________________ * अर्जयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पयपुराण नाथ ! जब-जब दानवी शक्तियां हमें दुःख देने लगे करके विनीत भावसे श्रीरघुनाथजीको बारंबार प्रणाम तब-तब आप इस पृथ्वीपर अवतार ग्रहण करें। विभो! किया। महायशस्वी श्रीरामचन्द्रजी देवताओंकी इस यद्यपि आप सबसे श्रेष्ठ, अपने भक्तोंद्वारा पूजित, स्तुतिसे बहुत सन्तुष्ट हुए और उन्हें मस्तक झुकाकर अजन्मा तथा अविकारी है तथापि अपनी मायाका चरणोंमें पड़े देख बोले। आश्रय लेकर भिन्न-भिन्न रूपमें प्रकट होते हैं। आपके श्रीरामने कहा-देवताओ! तुमलोग मुझसे सुन्दर चरित्र (पवित्र लीलाएँ) मरनेवाले प्राणियोंके लिये कोई ऐसा वर माँगो जो तुम्हें अत्यन्त दुर्लभ हो तथा जिसे अमृतके समान दिव्य जीवन प्रदान करनेवाले हैं। उनके अबतक किसी देवता, दानव, यक्ष और राक्षसने भी नहीं श्रवणमात्रसे समस्त पापोंका नाश हो जाता है। आपने प्राप्त किया हो। अपनी इन लीलाओंसे समस्त भूमण्डलको व्याप्त कर देवता बोले-स्वामिन् ! आपने हमलोगोंके इस रखा है तथा गुणोंका गान करनेवाले देवताओद्वारा भी शत्रु दशाननका जो वध किया है, उसीसे हमें सब उत्तम आपकी स्तुति की गयी है। जो सबके आदि हैं, परन्तु वरदान प्राप्त हो गया। अब हम यही चाहते हैं कि जिनका आदि कोई नहीं है, जो अजर (तरुण) रूप जब-जब कोई असुर हमलोगोंको क्लेश पहुंचावे तब-तब धारण करनेवाले हैं, जिनके गलेमें हार और मस्तकपर आप इसी तरह हमारे उस शत्रुका नाश किया करें। किरीट शोभा पाता है, जो कामदेवकी भी कान्तिको वीरवर भगवान् श्रीरामचन्द्रजीने 'बहुत अच्छा' लज्जित करनेवाले हैं, साक्षात् भगवान् शिव जिनके कहकर देवताओंकी प्रार्थना स्वीकार की और फिर इस चरणकमलोंकी सेवामें लगे रहते है तथा जिन्होंने अपने प्रकार कहा। शत्रु रावणका बलपूर्वक वध किया है, वे श्रीरघुनाथजी श्रीराम बोले-देवताओ! तुम सब लोग सदा ही विजयी हों। आदरपूर्वक मेरा वचन सुनो, तुमलोगोंने मेरे गुणोंको ब्रह्मा आदि सम्पूर्ण देवताओंने इस प्रकार स्तुति प्रथित करके जो यह अद्भुत स्तोत्र बनाया है, इसका जो ESTATATE AC - मनुष्य प्रातःकाल तथा रात्रिमें एक बार प्रतिदिन पाठ करेगा, उसको कभी अपने शत्रुओंसे पराजित होनेका भयङ्कर कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा। उसके घरमें दरिद्रताका प्रवेश नहीं होगा तथा उसे रोग नहीं सतायेंगे। इतना ही नहीं, इसके पाठसे मनुष्योंके उल्लासपूर्ण हदयमें मेरे युगल-चरणोंकी गाढ़ भक्तिका उदय होगा! ___ यह कहकर नरदेवशिरोमणि श्रीरघुनाथजी चुप हो गये तथा सम्पूर्ण देवता अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने-अपने लोकको चले गये। इधर लोकनाथ श्रीरामचन्द्रजी अपने विद्वान् भाइयोंका पिताकी भांति पालन करते हुए प्रजाको अपने पुत्रके समान मानकर सबका लालन-पालन करने लगे। उनके शासनकालमें जगतके मनुष्योंकी कभी अकाल मृत्यु नहीं होती थी। किसीके घरमें रोग आदिका प्रकोप नहीं होता था। न