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________________ भूमिखण्ड ] *******s · सोमशर्मा के द्वारा भगवान् श्रीविष्णुकी आराधना • आयुध उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। उनका श्रीविग्रह दिव्य लक्षणोंसे सम्पन्न है। नेत्र खिले हुए कमलके समान हैं। पीतवस्त्र श्री अङ्गोंकी शोभा बढ़ा रहा है। देवेश्वर भगवान् श्रीविष्णु शङ्ख, चक्र और गदा धारण किये गरुड़पर विराजमान हैं। वे इस जगत् तथा ब्रह्मा आदिके भी भलीभाँति भरण-पोषण करनेवाले हैं। यह विश्व उन्हींका स्वरूप है। वे सनातन रूप धारण करनेवाले हैं। वे विश्वसे अतीत, निराकार परमात्मा हैं। भगवान् श्रीजनार्दनको इस रूपमें उपस्थित देख विप्रवर सोमशर्मा महान् हर्षमें भर गये और करोड़ों सूर्योकि समान तेजस्वी एवं लक्ष्मीसहित शोभा पानेवाले श्रीभगवान्‌को साष्टाङ्ग प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़े अपनी स्त्री सुमनाके साथ उनकी स्तुति करने लगे'देव ! जगन्नाथ! आपकी जय हो, सबको सम्मान देनेवाले लक्ष्मीपते ! आपकी जय हो। योगियोंके स्वामिन्! योगीन्द्र ! आपकी जय हो यज्ञके स्वामी हरे ! आपकी जय हो। विष्णुरूपसे यज्ञेश्वर ! और शिवरूपसे यज्ञविध्वंसक ! सनातन और सर्वव्यापक परमेश्वर ! आपकी जय हो, जय हो। सर्वेश्वर ! अनन्त ! आपकी जय हो। जयस्वरूप प्रभो! आपको मेरा प्रणाम है। ज्ञानवानों में श्रेष्ठ! आपकी जय हो। ज्ञाननायक! आपकी जय हो सब कुछ देनेवाले सर्वज्ञ परमेश्वर ! आपकी जय हो । सत्त्वगुणको उत्पन्न करनेवाले प्रभो ! आपकी जय हो । 'यज्ञव्यापी परमेश्वर ! आप प्रज्ञास्वरूप हैं, आपकी जय हो । प्राण प्रदान करनेवाले प्रभो! आपकी जय हो। पापनाशक ! पुण्येश्वर ! आपकी जय हो। पुण्यपालक हरे ! आपकी जय हो। ज्ञानस्वरूप ईश्वर ! आपकी जय हो आप ज्ञानगम्य हैं, आपको नमस्कार है कमललोचन ! आपकी जय हो। आपकी नाभिसे कमलका प्रादुर्भाव हुआ था अतः पद्मनाभ नामसे प्रसिद्ध ! आपको प्रणाम है। गोविन्द! आपकी जय हो। गोपाल ! आपकी जय हो। शङ्ख धारण करनेवाले निर्मलस्वरूप परमात्मन्! आपकी जय हो चक्र धारण करनेवाले अव्यक्तरूप परमेश्वर ! व्यक्तरूपधारी आपको २३५ नमस्कार है। प्रभो ! आपके अङ्ग पराक्रमसे शोभा पा रहे हैं, आपकी जय हो। विक्रम नायक ! आपकी जय हो । विद्यासे विलसित रूपवाले देवेश्वर! आपकी जय हो । वेदमय परमेश्वर ! आपको नमस्कार है। पराक्रमसे सुशोभित अङ्गवाले प्रभो! आपकी जय हो। उद्यम प्रदान करनेवाले देव! आपकी जय हो। आप ही उद्यमके योग्य समय और उद्यमरूप हैं; आपको बारंबार नमस्कार है। भगवन् ! आप उद्यममें समर्थ है, आपकी जय हो। उद्यम करानेवाले भी आप ही है, आपकी जय हो। युद्धोद्योगमें प्रवृत्त होनेवाले आप सर्वात्माको नमस्कार है। 'सुवर्ण आपका तेज है, आपको नमस्कार है। आप विजयी वीर हैं, आपको नमस्कार है। आप अत्यन्त तेजःस्वरूप और सर्वतेजोमय हैं, आपको प्रणाम है। आप दैत्य तेजके विनाशक और पापमय तेजका अपहरण करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। गौओं और ब्राह्मणोंका हित साधन करनेवाले आप परमात्माको प्रणाम है। आप हविष्य भोजी तथा हव्य और कव्यका वहन करनेवाले अग्रि हैं, आप ही स्वधारूप हैं; आपको नमस्कार है। आप स्वाहारूप, यज्ञस्वरूप और योगके बीज हैं; आपको नमस्कार है। हाथमें शार्ङ्ग नामक धनुष धारण करनेवाले, आप पापहारी हरिको प्रणाम है। 'कार्य-कारण-रूप जगत्‌को प्रेरित करनेवाले विज्ञानशाली परमेश्वरको नमस्कार है। वेदस्वरूप भगवान्‌को प्रणाम है। सबको पवित्र करनेवाले प्रभुको नमस्कार है। सबके क्लेशोंका अपहरण करनेवाले, हरित केशोंसे युक्त श्रीभगवान्‌को प्रणाम है। विश्वके आधारभूत परमात्मा केशवको नमस्कार है। कृपामय और आनन्दमय ईश्वरको नमस्कार है। फ्रेशोंका नाश करनेवाले नित्यशुद्ध भगवान् श्री अनन्तको नमस्कार है। जिनका स्वरूप नित्य आनन्दमय है, जो दिव्य होनेके साथ ही दिव्यरूप धारण करते हैं, ग्यारह रुद्र जिनके चरणोंकी वन्दना करते हैं तथा ब्रह्माजी भी जिनके सामने मस्तक झुकाते हैं, उन भगवान्‌को प्रणाम है। प्रभो ! देवता और असुरोंके स्वामी भी आपके चरणकमलों में
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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