SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६ + अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण माथा टेकते हैं। आप देवेश, अमृत और अमृतात्मा है; भगवानको प्रणाम है।' आपको बारंबार नमस्कार है। आप क्षीरसागरमें निवास इस प्रकार इन्द्रियोंके स्वामी भगवान् श्रीजनार्दनका करनेवाले और लक्ष्मीके प्रियतम हैं, आपको नमस्कार स्तवन करके सोमशर्माने फिर कहा-'प्रभो ! ब्रह्माजी है। आप ओंकार, विशुद्ध तथा अविचलरूप हैं; आपको भी आपके पावन गुणोंकी सीमाको नहीं जानते तथा बारंबार प्रणाम है। आप व्यापी, व्यापक और सब सर्वेश्वर ! रुद्र और इन्द्र भी आपकी स्तुति करने में प्रकारके दुःखोंको दूर करनेवाले हैं। आपको नमस्कार है। असमर्थ हैं; फिर दूसरा कौन आपके गुणोंका वर्णन कर 'वराहरूपधारी आपको प्रणाम है। महाकच्छपके सकता है। मुझमें बुद्धि ही कौन-सी है, जो मैं आपकी रूपमें आपको नमस्कार है। वामन और नृसिंहका रूप स्तुति कर सकूँ। केशव ! मैंने अपनी छोटी बुद्धिके धारण करनेवाले आप परमात्माको प्रणाम है। सर्वज्ञ अनुसार आपके निर्गुण और सगुण रूपोंका स्तवन किया मत्स्यभगवान्को प्रणाम है। श्रीराम, कृष्ण, ब्राह्मणश्रेष्ठ है। सर्वेश ! मैं जन्म-जन्मसे आपका ही दास हूँ। कपिल और हयग्रीवके रूपमें अवतीर्ण हुए आप लोकेश ! मुझपर दया कीजिये।' श्रीभगवानके वरदानसे सोमशर्माको सुव्रत नामक पुत्रकी प्राप्ति तथा सुव्रतका तपस्यासे माता-पितासहित वैकुण्ठलोकमें जाना श्रीहरि बोले-ब्रह्मन् ! मैं तुम्हारी इस तपस्या, मनुष्योचित भोगोंका उपभोग करोगे। तदनन्तर तुम पुण्य, सत्य तथा पावन स्तोत्रसे बहुत सन्तुष्ट हूँ। परमगतिको प्राप्त होगे। मुझसे कोई वर माँगो। इस प्रकार भगवान् श्रीहरि स्त्रीसहित ब्राह्मणको सोमशर्माने कहा-प्रभो! पहले तो आप वरदान देकर अन्तर्धान हो गये। तदनन्तर द्विजश्रेष्ठ मुझे भलीभाँति निश्चित किया हुआ एक वर यह सोमशर्मा अपनी पत्नी सुमनाके साथ नर्मदाके दीजिये कि मैं प्रत्येक जन्ममें आपकी भक्ति करता रहूँ। पुण्यदायक तटपर उस परमपावन उत्तम तीर्थ दूसरा यह कि मुझे मोक्ष प्रदान करनेवाले अपने अमरकण्टकमें रहकर दान-पुण्य करने लगे। इस अविचल परमधामका दर्शन कराइये। तीसरे वरके प्रकार बहुत समय व्यतीत हो जानेपर एक दिन रूपमें मुझे एक ऐसा पुत्र दीजिये, जो अपने वंशका सोमशर्मा कपिला और नर्मदाके सङ्गममें स्नान करके उद्धारक, दिव्य लक्षणोंसे सम्पन्न, विष्णुभक्तिपरायण, निकले और घर आकर ब्राह्मणोचित कर्ममें लग गये। मेरे कुलको धारण करनेवाला, सर्वज्ञ, सर्वस्व-दान उस दिन व्रतसे शोभा पानेवाली परम सौभाग्यवती करनेवाला, जितेन्द्रिय, तप और तेजसे युक्त, देवता, सुमनाने पतिके सहवाससे गर्भ धारण किया। समय ब्राह्मण तथा इस जगत्का पालन करनेवाला, आनेपर उस बड़भागिनीने देवताओंके समान श्रीभगवान् (आप)का पुजारी और शुभ सङ्कल्पवाला कान्तिमान् उत्तम पुत्रको जन्म दिया, जिसके शरीरसे हो। इसके सिवा, श्रीकेशव ! आप मेरी दरिद्रता तेजोमयी किरणे छिटक रही थीं। उसके जन्मके समय हर लीजिये। आकाशमें बारंबार देवताओंके नगारे बजने लगे। ___ श्रीहरि बोले-द्विजश्रेष्ठ ! ऐसा ही होगा, इसमें तत्पश्चात् ब्रह्माजी देवताओंको साथ लेकर वहाँ तनिक भी सन्देह नहीं है। मेरे प्रसादसे तुमको सुयोग्य आये और स्वस्थ चित्तसे उस बालकका नाम उन्होंने पुत्रकी प्राप्ति होगी, जो तुम्हारे वंशका उद्धार करनेवाला 'सुव्रत' रखा। नामकरण करके महाबली देवता होगा। तुम इस मनुष्यलोकमें भी परम उत्तम दिव्य एवं स्वर्गको चले गये।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy