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________________ २३४ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पापुराण हुए हैं। मोतियोंका विशाल हार चन्द्रमाकी भाँति चमक थे, उन शरणागतवत्सल प्रभुकी मैं शरणमें आया हूँ। रहा है। उसके साथ ही कौस्तुभमणि भी भगवान्के हिरण्याक्षका वध करनेवाले भगवान् श्रीवराहकी मैं श्रीविग्रहको उद्भासित कर रही है। श्रीवत्सका चिह्न शरणमें हूँ। ये सब जीव मृत्युका रूप धारण करके मुझे वक्षःस्थलकी शोभा बढ़ा रहा है। श्रीभगवान् सब भय दिखा रहे हैं, किन्तु मैं अमृतकी शरणमें पड़ा हूँ। प्रकारके आभूषणोंकी शोभासे सम्पन्न हैं। कमलके श्रीहरि वेदोंका ज्ञान प्रदान करनेवाले, ब्राह्मण-भक्त, ब्रह्मा समान खिले हुए नेत्र, मुखपर मुसकानकी मनोहर छटा, तथा ब्रह्मज्ञानस्वरूप हैं; मैं उनकी शरणमें पड़ा हूँ। जो स्वाभाविक प्रसन्नता और रत्नमय हार उनकी शोभाको निर्भय, संसारका भय दूर करनेवाले और भयदाता हैं, दुगुनी कर रहे हैं। इस प्रकार परम शोभायमान भगवान् उन भयरूप भगवान्की मैं शरणमें हूँ, भय मेरा क्या श्रीविष्णुकी मनोहर झाँकीका सोमशर्माने ध्यान किया। करेगा। जो समस्त पुण्यात्माओंका उद्धार और सम्पूर्ण __ तत्पश्चात् वे उनकी स्तुति करने लगे-'शरणागत- पापियोंका विनाश करनेवाले हैं, उन धर्मरूप भगवान् वत्सल श्रीकृष्ण ! आप ही मुझे शरण देनेवाले हैं। श्रीविष्णुकी मैं शरणमें पड़ा हूँ। देवदेवेश्वर ! आपको नमस्कार है। जिन परमात्माके 'यह परम प्रचण्ड आँधी मेरे शरीरको अत्यन्त पीड़ा उदरमें तीनों लोक और सात भुवन स्थित हैं, उन्हींकी दे रही है, मैं इसे भी भगवान्का ही स्वरूप मानकर शरणमें मैं आ पड़ा हूँ, भय मेरा क्या करेगा। कृत्या इसकी शरणमें हूँ, अतः ये भगवान् वायु मुझे सदा ही आदि प्रबल विघ्न भी जिनसे भय मानते हैं तथा जो आश्रय प्रदान करें। अत्यन्त शीत, अधिक वर्षा और सबको दण्ड देनेमें समर्थ हैं, उन भगवान्के मैं शरणागत दुःसह ताप देनेवाली धूप-इन सबके रूपमें जिन हूँ। जो समस्त देवताओं, महाकाय दानवों तथा क्लेश भगवान्का साक्षात्कार हो रहा है, मैं उन्हींकी शरणमें उठानेवाले भक्तोंके भी आश्रय है, उन भगवान्की मैं आया हूँ। ये जो कालरूपधारी जीव यहाँ आकर मुझे शरणमें आया हूँ। जो भयका नाश करनेके लिये भय देते हुए विचलित कर रहे है, सब-के-सब भगवान् अभयरूप बने हुए हैं और पापोंके नाशके लिये ज्ञानवान् श्रीविष्णुके स्वरूप है; मैं सर्वदा इनकी शरणमें हूँ। जिन्हें हैं तथा जो ब्रह्मरूपसे एक-अद्वितीय हैं, उन सर्वदेवस्वरूप, परमेश्वर, केवल, ज्ञानमय और प्रधानरूप भगवान्की मैं शरणमें हूँ। जो रोगोंका नाश करनेके लिये बतलाते हैं, उन सिद्धोंके स्वामी आदिसिद्ध भगवान् औषधरूप हैं, जिनमें रोग-शोकका नाम भी नहीं है, जो श्रीनारायणकी मैं शरणमें हूँ।' लौकिक आनन्दसे भी शून्य हैं, उन भगवान्की मैं इस प्रकार प्रतिदिन भगवान् श्रीकेशवका ध्यान शरणमें हूँ। जो अविचल लोकोको भी विचलित कर और स्तवन करते हुए सोमशर्माने अपनी भक्तिके बलसे सकते हैं, उन भगवान्की मैं शरणमें आया हूँ भय मेरा भगवान्को हदयमें बिठा लिया। उनका उद्यम और क्या करेगा। जो समस्त साधुओंका पालन करनेवाले हैं, पुरुषार्थ देखकर भगवान् श्रीहषीकेश प्रकट हो गये और जिनकी नाभिसे कमलकी उत्पत्ति हुई है तथा जो उन्हें हर्ष प्रदान करते हुए बोले-'महाप्राज्ञ सोमशर्मन् ! विश्वात्मा इस विश्वकी सदा ही रक्षा करते हैं, उन अपनी पत्नीके साथ मेरी बात सुनो; विप्रवर ! मैं वासुदेव भगवान्की मैं शरणमें आया हूँ। हूँ, सुव्रत ! तुम मुझसे कोई उत्तम वर मांगो।' 'जो सिंहके रूपमें मेरे सामने उपस्थित होकर भय श्रीभगवान्का यह कथन सुनकर द्विजश्रेष्ठ सोमशर्माने दिखा रहे हैं, उन भक्तभयहारी भगवान् श्रीनरसिंहजीकी अपने नेत्र खोले; देखा तो विश्वके स्वामी श्रीभगवान् मैं शरणमें आया हूँ। ग्राहसे युद्ध करते समय आपत्तिमें दिव्यरूप धारण किये सामने खड़े हैं। उनके शरीरकी पड़ा हुआ विशालकाय गजराज जिनकी शरणमें आया कान्ति मेषके समान श्याम है, वे महान् अभ्युदयशाली था और जो गजेन्द्रमोक्षकी लीलामें स्वयं उपस्थित हुए और सब प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित हैं। सम्पूर्ण
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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