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________________ पातालखण्ड] * देवताओंद्वारा श्रीरामकी स्तुति, श्रीरामका उन्हें वरदान तथा रामराज्यका वर्णन . 417 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . श्रीरामचन्द्रजीकी बात सुनकर माता कौसल्याने बड़े हर्षके साथ राजा श्रीरामचन्द्रजीका अभिषेक अपने पैरोंपर पड़ी हुई पतिव्रता बहू सीताको आशीर्वाद कराया। सुन्दर व्याघ्रचर्मके ऊपर सातों द्वीपोंसे युक्त देते हुए कहा-'मानिनी सीते ! तुम चिरकालतक अपने पृथ्वीका नकशा बनाकर राजाधिराज महाराज श्रीराम पतिकी जीवन-सङ्गिनी बनी रहो। मेरी पवित्र स्वभाव- उसपर विराजमान हुए। उसी दिनसे साधु पुरुषोंके वाली बहू ! तुम दो पुत्रोंकी जननी होकर अपने इस हृदयमें आनन्द छा गया। सभी स्त्रियाँ पतिके प्रति कुलको पवित्र करो। बेटी ! दुःख-सुखमें पतिका साथ भक्ति रखती हुई पतिव्रत-धर्मके पालनमें संलग्न देनेवाली तुम्हारी-जैसी पतिव्रता स्त्रियाँ तीनों लोकोंमें हो गयीं। संसारके मनुष्य कभी मनसे भी पापका कहीं भी दुःखकी भागिनी नहीं होतीं-यह सर्वथा सत्य आचरण नहीं करते थे। देवता, दैल्य, नाग, यक्ष, असुर है। विदेहकुमारी ! तुमने महात्मा रामके चरणकमलोंका तथा बड़े-बड़े सर्प-ये सभी न्यायमार्गपर स्थित होकर अनुसरण करके अपने ही द्वारा अपने कुलको पवित्र कर श्रीरामचन्द्रजीकी आज्ञाको शिरोधार्य करने लगे। सभी दिया।' सुन्दर नेत्रोंवाली श्रीरघुनाथपत्नी सीतासे यों परोपकारमें लगे रहते थे। सबको अपने धर्मके कहकर माता कौसल्या चुप हो गयीं। हर्षके कारण पुनः अनुष्ठानमें ही सुख और संतोषकी प्राप्ति होती थी। उनका सर्वाङ्ग पुलकित हो गया। विद्यासे ही सबका विनोद होता था। दिन-रात तदनन्तर श्रीरामचन्द्रजीके भाई भरतने उन्हें शुभ कर्मोंपर ही सबकी दृष्टि रहती थी। श्रीरामके पिताजीका दिया हुआ अपना महान् राज्य निवेदन कर राज्यमें चोरोंकी तो कहीं चर्चा ही नहीं थी। जोरसे दिया। इससे मन्त्रियोंको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने चलनेवाली हवा भी राह चलते हुए पथिकोंके सूक्ष्ममन्त्रके जाननेवाले ज्योतिषियोंको बुलाकर से-सूक्ष्म वस्त्रको भी नहीं उड़ाती थी। कृपानिधान राज्याभिषेकका मुहूर्त पूछा और उद्योग करके उनके श्रीरामचन्द्रजीका स्वभाव बड़ा दयालु था। वे याचकोंके बताये हुए उत्तम नक्षत्रसे युक्त अच्छे दिनको शुभ मुहूर्तमें लिये कुबेर थे। देवताओंद्वारा श्रीरामकी स्तुति, श्रीरामका उन्हें वरदान देना तथा रामराज्यका वर्णन __ शेषजी कहते हैं-मुने ! जब श्रीरामचन्द्रजीका समुद्रमें प्रकट होनेवाले अजर-अमर और अच्युत राज्याभिषेक हो गया तो राक्षसराज रावणके वधसे परमेश्वर ! आपकी जय हो। भगवन् ! आप देवताओंसे प्रसन्नचित्त हुए देवताओंने प्रणाम करके उनका इस प्रकार श्रेष्ठ हैं। आपका नाम लेकर अनेकों प्राणी पवित्र हो गये; स्तवन किया। फिर जिन्होंने श्रेष्ठ द्विज-वंशमें जन्म ग्रहण करके उत्तम देवता बोले-देवताओंकी पीड़ा दूर करनेवाले मानव-शरीरको प्राप्त किया है, उनका उद्धार होना कौन दशरथनन्दन श्रीराम ! आपकी जय हो। आपके द्वारा जो बड़ी बात है? शिव और ब्रह्माजी भी जिनको मस्तक राक्षसराजका विनाश हुआ है, उस अद्भुत कथाका झुकाते हैं, जो पवित्र यव आदिके चिह्नोंसे सुशोभित तथा समस्त कविजन उत्कण्ठापूर्वक वर्णन करेंगे। भुवनेश्वर ! मनोवाञ्छित कामना एवं समृद्धि देनेवाले हैं, उन आपके प्रलयकालमें आप सम्पूर्ण लोकोंकी परम्पराको चरणोंका हम निरन्तर अपने हृदयमें चिन्तन करते रहे, लीलापूर्वक ग्रस लेते हैं। प्रभो! आप जन्म और जरा यही हमारी अभिलाषा है। आप कामदेवकी भी शोभाको आदिके दुःखोंसे सदा मुक्त हैं। प्रबल शक्तिसम्पन्न तिरस्कृत करनेवाली मनोहर कान्ति धारण करते हैं। परमात्मन् ! आपकी जय हो, आप हमारा उद्धार परमपावन दयामय ! यदि आप इस भूमण्डलके कीजिये, उद्धार कीजिये। धार्मिक पुरुषोंके कुलरूपी अभयदान न दें तो देवता कैसे सुखी हो सकते हैं?
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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