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________________ सृष्टिखण्ड ] • दण्डकारण्यकी उत्पत्तिका वर्णन . १२१ भी चलकर सन्ध्यावन्दन करें। है, वे समस्त प्राणियोंमें पवित्र हैं और देवता कहलाते ___ऋषिकी आज्ञा मानकर श्रीरघुनाथजी सन्ध्योपासन हैं।* रघुश्रेष्ठ ! आप समस्त देहधारियोंके लिये परम करनेके लिये उस पवित्र सरोवरके तटपर गये। तदनन्तर पावन हैं। आपका प्रभाव ऐसा ही है। जो लोग आपकी आचमन एवं सायं-सन्ध्या करके श्रीरघुनाथजी महात्मा चर्चा करेंगे, उन्हें भी सिद्धि प्राप्त होगी। आप इस मार्गसे कुम्भजके आश्रममें गये। वहाँ उन्होंने बड़े आदरके साथ शान्त एवं निर्भय होकर जाइये और धर्मपूर्वक राज्यका अधिक गुणकारी फल-मूल तथा रसीले साग भोजनके पालन कीजिये; क्योंकि आप ही इस जगत्के एकमात्र लिये अर्पण किये। नरश्रेष्ठ श्रीरामने बड़ी प्रसन्नताके साथ सहारे हैं।' उस अमृतके समान मधुर भोजनका भोग लगाया और महर्षिके ऐसा कहनेपर महाराज श्रीरामचन्द्रजीने पूर्ण तृप्त होकर रात्रिमें वहीं शयन किया। सबेरे उठकर हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया तथा अन्यान्य मुनिवरोंको भी, जो सब-के-सब तपस्याके धनी थे, सादर अभिवादन करके वे शान्तभावसे सुवर्णभूषित पुष्पक विमानपर चढ़ गये। यात्राके समय मुनिगणोंने सब ओरसे उनपर आशीर्वादोंकी वर्षा की। समस्त पुरुषार्थोंके ज्ञाता श्रीरघुनाथजी दोपहर होते-होते अयोध्यामें पहुँचकर सातवीं ड्योढ़ीमें उतरे। तत्पश्चात् उन्होंने इच्छानुसार चलनेवाले उस परम सुन्दर पुष्पक विमानको विदा कर दिया। फिर महाराजने द्वारपालोंसे कहा-'तुमलोग फुतींसे जाकर भरत और लक्ष्मणको मेरे आगमनकी सूचना दो और उन्हें अपने साथ ही लिवा लाओ; विलम्ब उन्होंने अपना नित्यकर्म किया और वहाँसे विदा होनेके लिये महर्षिके पास गये। वहाँ जाकर उन्होंने मुनिको प्रणाम किया और कहा- 'ब्रह्मन् ! अब मैं आपसे विदा होना चाहता हूँ, आप आज्ञा देनेकी कृपा करें । महामुने ! आज मैं आपके दर्शनसे कृतार्थ और अनुगृहीत हुआ।' श्रीरामचन्द्रजीके ऐसे अद्भुत वचन कहनेपर तपस्वी अगस्त्यजीने अत्यन्त प्रसन्न होकर कहा-'श्रीराम ! कल्याणमय अक्षरोंसे युक्त आपका यह वचन बड़ा ही अद्भुत है। रघुनन्दन ! यह सम्पूर्ण प्राणियोंको पवित्र करनेवाला है। जो मनुष्य आपको दो घड़ी भी देख लेते * मुहूर्तमपि राम त्वां नेत्रेणेक्षन्ति ये नराः। पाविताः सर्वभूतेषु कथ्यन्ते त्रिदिवौकसः ॥(३४।३८)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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