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________________ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण श्रीहरिका कितना मनोहर रूप है, कैसी शान्ति है, कैसा वासुदेव एवं अपनी महिमासे कभी च्युत न होनेवाले ज्ञान है, कितनी दया है, कैसी निर्मल क्षमा और कितना श्रीहरि ब्राह्मणोंके हितकारक है। भगवान् नृसिंह तथा पावन सत्त्वगुण है। भगवन् ! आप गुणोंके समुद्र हैं। अविनाशी नारायण भी ब्राह्मणोपर कृपा करनेवाले हैं। आपमें ही स्वाभाविक रूपसे कल्याणमय सत्त्वगुणका श्रीधर, श्रीश, गोविन्द एवं वामन आदि नामोंसे प्रसिद्ध निवास है। आप ही ब्राह्मणोंके हितैषी, शरणागतोंके भगवान् श्रीहरि ब्राह्मणोंपर नेह रखते हैं। यज्ञवाराहरक्षक और पुरुषोत्तम है। आपका चरणोदक पितरों, रूपधारी पुरुषोत्तम भगवान् केशव ब्राह्मणोका कल्याण देवताओं तथा सम्पूर्ण ब्राह्मणोंके लिये सेव्य है। यह करनेवाले है। रघुकुलभूषण राजीवलोचन श्रीरामचन्द्रजी पापोंका नाशक और मुक्तिका दाता है। भगवन् ! भी ब्राह्मणोंके सुहद् हैं। भगवान् पद्मनाभ तथा दामोदर आपहीका भोग लगा हुआ प्रसाद देवता, पितर और (श्रीकृष्ण) भी ब्राह्मणोंका हित चाहनेवाले हैं। माधव, ब्राह्मण-सबके सेवन करनेयोग्य है। इसलिये यज्ञपुरुष एवं भगवान् त्रिविक्रम भी ब्राह्मणहितैषी है। ब्राह्मणको उचित है कि वह प्रतिदिन आप सनातन पीताम्बरधारी हृषीकेश श्रीजनार्दन ब्राह्मणोंके हितकारी पुरुषका पूजन करके आपका चरणोदक ले और आपके हैं। शार्ङ्ग धनुष धारण करनेवाले ब्राह्मणहितैषी देवता भोग लगाये हुए प्रसादस्वरूप अन्नका भोजन करे। श्रीवासुदेवको नमस्कार है। कमलके समान नेत्रोंवाले प्रभो ! जो आपको निवेदित किये हुए अन्नका हवन या लक्ष्मीपति श्रीनारायणको नमस्कार है। ब्राह्मणहितैषी दान करता है, वह देवताओ और पितरोको तृप्त करता देवता सर्वव्यापी वासुदेवको नमस्कार है। कल्याणमय तथा अक्षय फलका भागी होता है। अतः आप ही गुणोंसे परिपूर्ण, सृष्टि, पालन और संहारके कारणरूप ब्राह्मणोंके पूजनीय हैं। आप परमात्माको नमस्कार है। ब्राह्मणोंके हितैषी देवता आप सम्पूर्ण देवताओंमें ब्राह्मणत्वको प्राप्त हों; प्रधुम्न, अनिरुद्ध तथा सङ्कर्षणको नमस्कार है। क्योंकि आप ब्राह्मणोंके पूज्य और शुद्ध सत्त्वगुणसे शेषनागकी शय्यापर शयन करनेवाले ब्रह्मण्यदेव सम्पन्न हैं। ब्राह्मणलोग सदा आप पुरुषोत्तमका ही भजन भगवान् विष्णुको नमस्कार है । कमलके समान नेत्रोवाले करते हैं। जो आपका पूजन करते हैं, वे ही विप्र श्रीरघुनाथजीको बारम्बार नमस्कार है। प्रभो ! सम्पूर्ण वास्तवमें ब्राह्मण हैं, दूसरे नहीं। इस विषयमें सन्देहके देवता और ऋषि आपको मायासे मोहित होनेके कारण लिये स्थान नहीं है। देवकीनन्दन श्रीकृष्ण ब्राह्मणोंके सम्पूर्ण लोकोंके स्वामी आप परमात्माको नहीं जानते। हितैषी हैं। श्रीमधुसूदन ब्राह्मणोंके हितचिन्तक हैं। भगवन् ! सम्पूर्ण वेदोंके विद्वान् भी आपके तत्त्वको नहीं श्रीपुण्डरीकाक्ष ब्राह्मणोंके प्रेमी हैं। अविनाशी भगवान् जानते।* भगवन् ! मैं महर्षियोंके भेजनेपर आपके पास विष्णु ब्राह्मणहितैषी है। सचिदानन्दस्वरूप भगवान् आया हूँ। आपके शील और गुणोंका ज्ञान प्राप्त करनेके * सर्वेषामेव देवानां ब्राह्मणत्वमवामुहि । त्वामेव हि सदा विप्रा भजन्ति पुरुषोत्तमम् ॥ ब्राह्मणास्ते बभूवुस्तु नान्यास्तत्र न संशयः । ब्रह्मण्यो देवकीपुत्रो ब्रह्मण्यो मधुसूदनः ।। - ब्रह्मण्यः पुण्डरीकाक्षो ब्रह्मण्यो विष्णुरव्ययः । ब्रह्मण्यो भगवान्कृष्णो वासुदेवोऽच्युतो हरिः ।। ---ब्रह्मण्यो नारसिंहा- स्यात्तथा नारायणोऽव्ययः । ब्राह्मण्यः श्रीधरः-श्रीशो मोविन्दो वामनस्तथा ।। .... .. ब्रह्मण्यो यज्ञवाराहः केशवः पुरुषोत्तमः । ब्राह्मण्यो राघवः श्रीमानामा, राजीवलोचनः॥ .. । ब्रह्मण्यः पद्मनाभश्च तथा दामोदरः प्रभुः । ब्रह्मण्यो माधवो यज्ञस्तथा त्रिविक्रमः प्रभुः॥ . . . ब्रह्मण्यश्च हृषीकेशः पीतवासा जनार्दनः । नमो ब्रह्मण्यदेवाय वासुदेवाय शाहिणे॥ नारायणाय श्रीशाय पुण्डरीकेक्षणाय च नमो ब्रह्मण्यदेवाय वासुदेवाय विष्णवे ॥ कल्याणगुणपूर्णाय नमस्ते परमात्मने । नमो ब्राण्यदेवाय सर्गस्थित्यन्तहेतवे।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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