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________________ २०४ · अर्थयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . .............................................*** गङ्गाजीके जलमें पितरोंके उद्देश्यसे पिण्डदान करता है, उसे प्रतिदिन सौ यज्ञोंका फल होता है। जो लोग गङ्गाजीके जलमें अथवा तटपर आवश्यक सामग्रियोंसे तर्पण और पिण्डदान करते हैं, उन्हें अक्षय स्वर्गकी प्राप्ति होती है। जो अकेला भी गङ्गाजीकी यात्रा करता है, उसके पितरोंकी कई पीढ़ियाँ पवित्र हो जाती हैं। एकमात्र इसी महापुण्यके बलपर वह स्वयं भी तरता है और पितरोंको भी तार देता है। ब्राह्मणो! गङ्गाजीके सम्पूर्ण गुणों का वर्णन करनेमें चतुर्मुख ब्रह्माजी भी समर्थ नहीं हैं। इसलिये मैं भागीरथीके कुछ ही गुणोंका दिग्दर्शन कराता हूँ। मुनि, सिद्ध, गन्धर्व तथा अन्यान्य श्रेष्ठ देवता गङ्गाजीके तीरपर तपस्या करके स्वर्गलोकमें स्थिर भावसे विराजमान हुए हैं। आजतक वे वहाँसे इस संसारमें नहीं लौटे। तपस्या, बहुत-से यज्ञ, नाना प्रकारके व्रत तथा पुष्कल दान करनेसे जो गति प्राप्त होती है, गङ्गाजीका सेवन करके मनुष्य उसी गतिको पा लेता है। * पिता पुत्रको, पत्नी प्रियतमको सम्बन्धी अपने सम्बन्धीको तथा अन्य सब भाई-बन्धु भी अपने प्रिय बन्धुको छोड़ देते हैं, किन्तु गङ्गाजी उनका परित्याग नहीं करतीं। जिन श्रेष्ठ मनुष्योंने एक बार भी भक्तिपूर्वक गङ्गामें स्नान किया है, कल्याणमयी गङ्गा उनकी लाख पीढ़ियोंका भवसागरसे उद्धार कर देती हैं। संक्रान्ति, व्यतीपात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण और पुष्य नक्षत्रमें गङ्गाजीमें स्नान करके मनुष्य अपने कुलकी करोड़ पीढ़ियोंका उद्धार कर सकता है। जो मनुष्य [ अन्तकालमें] अपने हृदयमें भगवान् श्रीविष्णुका चिन्तन करते हुए उत्तरायणके शुक्लपक्षमें दिनको गङ्गाजीके जलमें देह त्याग करते हैं, वे धन्य हैं। जो इस प्रकार भागीरथीके शुभ जलमें प्राण त्याग करते हैं, उन्हें पुनरावृत्ति रहित स्वर्गकी प्राप्ति होती है। गङ्गाजीमें पितरोंको पिण्डदान तथा तिलमिश्रित जलसे तर्पण [ संक्षिप्त पद्मपुराण ******** करनेपर वे यदि नरकमें हों तो स्वर्गमें जाते हैं और स्वर्गमें हों तो मोक्षको प्राप्त होते हैं। पर - स्त्री और पर धनका हरण करने तथा सबसे द्रोह करनेवाले पापी मनुष्योंको उत्तम गति प्रदान करनेका साधन एकमात्र गङ्गाजी ही हैं। वेद-शास्त्रके ज्ञानसे रहित, गुरु-निन्दापरायण और सदाचार शून्य मनुष्यके लिये गङ्गाके समान दूसरी कोई गति नहीं है। गङ्गाजीमें स्नान करनेमात्रसे मनुष्योंके अनेक जन्मोंकी पापराशि नष्ट हो जाती है तथा वे तत्काल पुण्यभागी होते हैं। प्रभासक्षेत्र में सूर्यग्रहणके समय एक सहस्र गोदान करनेपर जो फल मिलता है, वह गङ्गाजीमें स्नान करनेसे प्रतिदिन प्राप्त होता है। गङ्गाजीका दर्शन करके मनुष्य पापोंसे छूट जाता है और उसके जलका स्पर्श करके स्वर्ग पाता है। अन्य कार्यके प्रसङ्गसे भी गङ्गाजीमें गोता लगानेपर वे मोक्ष प्रदान करती हैं। गङ्गाजीके दर्शनमात्रसे पर धन और परस्त्रीकी अभिलाषा तथा पर-धर्मविषयक रुचि नष्ट हो जाती है। अपने आप जो कुछ मिल जाय, उसीमें सन्तोष करना, अपने धर्ममें प्रवृत्त रहना तथा सम्पूर्ण प्राणियोंके प्रति समान भाव रखना—ये सद्गुण गङ्गाजीमें स्नान करनेवाले मनुष्यके हृदयमें स्वभावतः उत्पन्न होते हैं। जो मनुष्य गङ्गाजीका आश्रय लेकर सुखपूर्वक निवास करता है, वही इस लोकमें जीवन्मुक्त और सर्वश्रेष्ठ है। उसके लिये कोई कर्तव्य शेष नहीं रह जाता। गङ्गाजीमें या उनके तटपर किया हुआ यज्ञ, दान, तप, जप, श्राद्ध और देवपूजन प्रतिदिन कोटि-कोटिगुना अधिक फल देनेवाला होता है। अपने जन्म नक्षत्रके दिन गङ्गाजीके सङ्गममें स्नान करके मनुष्य अपने कुलका उद्धार कर देता है। जो बिना श्रद्धाके भी पुण्यसलिला गङ्गाजीके नामका कीर्तन करता है, वह निश्चय ही स्वर्गका अधिकारी है। वे पृथ्वीपर मनुष्योंको, पातालमें नागोंको और स्वर्गमें देवताओंको तारती है। जानकर या अनजानमें, इच्छासे या * तपोभिर्बहुभिर्यज्ञैर्वतैर्नानाविधैस्तथा । पुरुदानैर्गतिर्या च गङ्गो संसेव्यतां लभेत् ॥ (६० २४) + व्यजन्ति पितरं पुत्राः प्रियं पल्यः सुहद्रणाः । अन्ये च बान्धवाः सर्वे गङ्गा तान्न परित्यजेत् ॥ (६० | २६)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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