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________________ स्वर्गखण्ड] • जम्बूमार्ग आदि तीर्थ, नर्मदा नदी, अपरकष्टक पर्वत तथा कावेरी-सङ्गमकी महिमा . ३३७ सौ योजनसे कुछ अधिक सुनी जाती है तथा चौड़ाई दो महाराज ! अमरकण्टक पर्वत सब ओरसे पुण्यमय योजनकी है। अमरकण्टक पर्वतके चारों ओर साठ है। जो चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहणके अवसरपर अमरकरोड़ और साठ हजार तीर्थ हैं। वहाँ रहनेवाला पुरुष कण्टककी यात्रा करता है, उसके लिये मनीषी पुरुष ब्रह्मचर्यका पालन करे, पवित्र रहे, क्रोध और इन्द्रियोंको अश्वमेधसे दसगुना पुण्य बताते हैं। वहाँ महेश्वरका दर्शन काबूमें रखे तथा सब प्रकारकी हिंसाओंसे दूर रहकर सब करनेसे स्वर्गलोककी प्राप्ति होती है। जो लोग सूर्यप्राणियोंके हित-साधनमें संलग्न रहे। इस प्रकार समस्त ग्रहणके समय समुदायके साथ अमरकण्टक पर्वतकी सदाचारोंका पालन करते हुए क्षेत्रपालो (तीर्थ- यात्रा करते हैं, उन्हें पुण्डरीक यज्ञका सम्पूर्ण फल प्राप्त देवताओं) के दर्शनके लिये यात्रा करनी चाहिये। होता है। उस पर्वतपर ज्वालेश्वर नामक महादेव हैं, वहाँ नर्मदाके दक्षिण-भागमें थोड़ी ही दूरपर एक कपिला स्नान करके मनुष्य स्वर्गलोकको प्राप्त होते हैं तथा नामकी बहुत बड़ी नदी है, जो अपने तटपर उगे हुए जिनकी वहाँ मृत्यु होती है, वे पुनः जन्म-मरणके बन्धनमें देवदार एवं अर्जुनके वृक्षोंसे आच्छादित रहती है। वह नहीं पड़ते। मनुष्यके हृदयमें सकाम भाव हो या परम सौभाग्यवती पावन नदी तीनों लोकोमें विख्यात है। निष्काम, वह नर्मदाके शुभ जलमें स्नान करके सब युधिष्ठिर ! उसके तटपर सौ करोड़से अधिक तीर्थ हैं। पापोंसे मुक्त हो जाता है और अन्तमें रुद्रलोकको कपिलाके तीरपर जो वृक्ष कालचक्रके प्रभावसे गिर जाते जाता है। हैं, वे भी नर्मदाके जलसे संयुक्त होनेपर परम गतिको सूतजी कहते हैं-युधिष्ठिर आदि सब महात्मा प्राप्त होते हैं। एक दूसरी भी नदी है, जिसका नाम पुरुषोंने नारदजीसे पूछा-'भगवन् ! सम्पूर्ण लोकोंके विशल्यकरणा है। उस शुभ नदीके किनारे स्नान करनेसे हितके उद्देश्यसे तथा हमलोगोंके ज्ञान एवं पुण्यकी मनुष्य तत्काल शल्यरहित-शोकहीन हो जाता है। वृद्धिके लिये आप [कृपापूर्वक) नर्मदा-कावेरीनर्मदासे मिली हुई विशल्या नामकी नदी सब पापोंका संगमको यथार्थ महिमाका वर्णन कीजिये।' नाश करनेवाली है। राजन् ! जो मनुष्य वहाँ स्रान करके नारदजीने कहा-राजन् ! लोक-विख्यात ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए जितेन्द्रियभावसे एक रात कावेरी नदी जहाँ नर्मदामें मिली है, उसी स्थानपर पहले निवास करता है, वह अपनी सौ पीढ़ियोंको तार देता है। कभी सत्यपराक्रमी कुबेर स्नान करके पवित्र हो तपस्या महाराज ! जो उस तीर्थमें उपवास करता है, वह सब करते थे। उन्होंने सौ दिव्य वर्षातक भारी तपस्या की। पापोंसे शुद्ध होकर इन्द्रलोकको जाता है। नर्मदामें स्रान इससे प्रसन्न होकर महादेवजीने उन्हें उत्तम वर प्रदान करके मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है। किया। वे बोले-'महान् सत्त्वशाली यक्ष ! तुम अमरकण्टक पर्वतपर जिसकी मृत्यु होती है, वह सौ इच्छानुसार वर माँगो; तुम्हारे मनमे जो अभीष्ट कार्य हो, करोड़ वर्षासे अधिक कालतक इन्द्रलोकमें प्रतिष्ठित उसे बताओ।' होता है। फेन और लहरोंसे सुशोभित नर्मदाका पावन कुबेरने कहा-देवेश्वर ! यदि आप संतुष्ट हैं जल मस्तकपर चढ़ानेयोग्य है; ऐसा करनेसे सब पापोंसे और मुझे वर देना चाहते हैं तो ऐसी कृपा कीजिये कि छुटकारा मिल जाता है। नर्मदा सब प्रकारके पुण्य मैं सब यक्षोंका स्वामी बनें। देनेवाली और ब्रह्महत्याका पाप दूर करनेवाली है। जो कुबेरकी बात सुनकर भगवान् महेश्वर बहुत प्रसन्न नर्मदा-तटपर एक दिन और एक रात उपवास करता है, हुए, वे 'एवमस्तु' कहकर वहीं अन्तर्धान हो गये। वर वह ब्रह्महत्यासे छूट जाता है । पाण्डुनन्दन ! इस प्रकार पाकर कुबेर यक्षपुरी-अलकापुरीमे गये। वहाँ श्रेष्ठ नर्मदा परम पावन एवं रमणीय नदी है। यह महानदी यक्षोंने उनका बड़ा सम्मान किया और उन्हें 'राजा के तीनों लोकोंको पवित्र करती है। पदपर अभिषिक्त कर दिया। जहाँ कुबेरने तपस्या की थी,
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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