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________________ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण रहस्य है, जो सब पापोंका नाश करनेवाला है। इस भगवान् रुद्र सम्पूर्ण जगत्का संहार करते हैं। ये ब्रह्मा, प्रसङ्गका पाठ करनेवाला द्विज सब प्रकारके पापोंसे विष्णु और महादेवजी प्रयागमें सदा निवास करते हैं। रहित हो जाता है। कुरुनन्दन ! तुम प्रयागके तीर्थोंमें प्रयागमण्डलका विस्तार पाँच योजन (बीस कोस) है। स्नान करो। राजन् ! तुमने विधिपूर्वक प्रश्न किया था, उपर्युक्त देवता पापकोंका निवारण करते हुए उस इसलिये मैंने तुमसे प्रयाग-माहात्म्यका वर्णन किया है। मण्डलकी रक्षाके लिये वहाँ मौजूद रहते है। अतः इसे सुनकर तुमने अपने समस्त पितरों और पितामहोंका प्रयागमें किया हुआ थोड़ा-सा भी पाप नरकमे उद्धार कर दिया। गिरानेवाला होता है। युधिष्ठिर बोले-महामुने! आपने प्रयाग- सूतजी कहते हैं-तदनन्तर, धर्मपर विश्वास माहात्म्यकी यह सारी कथा सुनायी; इसी प्रकार और सब करनेवाले समस्त पाण्डवोंने भाइयोसहित ब्राह्मणोंको बातें भी बताइये, जिससे मेरा उद्धार हो सके। नमस्कार करके गुरुजनों और देवताओंको तृप्त किया। मार्कण्डेयजीने कहा-राजन् ! सुनो, बताता उसी समय भगवान् वासुदेव भी वहाँ आ पहुँचे। फिर हूँ। ब्रह्मा, विष्णु तथा महादेवजी-ये तीनों देवता समस्त पाण्डवोंने मिलकर भगवान् श्रीकृष्णका पूजन सबके प्रभु और अविनाशी हैं। ब्रह्मा इस सम्पूर्ण किया। तत्पश्चात् कृष्णसहित सब महात्माओने धर्मपुत्र जगत्की, यहाँक चराचर प्राणियोंकी सृष्टि करते हैं और युधिष्ठिरको स्वराज्यपर अभिषिक्त किया। इसके बाद परमेश्वर विष्णु उन सबका, समस्त प्रजाओंका पालन भाइयोसहित धर्मात्मा युधिष्ठिरने ब्राह्मणोंको बड़े-बड़े करते हैं। फिर जब कल्पका अन्त उपस्थित होता है, तब दान दिये। जो सबेरे उठकर इस प्रसङ्गका पाठ अथवा श्रवण करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर विष्णुलोकमें जाता है। ___तत्पश्चात् भगवान् वासुदेव बोले-राजा युधिष्ठिर ! मैं आपके रोहवश कुछ निवेदन करता हूँ, आपको मेरी बात माननी चाहिये। महाराज ! आप प्रतिदिन हमारे साथ प्रयागका स्मरण करनेसे स्वयं सनातन लोकको प्राप्त होंगे। जो मनुष्य प्रयागको जाता अथवा वहाँ निवास करता है, वह सब पापोंसे शुद्ध होकर दिव्यलोकको जाता है। जो किसीका दिया हुआ दान नहीं लेता, संतुष्ट रहता, मन और इन्द्रियोंको संयममें रखता, पवित्र रहता और अहङ्कारका त्याग कर देता है, उसीको तीर्थका पूरा फल मिलता है। राजेन्द्र ! जो क्रोधहीन, सत्यवादी, दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रतका पालन करनेवाला तथा सम्पूर्ण भूतोंमें आत्मभाव रखनेवाला है, वही तीर्थके फलका उपभोग करता है।* ऋषियों और देवताओंने भी क्रमशः यज्ञोंका वर्णन किया है, किन्तु * प्रतिप्रहादुपावृत्तः संतुष्टो नियतः शुचिः । अहंकारनिवृत्तश्च स तीर्थफलमश्रुते॥ अकोपनश्च राजेन्द्र सत्यवादी दृढव्रतः । आत्मोपमश्च भूतेषु स तीर्थफलम श्रुते ॥ (स्वर्ग०४९ । १०-११)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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