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________________ त... - • अर्बयस्व हवीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पापुराण वहाँ कावेरी-संगमका जल सब पापोंका नाश पुरुष अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करके रुद्रलोकमें करनेवाला है। जो लोग उस संगमको महिमाको नहीं पूजित होता है। गङ्गा और यमुनाके संगममें स्नान जानते, वे बड़े भारी लाभसे वञ्चित रह जाते हैं। अतः करके मनुष्य जिस फलको प्राप्त करता है, वही फल मनुष्यको सर्वथा प्रयत्न करके वहाँ स्नान करना उसे कावेरी-नर्मदा-संगममें स्नान करनेसे भी मिलता चाहिये। कावेरी और महानदी नर्मदा दोनों ही परम है। राजेन्द्र ! इस प्रकार नर्मदा-कावेरी-संगमकी बड़ी पुण्यदायिनी हैं। महाराज ! वहाँ स्नान करके वृषभध्वज महिमा है। वहाँ सब पापोंका नाश करनेवाला महान् भगवान् शङ्करका पूजन करना चाहिये। ऐसा करनेवाला पुण्यफल प्राप्त होता है। - * नर्मदाके तटवर्ती तीर्थोका वर्णन नारदजी कहते हैं-युधिष्ठिर ! नर्मदाके उत्तर वहाँसे पिप्पलेश्वर तीर्थको यात्रा करे, वह सब पापोंका तटपर 'पत्रेश्वर' नामसे विख्यात एक तीर्थ है, जिसका नाश करनेवाला तीर्थ है । वहाँ जानेसे रुद्रलोकमें सम्मानविस्तार चार कोसका है। वह सब पापोंका नाश पूर्वक निवास प्राप्त होता है। इसके बाद विमलेश्वर तीर्थमें करनेवाला उत्तम तीर्थ है। राजन् ! वहाँ स्नान करके जाय; वह बड़ा निर्मल तीर्थ है; उस तीर्थमें मृत्यु होनेपर मनुष्य देवताओंके साथ आनन्दका अनुभव करता है। रुद्रलोककी प्राप्ति होती है। तदनन्तर पुष्करिणीमें जाकर वहाँसे 'गर्जन' नामक तीर्थमें जाना चाहिये, जहाँ सान करना चाहिये; वहाँ स्रान करनेमात्रसे मनुष्य इन्द्रके [रावणका पुत्र] मेघनाद गया था; उसी तीर्थके प्रभावसे आधे सिंहासनका अधिकारी हो जाता है। नर्मदा समस्त उसको 'इन्द्रजित्' नाम प्राप्त हुआ था। वहाँसे 'मेघराव' सरिताओमें श्रेष्ठ है, वह स्थावर-जङ्गम समस्त प्राणियोंका तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये, जहाँ मेघनादने मेषके समान उद्धार कर देती है। मुनि भी इस श्रेष्ठ नदी नर्मदाका स्तवन गर्जना की थी तथा अपने परिकरोंसहित उसने अभीष्ट करते है। यह समस्त लोकोंका हित करनेकी इच्छासे वर प्राप्त किये थे। राजा युधिष्ठिर ! उस स्थानसे भगवान् रुद्रके शरीरसे निकली है । यह सदा सब पापोंका 'ब्रह्मावर्त' नामक तीर्थको जाना चाहिये, जहाँ ब्रह्माजी अपहरण करनेवाली और सब लोगोके द्वारा अभिवन्दित सदा निवास करते हैं। वहाँ सान करनेसे मनुष्य है। देवता, गन्धर्व और अप्सरा--सभी इसकी स्तुति ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठित होता है। करते रहते हैं-'पुण्यसलिला नर्मदा ! तुम सब नदियोंमें तदनन्तर अङ्गारेश्वर तीर्थमें जाकर नियमित आहार प्रधान हो, तुम्हें नमस्कार है। सागरगामिनी ! तुमको ग्रहण करते हुए नियमपूर्वक रहे। ऐसा करनेवाला मनुष्य प्रणाम है। ऋषिगणोंसे पूजित तथा भगवान् शङ्करके सब पापोंसे शुद्ध हो रुद्रलोकमें जाता है। वहाँसे परम श्रीविग्रहसे प्रकट हुई नर्मदे ! तुम्हें बारंबार नमस्कार है। उत्तम कपिला तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ स्रान करनेसे सुमुखि ! तुम धर्मको धारण करनेवाली हो, तुम्हें प्रणाम मनुष्यको गोदानका फल प्राप्त होता है। तत्पश्चात् है। देवताओंका समुदाय तुम्हारे चरणोंमें मस्तक झुकाता कुण्डलेश्वर नामक उत्तम तीर्थमें जाय, जहाँ भगवान् शङ्कर है, तुम्हें नमस्कार है। देवि! तुम समस्त पवित्र पार्वतीजीके साथ निवास करते हैं। राजेन्द्र ! वहाँ स्रान वस्तुओंको भी परम पावन बनानेवाली हो, सम्पूर्ण संसार करनेसे मनुष्य देवताओंके लिये भी अवध्य हो जाता है। तुम्हारी पूजा करता है; तुम्हें यारंवार नमस्कार है।* * नमः पुण्यजले आधे नमः सागरगामिनि । नमोऽस्तु ते ऋषिगणैः शंकरदेहनिःसृते ॥ - नमोऽस्तु ते धर्मभृते वरानने नमोऽस्तु ते देवगणैकवन्दिते । नमोऽस्तु तो सर्वपवित्रपावने नमोऽस्तु ते सर्वजगत्सुपूजिते । । (१८।१७-१८)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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