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________________ स्वर्गखण्ड] • नर्मदाके तटवर्ती तीर्थोका वर्णन . ३३९ जो मनुष्य प्रतिदिन शुद्धभावसे इस स्तोत्रका पाठ वहाँ सवारी, जूते, छाता, घृतपूर्ण सुवर्णपात्र तथा करता है, वह ब्राह्मण हो तो वेदका विद्वान् होता है, भोजन-सामग्री ब्राह्मणोंको दान करता है, उसका यह क्षत्रिय हो तो युद्धमें विजय प्राप्त करता है, वैश्य हो तो सारा दान कोटिगुना अधिक फल देनेवाला होता है। [व्यापारमें] लाभ उठाता है और शूद्र हो तो उत्तम राजेन्द्र ! अगस्त्येश्वर तीर्थसे चलकर रविस्तव गतिको प्राप्त होता है। साक्षात् भगवान् शङ्कर भी नर्मदा नामक उत्तम तीर्थमें जाना चाहिये। वहाँ सान करनेसे नदीका नित्य सेवन करते हैं; अतः इस नदीको परम मनुष्य राजा होता है। नर्मदाके दक्षिण किनारे एक इन्द्रपावन समझना चाहिये। यह ब्रह्महत्याको भी दूर तीर्थ है, जो सर्वत्र प्रसिद्ध है; वहाँ एक रात उपवास करनेवाली है। करके स्रान करना चाहिये। नानके पश्चात् विधिपूर्वक शूलभद्र नामसे विख्यात एक परम पवित्र तीर्थ है। भगवान् जनार्दनका पूजन करे। ऐसा करनेसे उसे एक वहाँ सान करके भगवान् शिवका पूजन करना चाहिये। हजार गोदानका फल मिलता है तथा अन्तमें वह इससे एक हजार गोदानका फल मिलता है। राजन् ! जो विष्णुलोकको प्राप्त होता है। इसके बाद ऋषितीर्थ में उस तीर्थमें महादेवजीकी पूजा करते हुए तीन राततक जाना चाहिये; वहाँ स्रान करने मात्रसे मनुष्य शिवलोकमें निवास करता है, उसका इस संसारमें फिर जन्म नहीं प्रतिष्ठित होता है। वहीं परम कल्याणमय नारदतीर्थ भी होता। तदनन्तर क्रमशः भीमेश्वर, परम उत्तम नर्मदेश्वर है; वहाँ नहाने मात्रसे एक हजार गोदानका फल मिलता तथा महापुण्यमय आदित्येश्वरकी यात्रा करनी चाहिये। है। तदनन्तर देवतीर्थकी यात्रा करे, जिसे पूर्वकालमें आदित्येश्वर तीर्थ में नानके पश्चात् घी और मधुसे साक्षात् ब्रह्माजीने उत्पन्न किया था; वहाँ स्नान करनेसे शिवजीका पूजन करना उचित है। मल्लिकेश्वर तीर्थमें मनुष्य ब्रह्मलोकमें सम्मानित होता है। जाकर उसकी परिक्रमा करनेसे जन्मका पूर्ण फल प्राप्त हो महाराज ! इसके बाद परम उत्तम वामनेश्वर तीर्थम जाता है। वहाँसे वरुणेश्वरमें तथा वरुणेश्वरसे परम उत्तम जाना चाहिये; वहाँके मन्दिरका दर्शन करनेसे ब्रह्मनौराजेश्वर तीर्थमें जाना चाहिये। नौराजेश्वरके पञ्चायतन हत्याका पाप छूट जाता है। वहाँसे मनुष्यको निश्चय ही (पञ्चदेवमन्दिर) का दर्शन करनेसे सब तीर्थीका फल ईशानेश्वरकी यात्रा करनी चाहिये। तत्पश्चात् वटेश्वरमें प्राप्त हो जाता है। राजेन्द्र ! वहाँसे कोटितीर्थकी यात्रा जाकर भगवान् शिवका दर्शन करनेसे जन्म लेनेका सारा करनी चाहिये; वह तीर्थ सर्वत्र प्रसिद्ध है। वहाँ भगवान् फल मिल जाता है। वहाँसे भीमेश्वर तीर्थ में जाना शिवने करोड़ों दानवोंका वध किया था; इसीलिये उन्हें चाहिये, वह सब प्रकारकी व्याधियोंका नाश करनेवाला कोटीश्वर कहा गया है। उस तीर्थका दर्शन करनेसे मनुष्य है। उस तीर्थमें स्नान मात्र करके मनुष्य सब दुःखोसे सशरीर स्वर्गको चला जाता है। वहाँ त्रयोदशीको छुटकारा पा जाता है। तत्पश्चात् वारणेश्वर नामक उत्तम महादेवजीकी उपासना करके स्रान करने मात्रसे तीर्थकी यात्रा करे, वहाँ स्नान करनेसे भी सब दुःख छूट मनुष्यको सम्पूर्ण यज्ञोंका फल प्राप्त हो जाता है। जाते है। उसके बाद सोमतीर्थमें जाकर चन्द्रमाका दर्शन तत्पश्चात् परम शोभायमान और उत्तम तीर्थ करना चाहिये; वहाँ परम भक्तिपूर्वक नान करनेसे मनुष्य अगस्त्येश्वरकी यात्रा करे, वह पापोंका नाश करनेवाला तत्काल दिव्य देह धारण करके शिवलोकको चला जाता है। वहाँ स्नान करके मनुष्यको ब्रह्महत्यासे छुटकारा मिल है और वहाँ भगवान् शिवकी ही भाँति चिरकालतक जाता है। जो कार्तिक मासके कृष्णपक्षकी चतुर्दशी आनन्दका अनुभव करता है। शिवलोकमें वह साठ तिथिको उस तीर्थमें इन्द्रियसंयमपूर्वक एकाग्रचित्त हो हजार वर्षातक सम्मानपूर्वक निवास करता है। वहाँसे घृतसे भगवान् शिवको स्नान कराता है, वह इक्कीस परम उत्तम पिङ्गलेश्वर तीर्थको जाय। वहाँ एक पीढ़ियोंतक शिव-धामकी प्राप्तिसे वञ्चित नहीं होता। जो दिन-रातके उपवाससे त्रिरात्र-व्रतका फल मिलता है। संपापु० १२
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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