________________ 146] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** पर उसने जवाब दिया, हे राजन्! अपने कोई संतान नहीं हैं और यह समस्त राज वैभव संतानके अभावमें व्यर्थ है। राजाने उसे धैर्य बंधाते हुए जवाब दिया-इसमें किसके हाथकी बात है जो होनहार होता है वह होता है। हमारे अशुभ कर्मोका उदय है इसमें चिंता करनेसे क्या हो! यदि भाग्यमें होगा तो अवश्य-किन्तु! होनहार होगा वही, विधिने दिया रचाय | ____ “विमल' पुण्य प्रभावसे, सुख सम्पत्ति बहु पाय॥ कुछ समय बीता, नगरके बाहर उद्यानमें सिद्धवरकूट चैत्यालयकी वंदना. हेतु पूर्व विदेह क्षेत्रमें सुप्रभ नामके चारणऋद्धिधारी मुनिश्वर आकाश मार्गसे पधारे। वनमाली यह सब देख अत्यंत प्रफुल्लित हुआ और वह गया फूलवारीके पास और अनेक प्रकारके फलफूल आदिसे डाली सजाकर प्रसन्न चित्तसे राजाके पास जाकर निवेदन किया... हे राजन्! श्रीमानके उद्यानमें सुप्रभ चारण ऋद्धिधारी मुनिराज पधारे हैं। __राजा सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसी समय सिंहासनसे उतरकर 10 कदम आगे बढ मुनिराजको साष्टांग परोक्ष प्रणाम किया। तथा प्रसन्नचित्त हो वनमालीको वस्त्राभूषण धनादि ईनाम देकर प्रसन्न किया। सारे नगरमें आनंद भेरी बजवाई। आनंद भेरी सुनकर सब नगर निवासियोंने राजाके साथ चारण ऋद्धिधारी मुनिको वन्दनाको प्रस्थान किया। राजाने अपने साथमें अत्यंत सुंदर अष्ट द्रव्य मुनि पूजा हेतु लिये और अनेक गाजे बाजे दुन्दुभिके साथ उद्यानमें पहुंचा,