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________________ 36] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** ___ भादों, माघ और चैत्र (गुजराती श्रावण, पौष और फाल्गुन) वदी 1 से कुंवार, फाल्गुन और वैशाख वदी 1 (गुजराती भादों, माघ, चैत वदी 1) तक (एक वर्षमें तीन बार) पूरे एक एक मास तक यह व्रत करना चाहिये। इन दिनों तेला बेला आदि उपवास करें अथवा नीरस वा एक आदि दो तीन रस त्यागकर ऊनोदर पूर्वक अतिथि या दीन दुःखी नर या पशुओंको भोजनादि दान देकर एकभुक्त करे अंजन, मंजन, वस्त्रालंकार विशेष धारण न करे, शीलप्रत (ब्रह्मचर्य) रक्खे नित्य षोडश कारण भावना भावे और यंत्र बनाकर पूजाभिषेक करे, त्रिकाल सामायिक करे। और (ॐ ह्रीं दर्शन-विशुद्धि विनयसम्पन्नता, शीलव्रतेष्वनतिचार अभीक्ष्ण, ज्ञानोपयोग, संवेग, शक्तितस्त्याग, शक्तितस्तप, साधुसमाधि, वैयावृत्यकरण, अर्हद्भक्ति, आचार्यभक्ति, उपाध्यायभक्ति, प्रवचनभक्ति, आवश्यकापरिहाणि, मार्ग प्रभावना, प्रवचनवात्सल्यादि षोडशकारणेभ्यो नमः)। . इस महामंत्रका दिनमें तीन बार 108 एक सो आठ बार जाप करें। इस प्रकार इस व्रतको उत्कृष्ट सोलह वर्ष, मध्यम 5 अथवा दो वर्ष और जधन्य 1 वर्ष करके यथाशक्ति उद्यापन करे। अर्थात् सोलह सोलह उपकरण श्री मंदिरजीमें भेट दें और शास्त्र व विद्यादान करे, शास्त्र भण्डार खोले, सरस्वती मंदिर बनावे, पवित्र जिनधर्मका उपदेश करे और करावे इत्यादि यदि द्रव्य खर्च करनेकी शक्ति न हो तो व्रत द्विगुणित करे। इस प्रकार ऋषिराजके मुखसे व्रतकी विधि सुनकर कालभैरवी नामकी उस ब्राह्मण कन्याने षोडशकारण व्रत स्वीकार करके उत्कृष्ट रीतिसे पालन किया, भावना भायी और विधिपूर्वक उद्यापन किया, पीछे वह आयुके अंतमें समाधिमरण
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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