SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री परधन लोभकी व्रत कथा [135 ******************************** यह विचारकर उस बन्दरने तुरंत ही मुनिराजके उपरसे ज्यों त्यों करके वह वृक्षकी डाली अलग कर दी। और जडीबूटी (औषधि) लाकर मुनिके घाव पर लगाई, जिससे मुनिराजको आराम हुआ। पश्चात् मुनिराजने उसे धर्मोपदेश दिया और अणुव्रत ग्रहण कराये सो उसने व्रतपूर्वक आयुके अन्तमें सात दिन पहिले सन्यास मरण किया, सो प्राण त्यागकर सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ। इस प्रकार औषधिदानके प्रभावसे श्री कृष्णने तीर्थंकर प्रकृति बांधी और बन्दर भी अणुव्रत ग्रहण कर स्वर्ग गया। यदि अन्य भव्य जीव इसी प्रकार आहार, औषधि, अभय और विद्यादानमें प्रवृत्त होंगे तो अवश्य ही उत्तमोत्तम सुखोंको प्राप्त करेंगे। औषधिदान प्रभाव से, श्रीकृष्ण नरराय। अरु कपि पायो विमल सुख, देह सब मिल लाय॥ (29 श्री परधन लोभकी कथा ) वीतरागके पद नमू, नमूं गुरु निन्थ। जा प्रसाद सब लोभ वश, हि मले मुक्तिको पन्थ // कपिला नगरीमें रत्नप्रभ राजा राज्य करता था। इसकी रानी विद्युतप्रभा थी। इसी नगरमें जीवदत्त और पिण्याकगन्ध नामके दो साहूकार थे। जिनदत्त तो धर्मात्मा और उदारचित्त था परंतु पिण्याकगन्ध बडा लोभी और पापी था। इसकी स्त्री भी इसके समान थी। ____एक समय राजाने नगरमें तालाब खोदनेकी आज्ञा की सो तालाब खुदने लगा जब कुछ गहरा खुदा तो उसमेंसे
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy