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________________ उत्तरखण्ड ] - त्रिदेवोंमें श्रीविष्णुकी श्रेष्ठता तथा प्रन्थका उपसंहार . 1001 ..... लिये ही मैंने आपकी छातीपर पैर रखा है। गोविन्द ! वसिष्ठजी कहते है-भगुजीके ऐसा कहनेपर कृपानिधे! मेरे इस अपराधको क्षमा करें।' समस्त निष्पाप महर्षियोंने उन्हें नमस्कार किया और उन्हींसे ऐसा कहकर महर्षि भृगुने बारम्बार भगवान्के मन्त्रकी दीक्षा ले भगवान् विष्णुका पूजन किया / राजन् / चरणोंमें प्रणाम किया। भगवान्के धाममें रहनेवाले दिव्य ये सब बातें मैंने प्रसङ्गवश तुम्हें बतलायी हैं। भगवान् महर्षियोंने भृगुजीका भलीभाँति स्वागत-सत्कार किया। श्रीरामचन्द्रजी सब देवताओंमें पावन एवं पुरुषोत्तम हैं। वहाँसे प्रसन्नचित्त होकर वे यज्ञमें महर्षियोंके पास लौट अतः यदि तुम परम पदको प्राप्त करना चाहते हो तो उन आये। उन्हें आया देख महर्षियोंने उठकर नमस्कार किया श्रीरघुनाथजीकी ही शरणमें जाओ। राजन् ! यह समस्त और विधिपूर्वक उनकी पूजा की। तत्पश्चात् मुनिश्रेष्ठ पुराण वेदके तुल्य है। स्वायम्भुव मन्वन्तरमें साक्षात् भृगुने उन महर्षियोंसे सब बाते बतायौं / उन्होंने कहा- ब्रह्माजीने इसका उपदेश किया था। जो प्रतिदिन 'ब्रह्माजीमें रजोगुणका आधिक्य है और रुद्रमें एकाग्रचित्त हो इसका श्रवण अथवा पाठ करता है, उसकी तमोगुणका। केवल भगवान् विष्णु शुद्ध सत्त्वमय हैं। वे भगवान् लक्ष्मीपतिमें अनन्य भक्ति होती है। वह विद्याथीं कल्याणमय गुणोंके सागर, नारायण, परब्रह्म तथा हो तो विद्या, धर्मार्थी हो तो धर्म, मोक्षार्थी हो तो मोक्ष और सम्पूर्ण ब्राह्मणोंके देवता हैं। वे ही विप्रोंके लिये पूजनीय कामार्थी हो तो सुख पाता है। द्वादशी तिथिको, श्रवण हैं। उनके स्मरणमात्रसे पापियोंकी भी मुक्ति हो जाती है। नक्षत्रमें, सूर्य और चन्द्रमाके ग्रहणके अवसरपर, उनका चरणोदक तथा भोग लगाया हुआ प्रसाद समस्त अमावास्या तथा पूर्णिमाको इसका भक्तिपूर्वक पाठ करना मनुष्यों और विशेषतः ब्राह्मणोंके सेवन करनेयोग्य, चाहिये। जो एकाग्रचित्त हो प्रतिदिन इसके आधे या परमपावन तथा स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाला है। चौथाई श्लोकका भी पाठ करता है वह निश्चय ही एक भगवान् विष्णुको निवेदन किये हुए हविष्यका ही हजार अश्वमेध यज्ञका फल पाता है। इस प्रकार यह परम देवताओंके लिये हवन करे और वही पितरोंको भी दे। गुह्म पद्मपुराण कहा गया / यदि परम पदकी प्राप्ति चाहते वह सब अक्षय होता है। अतः द्विजवरो ! तुम आलस्य हो तो सदा भगवान् हषीकेशकी आराधना करो। छोड़कर जीवनभर भगवान् विष्णुका पूजन करो। वे ही सूतजी कहते हैं-अपने गुरु वसिष्ठजीके ऐसा परम धाम हैं और वे ही सत्य ज्योति / अष्टाक्षरमन्त्रके कहनेपर नृपश्रेष्ठ राजा दिलीपने उनको प्रणाम किया और द्वारा विधिपूर्वक पुरुषोत्तमका पूजन और उनके प्रसादका यथायोग्य पूजा करके उनसे विधिपूर्वक विष्णुमन्त्रकी सेवन करना चाहिये। श्रीविष्णु ही सब यज्ञोंके भोक्ता दीक्षा ली। फिर आलस्यरहित हो उन्होंने जीवनभर परमेश्वर हैं—ऐसा जानकर उन्हींके उद्देश्यसे सदा हवन, श्रीहषीकेशकी आराधना करके समयानुसार योगियोंको दान और जप करे। प्राप्त होनेयोग्य सनातन विष्णुधामको प्राप्त कर लिया। उत्तरखण्ड सम्पूर्ण श्रीपद्मपुराण समाप्त प्रद्युमायाविरुद्धाय तथा संकर्षणाय च नमो ___ ब्रह्मण्यदेवाय सर्वदेवस्वरूपिणे॥ वाराहवपुषे नित्यं त्रयीनाथाय ते नमः / नमो ब्रह्मण्यदेवाय नागपर्यशायिने / राजीवदलनेत्राय राघवाय नमो नमः | मायया मोहिताः सर्वे देवाच इचयस्तव / / न जानन्ति महात्मानं सर्वलोकेश्वर प्रभो / त्वां न जानन्ति भगवन्सर्ववेदविदोऽपि हि / / (28270-82)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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