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________________ स्वर्गखण्ड ] • भगवानके भजन एवं नाम-कीर्तनकी महिमा . ३७५ महाराज ! दरिद्र मनुष्य यज्ञ नहीं कर सकते । यज्ञमें बहुत यह ऋषियोंका गोपनीय रहस्य है; तीर्थयात्राका पुण्य सामग्रीकी आवश्यकता होती है। नाना प्रकारको यज्ञोंसे भी बढ़कर होता है। एक खरब, तीस करोड़से भी तैयारियाँ और समारोह करने पड़ते हैं। कहीं कोई धनवान् अधिक तीर्थ माघमासमें गङ्गाजीके भीतर आकर स्थित मनुष्य ही भाँति-भाँतिके द्रव्योंका उपयोग करके यज्ञ कर होते हैं [अतः माघमें गङ्गा-स्रान परम पुण्यका साधक सकता है। नरेश्वर ! जिसे विद्वान् पुरुष दरिद्र होनेपर भी होता है] * महाराज! अब आप निश्चिन्त होकर कर सकें तथा जो पुण्य और फलमें यज्ञकी समानता अकण्टक राज्य भोगिये। अब फिर अश्वमेध यज्ञके करता हो, वह उपाय बताता हूँ; सुनिये। भरतश्रेष्ठ ! समय मुझसे आपकी भेंट होगी। भगवानके भजन एवं नाम-कीर्तनकी महिमा ऋषय ऊचुः भक्ति की है, उसने बाजी मार ली, उसने विजय प्राप्त कर भवता कथितं सर्व यत्किञ्चित् पृष्टमेव च। ली, उसकी निश्चय ही जीत हो गयी-इसमें तनिक भी इदानीमपि पच्छाम एकं वद महामते ॥ १॥ सन्देह नहीं है। ऋषियोंने कहा-महामते ! हमलोगोंने जो कुछ हरिरेव समाराध्यः सर्वदेवेश्वरेश्वरः । पूछा था, वह सब आपने कह सुनाया। अब भी आपसे हरिनाममहामन्त्रैश्येत् पापपिशाचकम् ॥५॥ एक प्रश्न करते हैं, उसका उत्तर दीजिये। सम्पूर्ण देवेश्वरोंके भी ईश्वर भगवान् श्रीहरिकी ही एतेषां खलु तीर्थानां सेवनायत् फलं भवेत् । भलीभाँति आराधना करनी चाहिये। हरिनामरूपी सर्वेषां किल कृत्वैकं कर्म केन च लभ्यते। महामन्त्रोंके द्वारा पापरूपी पिशाचोंका समुदाय नष्ट हो एतन्नो ब्रूहि सर्वज्ञ कमैंवं यदि वर्तते ॥ २॥ जाता है। इन सभी तीर्थोक सेवनसे जो फल होता है, वही हरेः प्रदक्षिणां कृत्वा सक्दप्यमलाशयाः । कौन-सा एक कर्म करनेसे प्राप्त हो सकता है ? सर्वज्ञ सर्वतीर्थसमागाह्य लभन्ते यन्न संशयः ॥६॥ सूतजी ! यदि ऐसा कोई कर्म हो तो उसे हमें बताइये। एक बार भी श्रीहरिकी प्रदक्षिणा करके मनुष्य शुद्ध सूत उवाच हो जाते हैं तथा सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्रान करनेका जो फल कर्मयोगः किल प्रोक्तो वर्णानां द्विजपूर्वशः। होता है, उसे प्राप्त कर लेते हैं-इसमें तनिक भी सन्देह नानाविधो महाभागास्तत्र चैक विशिष्यते ॥३॥ नहीं है। __महाभाग महर्षिगण ! [शास्त्रोंमें] ब्राह्मणादि प्रतिमां च हरेर्दृष्ट्वा सर्वतीर्थफलं लभेत् । वर्गों के लिये निश्चय ही नाना प्रकारके कर्मयोगका विष्णुनाम परं जप्त्वा सर्वमन्त्रफलं लभेत् ॥७॥ वर्णन किया गया है, परन्तु उसमें एक ही बात सबसे मनुष्य श्रीहरिकी प्रतिमाका दर्शन करके सब बढ़कर है। तीर्थोका फल प्राप्त करता है तथा विष्णुके उत्तम नामका हरिभक्तिः कृता येन मनसा कर्मणा गिरा। जप करके सम्पूर्ण मन्त्रोंके जपका फल पा लेता है। जितं तेन जितं तेन जितमेव न संशयः ।। ४ ॥ विष्णुप्रसादतुलसीमानाय द्विजसत्तमाः । _जिसने मन, वाणी और क्रियाद्वारा श्रीहरिकी प्रचण्डं विकरालं तद् यमस्यास्यं न पश्यति ।। ८॥ * प्राषीणां परमं दशकोटिसहस्राणि गुह्यमिदं भरतसत्तम । तीर्थाभिगमनं पुर्य यज्ञैरपि विशिष्यते ॥ शिस्कोट्यस्तथापरे । माघमासे तु गङ्गायो गमिष्यन्ति नरर्षभ ।। (स्वर्ग:४९।१५-१६)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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