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________________ पातालखण्ड] * देवताओद्वारा श्रीरामकी स्तुति, श्रीरामका उन्हें वरदान तथा रामराज्यका वर्णन . ........................... ..................................................mammeen. कभी ईति' दिखायी देती और न शत्रसे ही कोई भय था)। उस राज्यकी स्त्रियोंमें ही विभ्रम (हाव-भाव या होता। वृक्षोंमें सदा फल लगे रहते और पृथ्वीपर अधिक विलास) था; विद्वानोंमें कहीं विभ्रम (भ्रान्ति या भूल) मत्रामें अनाजकी उपज होती थी। स्त्रियोंका जीवन पुत्र- का नाम भी नहीं था। वहाँकी नदियाँ ही कुटिल मार्गसे पौत्र आदि परिवारसे सनाथ रहता था। उन्हें निरन्तर जाती थीं, प्रजा नहीं; अर्थात् प्रजामें कुटिलताका सर्वथा अपने प्रियतमका संयोगजनित सुख मिलते रहनेके अभाव था। श्रीरामके राज्यमें केवल कृष्णपक्षकी रात्रि ही कारण विरहका क्लेश नहीं भोगना पड़ता था। सब लोग तम (अन्धकार) से युक्त थी, मनुष्योंमें तम (अज्ञान या सदा श्रीरघुनाथजीके चरणकमलोंकी कथा सुननेके लिये दुःख) नहीं था। वहाँको स्त्रियोंमें ही रजका संयोग देखा उत्सुक रहते थे। उनकी वाणी कभी परायी निन्दामें नहीं जाता था, धर्म-प्रधान मनुष्योंमें नहीं; अर्थात् मनुष्योंमें प्रवृत्त होती थी। उनके मनमें भी कभी पापका संकल्प धर्मकी अधिकता होनेके कारण सत्त्वगुणका ही उद्रेक नहीं होता था। सीतापति श्रीरामके मुखकी ओर निहारते होता था [रजोगुणका नहीं] / धनसे वहाँक मनुष्य ही समय लोगोंकी आँखें स्थिर हो जाती-वे एकटक अनन्ध थे (मदान्ध होनेसे बचे थे); उनका भोजन अनन्ध नेत्रोंसे उन्हें देखते रह जाते थे। सबका हृदय निरन्तर (अनरहित) नहीं था। उस राज्यमें केवल रथ ही 'अनय' करुणासे भरा रहता था। सदा इष्ट (यज्ञ-यागादि) और (लोह-रहित) था; राजकर्मचारियोंमें 'अनय' (अन्याय) आपूर्त (कुएँ खुदवाने, बगीचे लगवाने आदि) के का भाव नहीं था। फरसे, फावड़े, चैवर तथा छत्रोंमें ही अनुष्ठान करनेवाले लोगोंके द्वारा उस राज्यकी जड़ और दण्ड (डंडा) देखा जाता था; अन्यत्र कहीं भी क्रोध या मजबूत होती थी। समूचे राष्ट्रमें सदा हरी-भरी खेती बन्धन-जनित दण्ड देखनेमें नहीं आता था। जलोंमें ही लहराती रहती थी। जहाँ सुगमतापूर्वक यात्रा की जा जडता (या जलत्व) की बात सुनी जाती थी; मनुष्योंमें सके, ऐसे क्षेत्रोंसे वह देश भरा हुआ था। उस राज्यका नहीं। स्वीके मध्यभाग (कटि) में ही दुर्बलता देश सुन्दर और प्रजा उत्तम थी। सब लोग स्वस्थ रहते (पतलापन) थी; अन्यत्र नहीं / वहाँ ओषधियोंमें ही कुष्ठ थे। गौएँ अधिक थीं और घास-पातका अच्छा सुभीता (कूट या कूठ नामक दवा) का योग देखा जाता था, था। स्थान-स्थानपर देव-मन्दिरोंकी श्रेणियाँ रामराज्यकी मनुष्योंमें कुष्ठ (कोढ़)का नाम भी नहीं था। रलोमें ही शोभा बढ़ाती थीं। उस राज्यमें सभी गाँव भरे-पूरे और वेध (छिद्र) होता था, मूर्तियोंके हाथोंमें ही शूल धन-सम्पत्तिसे सुशोभित थे। वाटिकाओंमें सुन्दर-सुन्दर (त्रिशूल) रहता था, प्रजाके शरीरमें वेध या शूलका रोग फूल शोभा पाते और वृक्षोंमे स्वादिष्ट फल लगते थे। नहीं था। रसानुभूतिके समय सात्त्विक भावके कारण ही कमलोंसे भरे हुए तालाब वहाँकी भूमिका सौन्दर्य बढ़ा शरीरमें कम्प होता था; भयके कारण कहीं किसीको कैंपकैपी होती हो-ऐसी बात नहीं देखी जाती थी। रामराज्यमें केवल नदी ही सदम्भा (उत्तम राम-राज्यमें केवल हाथी ही मतवाले होते थे, मनुष्योंमें जलवाली) थी, वहाँकी जनता कहीं भी सदम्भा (दम्भ कोई मतवाला नहीं था। तरङ्गे जलाशयोंमें ही उठती थीं, या पाखण्डसे युक्त) नहीं दिखायी देती थी। ब्राह्मण, किसीके मनमें नहीं; क्योंकि सबका मन स्थिर था। दान क्षत्रिय आदि वर्गों के कुल (समुदाय) ही कुलीन (उत्तम (मद) का त्याग केवल हाथियोंमें ही दृष्टिगोचर होता था; कुलमें उत्पन्न) थे, उनके धन नहीं कुलीन थे (अर्थात् राजाओंमें नहीं / काँटे ही तीखे होते थे, मनुष्योंका स्वभाव उनके धनका कुत्सित मार्गमें लय-उपयोग नहीं होता नहीं। केवल बाणोंका ही गुणोंसे वियोग होता था 1. ईति' कई प्रकारको होती है-अवृष्टि (सूखा पड़ना), अतिवृष्टि (अधिक वर्षा के कारण बाढ़ आना), खेतोंमें चूहोंका लगना, टिहियोंका उपद्रव, सुग्गोसे हानि और राजासे वैर इत्यादि। २-धनुषको डोरीको गुण कहते हैं, छूटते समय बाणका उससे वियोग होता है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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