चले गये। * भगवानके परात्पर स्वरूप-श्रीकृष्णकी महिमा तथा मथुराके माहात्यका वर्णन श्रीमहादेवजीने कहा-देवि ! महर्षि वेदव्यासने उनका स्तवन करते हुए कहा-भगवन् ! आप विषयोंसे विष्णुभक्त महाराज आम्बरीषसे जिस रहस्यका वर्णन विरक्त हैं। मैं आपको वारम्बार नमस्कार करता हूँ। प्रभो ! किया था, वही मैं तुम्हें भी बतला रहा हूँ। एक समयकी जो परमपद, उद्वेगशून्य-शान्त है, जो सच्चिदानन्दबात है, राजा अम्बरीष बदरिकाश्रममें गये। वहाँ परम स्वरूप और परब्रह्मके नामसे प्रसिद्ध है, जिसे 'परम जितेन्द्रिय महर्षि वेदव्यास विराजमान थे। राजाने आकाश' कहा गया है, जो इस भौतिक जड आकाशसे विष्णु-धर्मको जाननेकी इच्छासे महर्षिको प्रणाम करके सर्वथा विलक्षण है, जहाँ किसी रोग-व्याधिका प्रवेश
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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